मंगल पांडे ने अपनी रायफल से अंतिम गोली किसे मारी थी
Independence Day 2021: क्या आप जानते हैं कि गिरफ्तारी से पहले मंगल पांडे ने आखिर अपनी रायफल से अंतिम गोली किसे मारी थी...वो दिन था 29 मार्च 1857 का. शाम के 4 बज रहे थे. बैरकपुर की छावनी में कारतूस पर लगी चर्बी को लेकर काफी संदेह था.34वीं बंगाल इंफैन्ट्री के मंगल पांडे ने इसी उहापोह को लेकर अपने साथी सैनिकों से बात शुरू की. छावनी के सार्जेंट मेजर जेम्स ह्वीसन को लगा कि मंगल पांडे सैनिकों को भड़का रहा है...तभी गुस्से से तमतमाए मंगल पांडे ने जेम्स ह्वीसन पर रायफल से पहला फायर कर दिया. लेकिन निशाना चूक गया. गोली की आवज सुनकर लेफ्टिनेंट बेंपदे बाग भी अपने घोड़े पर वहां आया. मंगल ने दूसरा फायर उस पर किया लेकिन ये निशाना भी चूक गया.और आखिर में मंगल पांडे ने रायफल की नाल अपने सीने से सटाई और पैर के अंगूठे से फायर कर दिया. जिसके बाद मंगल की वर्दी में आग लग गई. मंगल को गिरफ्तार कर लिया गया. मंगल को फांसी हुई लेकिन उनको फांसी देने वाले जल्लाद ही भाग गए.और विद्रोह फैलने के डर से अंग्रेजों ने मंगल पांडे को तय 18 अप्रैल से 10 दिन पहले 8 अप्रैल को ही फांसी दे दी थी.
तात्या टोपे को एक बार नहीं बल्कि दो बार फांसी पर अंग्रोजों ने क्यों लटकाया
अंग्रेजों ने तात्या टोपे को एक बार नहीं बल्कि दो बार फांसी पर लटकाया था. इस किस्से को जानने के लिए गदर के दौर में चलना होगा. साल 1858 में लगातार 9 महीने तक तात्या टोपे ने अकेले जंगलों में रह कर गोरिल्ला वार के जरिए कंपनी की सेना को 6 से 7 बार हराया था. ईस्ट इंडिया कंपनी के 6-6 जनरल हार मान चुके थे.अंग्रेजी तोपों पर काबू पाना तात्या के बाए हाथ का खेल था.इसी डर की वजह से 18 अप्रैल को जब तात्या को फांसी दी गई तो पहली बार के बाद दूसरी बार भी उनको फांसी पर लटकाया गया जिससे ये पूरी तरह से तय हो जाए कि तात्या अब जिंदा नहीं हैं.
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अंग्रेजों का दुश्मन नंबर : जिंदा या मुर्दा पकड़ के लाने पर एक लाख का ईनाम
गदर का वो सिपाही जिसे जिंदा या मुर्दा गिरफ्तार करवाने वाले को कंपनी बहादुर ने 1 लाख रुपए का ईनाम देने की घोषणा की थी वो थे नाना साहेब पेशवा.1857 की क्रांति में नाना साहेब ने खुद को पेशवा घोषित कर दिया. 80 लाख की पेंशन को ठोकर मार कर नाना अंग्रेजी हुकूमत के सामने डट गए थे.1858 में अंग्रेजी हुकूमत ने अपने इस दुश्मन नंबर एक को जिंदा या मुर्दा पकड़ लाने के लिए एक लाख रुपये इनाम की घोषणा की थी.आम जनता को इसकी इत्तला देने के लिए बाकायदा इश्तिहार छपवाए गए थे.इस पर्चे को प्रयाग में भी बंटवाया गया था.इश्तेहार का वो पर्चा आज भी प्रयागराज के अभिलेखागार में सुरक्षित रखा है.
रानी लक्ष्मीबाई किसको भेजी थीं सोने का पत्र
झांसी बचाने के लिए लक्ष्मीबाई ने सोने के पत्र पर फारसी में एक खत ऑस्ट्रेलियन वकील जॉन लैंग को लिखा था.जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी एबॉट को 2014 में भेंट किया था. गदर से पहले झांसी में सालाना 6 लाख का राजस्व इकट्ठा होता था. झांसी के राज को बचाने के लिए पहले लक्ष्मीबाई ने कानून का सहारा लिया था और 1854 में जॉन लैंग ने रानी लक्ष्मीबाई की ओर से ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ याचिका दायर की थी.जॉन ने ये पिटीशन अंग्रेजी में दायर की थी.जिस पर उसका साइन भी था.
अपनी तलवार से अपना हाथ काट देने वाला वीर
80 वर्षीय वीर कुंवर सिंह ने अंग्रजों को हराने के लिए मां गंगा के सामने अपनी तलवार से अपने बाजू काट दिए थे. 20 अप्रैल 1858 की जगदीशपुर की लड़ाई में वीर कुंवर सिंह की नाव पर रात के अंधेरे में अंग्रेज जनरल डगलस ने हमला बोल दिया.हमले में वीर कुंवर सिंह के बाएं हाथ की कलाई में गोली लग गई.कुंवर सिंह ने बिना वक्त गंवाए अपनी तलवार से अपना हाथ काट दिया. क्योंकि अगर हाथ न काटते तो जहर पूरे शरीर में फैल सकता था.और जंग खत्म हो जाती.हाथ काटने के बाद भी कुंवर सिंह के शरीर में जहर फैलने लगा.लेकिन बीमार हालत में भी उन्होने जगदीशपुर की लड़ाई में अंग्रेजों के हराया और जगदीशपुर पर फिर कब्जा किया.कुंवर सिंह ने अंग्रेजों को एक बार नहीं बल्कि सात सात बार हराया था.
