Shaheed Diwas 2020: गांधी ने भगत सिंह की फांसी को रोकने की कोशिश नहीं की? पढ़ें वो सच शायद आप नहीं जानते होंगे

वर्ष 1931 में 17 फरवरी को गांधी और वायसराय इरविन के बीच बातचीत शुरू हुई. लोग चाहते थे कि गांधी तीनों की फांसी रुकवाने के लिए इरविन पर जोर डालें.

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Sushil Kumar
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प्रतीकात्मक फोटो( Photo Credit : न्यूज स्टेट)

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23 मार्च भारत की स्वतंत्रता के लिए खास महत्व रखता है. भारत इस दिन को हर वर्ष शहीद दिवस (Shaheed Diwas) के रूप में मनाता है. वर्ष 1931 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च के ही दिन फांसी दी गई थी. भारत ने इस दिन अपने तीन वीर सपूत को खोया था. उनकी शहादत की याद में शहीद दिवस (Martyr Day) मनाया जाता है. देश की आजादी के लिए तीनों वीर सपूतों ने बलिदान दिया था. बताया जाता है कि असल में इन शहीदों को फांसी की सजा 24 मार्च को होनी थी, लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने जल्द से जल्द फांसी देने के लिए एक दिन पहले ही दे दिया था. जिसके चलते तीन वीर सपूतों को 23 मार्च को ही फांसी दी गई थी.

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गांधी चाहते तो रुक सकती थी फांसी

लेकिन लोग इस फांसी की असली वजह गांधी को मानने लगे. लोगों का कहना था कि अगर गांधी चाहते, तो फांसी रुक सकती थी. लेकिन गांधी ने ऐसा नहीं किया. तीनों भारत के वीर सपूतों को लोग खूब जानने लगे थे. क्योंकि लोगों को गांधी से बहुत उम्मीदें थीं. लोगों को लग रहा था कि गांधी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी से बचा लेंगे. वर्ष 1931 में 17 फरवरी को गांधी और वायसराय इरविन के बीच बातचीत शुरू हुई. लोग चाहते थे कि गांधी तीनों की फांसी रुकवाने के लिए इरविन पर जोर डालें. शर्त रखें कि अगर ब्रिटिश सरकार सजा कम नहीं करेगी, तो बातचीत नहीं होगी. मगर गांधी ने ऐसा नहीं किया.

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गांधी ने वायसराय के सामने फांसी रोकने का मुद्दा उठाया

‘यंग इंडिया’ में लिखते हुए उन्होंने अपना पक्ष रखा कि हम समझौते के लिए इस बात की शर्त नहीं रख सकते थे कि अंग्रेजी हुकूमत भगत, राजगुरु और सुखदेव की सजा कम करे. मैं वायसराय के साथ अलग से इस पर बात कर सकता था. गांधी का मानना था कि वायसराय के साथ बातचीत हिंदुस्तानियों के अधिकारों के लिए है. उसे शर्त रखकर जोखिम में नहीं डाला जा सकता है. 

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... कामयाबी नहीं मिली

इसके बावजूद गांधी ने इरविन से बात की. वे चाहते थे कि फांसी टल जाए. जब इरविन और गांधी की बात हुई, तो उन्होंने कहा कि वायसराय को मेरी बात पसंद आई. वायसराय ने कहा कि सजा कम करना मुश्किल होगा, लेकिन उसे फिलहाल रोकने पर विचार किया जा सकता है. इसका मतलब यह है कि गांधी और उनके साथियों ने भगत और उनके साथियों को बचाने के लिए कानूनी रास्ते तलाशे थे. मगर कामयाबी नहीं मिली. गांधी को लग रहा था कि अगर ऐसा हो जाएगा, तो शायद अंग्रेजी हुकूमत भगत, राजगुरु और सुखदेव की सजा माफ कर दे.

यहीं से विवाद की शुरुआत हुई

17 फरवरी 1931 से वायसराय इरविन और गांधी जी के बीच बातचीत की शुरुआत हुई. इसके बाद 5 मार्च, 1931 को दोनों के बीच समझौता हुआ. इस समझौते में अहिंसक तरीके से संघर्ष करने के दौरान पकड़े गए सभी कैदियों को छोड़ने की बात तय हुई. मगर, राजकीय हत्या के मामले में फांसी की सज़ा पाने वाले भगत सिंह को माफ़ी नहीं मिल पाई. भगत सिंह के अलावा तमाम दूसरे कैदियों को ऐसे मामलों में माफी नहीं मिल सकी. यहीं से विवाद की शुरुआत हुई.

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