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पुण्यतिथि : कांग्रेस-बीजेपी में सरदार पटेल की विरासत पर खींचतान का पूरा सच

राजनीतिक जगत में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सरदार पटेल की विरासत की दावेदारी को लेकर जुबानी जंग होती रहती है. कांग्रेस ने सरदार पटेल के विरासत को संजोने में बेहद सुस्ती दिखाई और बीजेपी ने दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा बनवाकर बाजी मार ली.

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Keshav Kumar
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भारत रत्न सरदार वल्लभ भाई पटेल ( Photo Credit : News Nation)

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स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी, देश के पहले गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री भारत रत्न सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 15 दिसंबर, 1950 को अंतिम सांस ली थी. 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के खेड़ा जिले में एक सामान्य किसान परिवार में पैदा हुए सरदार पटेल को उनकी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए हमेशा याद किया जाएगा. स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल ने देश के नक्शे को मौजूदा स्वरूप देने में अमूल्य योगदान दिया. देश को एकजुट करने और बनाए रखने की दिशा में उनकी राजनीतिक और कूटनीतिक क्षमता ने अहम भूमिका निभाई. माना जाता है कि उन्होंने अहिंसक तरीके से तमाम राज्यों और रियासतों का भारत में समायोजित करवाया था. देश की एकता में उनके इस अनूठे योगदान को श्रद्धांजलि देने के लिए गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर केवडिया में उनकी विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है. सरकार का ये दावा है कि यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है. 

इसके बाद राजनीतिक जगत में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सरदार पटेल की विरासत की दावेदारी को लेकर जुबानी जंग होती रहती है. जानकारों के मुताबिक कांग्रेस ने सरदार पटेल के विरासत को संजोने में बेहद सुस्ती दिखाई और बीजेपी ने दुनिया भर में सबसे ऊंची प्रतिमा बनवाकर बाजी मार ली. बीजेपी ने कांग्रेस ने पर सरदार पटेल को उचित सम्मान नहीं देने और उनके योगदान को भूलाने का आरोप लगाया. वहीं उनके परिवार का ख्याल नहीं रखने को लेकर भी निशाने साधे. दूसरी ओर कांग्रेस ने बीजेपी पर खुद के आदर्श नहीं होने या उधार का आदर्श लेने जैसे कमेंट के साथ पलटवार किया. पटेल की विरासत को उपजा विवाद उनकी जयंती, पुण्यतिथि और उनसे जुड़े कुछ अहम दिनों में खास हो जाता है. गुजरात में चुनाव के दौरान ये मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर तूल पकड़ता है. क्योंकि वहां पाटीदार आंदोलन के नेता भी अपने पोस्टर पर सरदार पटेल की बड़ी तस्वीरें लगाकर सरकार पर हमला बोलते हैं.

पटेल की विरासत की दावेदारी और गैरजरूरी विवाद

सरदार पटेल 1931 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गए थे और जीवनभर इसी पार्टी में रहे. हालांकि कांग्रेस पार्टी का मौजूदा स्वरूप तब की पार्टी से पूरी तरह बदल चुका है, फिर भी विरासत की दावेदारी को लेकर जंग जारी है. जीवन भर सरदार पटेल सीधे अपने दिल से बात करने के लिए जाने जाते थे. उनके भाषण कभी लंबे नहीं होते थे, लेकिन उनमें ऐसे शब्द होते थे जो लोगों को काम करने के लिए प्रेरित करते थे. उनके इस गुण के सामने उनके नाम और विरासत पर ऐसी राजनीतिक बयानबाजियां भी हुई जिसे गैरजरूरी कहा जा सकता है. सरदार पटेल किसी पार्टी के नहीं थे, वो देश के नेता थे और हमेशा रहेंगे.

क्या गुजरात की वजह से हो रही ज्यादा चर्चा

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने अपने एक लेख में इस बारे में लिखा कि देश के विभाजन के बाद देश को जोड़ने में पटेल की असाधारण भूमिका की हर तरफ तारीफ हुई थी और उन्हें लौह पुरुष का रुतबा मिला. सरदार पटेल राष्ट्रीय सम्मान के प्रतीक होने के साथ गुजराती मूल के भी थे जो पीएम मोदी के लिए फायदेमंद साबित होता है. आज-का-मोदी-कल-का-पटेल जैसा संदेश कई गुजरातियों पर सीधा असर करता है. उन्हें गर्व है कि उनके राज्य के एक बेटे से आज पूरे देश की आस बंधी है. हालांकि महात्मा गांधी पर इसी गुजरात राज्य में पैदा हुए थे. कई राजनीतिक जानकारों ने मुताबिक बीजेपी इस वजह से भी सरदार पटेल का नाम लेकर कांग्रेस पर हमलावर होती है.

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वहीं, दिल्ली के एक, औरंगजेब रोड ( अब एपीजे कलाम रोड) जो सरदार पटेल का सरकारी आवास था को मेमोरियल नहीं बनाने को लेकर भी कांग्रेस पर काफी निशाना साधा गया. कई बड़े लोगों ने पूछा कि महात्मा गांधी ने अपने आखिरी 144 दिन बिरला भवन में गुजारे थे और 26 अलीपुर रोड में डॉ. बी. आर. अंबेडकर अपने जीवन के आखिरी क्षण (1956) तक रहे थे. इन दोनों को मेमोरियल में बदला जा सकता है तो फिर 1, औरंगजेब रोड को भी सरदार पटेल का मेमोरियल बनाया जाना चाहिए.

उपेक्षा और उपलब्धि पर जीवनीकारों की राय

कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि देश के माने हुए बौद्धिक जगत के दिग्गजों की ओर से भी उपेक्षा दिखी और दर्ज की गई. सरदार पटेल की जीवनी लिखने वाले राजमोहन गांधी भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के हवाले से कहते हैं, "आज भारत जो कुछ भी है, उसमें सरदार पटेल का बहुत योगदान है. लेकिन इसके बावजूद हम उनकी उपेक्षा करते हैं." उसी पुस्तक में राजमोहन गांधी खुद लिखते हैं, "आजाद भारत के शासन तंत्र को वैधता प्रदान करने में गांधी, नेहरू और पटेल की त्रिमूर्ति की बहुत बड़ी भूमिका रही है. लेकिन ये शासन तंत्र भारतीय इतिहास में गांधी और नेहरू के योगदान को तो स्वीकार करता है, लेकिन पटेल की तारीफ करने में कंजूसी कर जाता है." इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि सुनील खिलनानी की मशहूर किताब 'द आइडिया ऑफ़ इंडिया' में नेहरू का ज़िक्र तो 65 बार आता है जबकि पटेल का जिक्र महज 8 बार किया गया. इसी तरह रामचंद्र गुहा की पुस्तक 'इंडिया आफ़्टर गांधी' में पटेल के 48 बार जिक्र की तुलना में नेहरू का जिक्र 4 गुना अधिक यानी 185 बार आया है.

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जर्मनी के बिस्मार्क से भी बड़ा एकीकरण

दूसरी ओर सरदार पटेल खुद भी अपने बारे में बहुत कम बात करते थे. इस बात की चर्चा सरदार पटेल के एक और जीवनीकार हिंडोल सेनगुप्ता उनकी जीवनी 'द मैन हू सेव्ड इंडिया' में किया है. उन्होंने लिखा कि गांधी और नेहरू की तुलना में सरदार पटेल एक ऐसे शख्स हैं जो अपने बारे में और अपनी जरूरतों के बारे में बहुत कम बताते हैं. सरदार पटेल के एक और जीवनीकार पीएन चोपड़ा उनकी जीवनी 'सरदार ऑफ इंडिया' में  बताते हैं कि रूसी प्रधानमंत्री निकोलाई बुलगानिन की नजर में राजाओं को समाप्त किए बिना रजवाड़ों को समाप्त कर देने वाले पटेल की ये उपलब्धि जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की उपलब्धि से बड़ा काम था.

HIGHLIGHTS

  •  गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर केवडिया में सरदार पटेल की सबसे ऊंची प्रतिमा
  •  विभाजन के बाद देश को मजबूती से जोड़ने में सरदार पटेल की असाधारण भूमिका
  • भारत रत्न सरदार पटेल किसी भी पार्टी के नहीं देश के नेता थे और हमेशा रहेंगे
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