यूनियन जैक को मिट्टी में मिलाने वाली पहली महिला सेनानी
ये कहानी लखनऊ की है जब किसी महिला से पहली बार अंग्रेज हारे थे. यूनियन जैक को मिट्टी में मिलाने वाली पहली महिला सेनानी थीं बेगम हजरत महल. बचपन में मोहम्मद खानम नाम से मशहूर बेगम हजरत महल ने 1857 के गदर में पूरे अवध का नेतृत्व किया.आलमबग की लड़ाई में बेगम ने तलवार हाथ में थामी और खुद हाथी पर सवार होकर अंग्रजों से लोहा लिया था. बेगम हजरत महल ने भी लक्ष्मीबाई की तरह अवध की औरतों को इकट्ठा कर महिला सैनिक दस्ता बनाया था. बेगम हजरत महल ने चिनहट और दिलकुशा में जीत दर्ज करते हुए सीतापुर, गोंडा, बहराइच, फैजाबाद, सुल्तानपुर तक से अंग्रजों के यूनियन जैक को उतार फेंका था.
बैसवाड़े का रणबांकुरा राणा बेनी माधव
आजादी का वो सिपाही जिसके डर से अंग्रंजों ने उनके नाम का गाना ही बना डाला था. बात है 1857 के गदर की बहराइच में जंग हारने के बाद अंग्रेजों ने राणा बेनी माधव के नाम का गाना तक बना डाला था.और गोरे अंग्रेज जंगलों में मौत के डर से जोर जोर से वो गाना गाया करते थे. हॉउ आई वॉन द विक्टोरिया क्रॉस डॉट टीएच डॉट कावानघ के पेज नंबर 216 पर उस गाने को छापा गया...'where have you been to all the day beni madho beni madho' राणा बेनी माधव ने 18 महीने तक रायबरेली को अंग्रेजों से स्वाधीन रखा था.
अंग्रजों को सतपुड़ा के जंगलों में खदेड़ने वाला भीमा नायक
अंग्रजों के खिलाफ एक आदिवासी सेना का विद्रोह जिसने देखते देखते अंग्रजों को सतपुड़ा के जंगलों में खदेड़ दिया.ये कहानी है भीमा नायक की.मध्य प्रदेश के जंगलों में भीमा नायक ने करीब 3 हजार आदिवासियों को इकट्ठा कर आदिवासी लड़ाकों की टुकड़ी बना डाली थी.अंबापानी की जंग में अंग्रोजों को हराने के बाद निमाड़ में तात्या टोपे ने भीमा का अपने खून से तिलक किया था.भीमा नायक को निमाड़ का रॉबिनहुड कहते थे. एक करीबी के धोखे ने भीमा नायक को गिरफ्तार करवाया जिसके बाद भीमा को काला पानी की सजा हुई और 1876 में भीमा नायक ने शहादत पाई.
हाथ में भगवत गीता रख कर फासीं पर चढ़ने वाला क्रांतिकारी
18 साल का क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने हाथ में भगवत गीता रख कर फासीं पर चढ़ गए थे.1905 के बंगाल विभाजन के बाद देश सुलग रहा था.खुदीराम बोस ने 9 वीं की पढ़ाई बीच में छोड़ी और रिवोल्यूश्नरी पार्टी के सदस्य बन गए.1907 में बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बम धमाका किया...अंग्रेज अफसर किंग्सफोर्ड की बग्घी में बम भी खुदी राम बोस ने ही फेंका था.18 साल की उम्र में जब खुदी राम बोस को फांसी पर चढ़ाया गया तो बोस के हाथ में भगवत गीता थी.
भगत सिंह जिस क्रांतिकारी को मानते थे अपना आदर्श
साढ़े उन्नीस साल का वो क्रांतिकारी जिसे भगत सिंह अपना आदर्श मानते थे. उस करतार सिंह सराभा ने सात समंदर पार अमेरिका से अंग्रजों की चूल्हें हिला दी थीं. कनाडा और अमेरिका में रह रहे 8 हजार भारतीयों को मिलाकर गदर की शुरुआत की. भारत को आजाद कराने के लिए 20वीं सदी का ये पहला सशस्त्र विद्रोह था.16 नवंबर 1915 को लाहौर जेल में करतार सिंह सराभा को फांसी दे दी गई.
फांसी के दिन व्यायाम करने वाला वीर सेनानी
फांसी वाले दिन सुबह राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को कसरत करता देख जेलर भी दंग रह गया था. लेकिन जेलर के सवाल पर लाहिड़ी ने जो जवाब दिया था उसे सुनकर जेलर हक्का बक्का रह गया.लाहिड़ी ने जेलर को कहा था कि मैं हिन्दू हूं और पुनर्जन्म में मेरी अटूट आस्था है. अत: अगले जन्म में मैं स्वस्थ शरीर के साथ पैदा होना चाहता हूं. ताकि अधूरे कार्य को पूरा कर देश को स्वतंत्र करा सकूं.काकोरी कांड के आरोप में राजेंद्र लाहिड़ी को लखनऊ की स्पेशल कोर्ट ने 6 अप्रैल 1927 को फांसी की सजा दी थी.
चार सौ जवानों से अकेले टक्कर लेने वाला ब्रजबासी
मणिपुर का एक सिपाही जिसने 400 गोरखों की टोली से अकेले ही टक्कर ली.आजादी की ये कहानी मेजर पाओना ब्रजबासी की है.1891 में मणिपुर में राजशाही खत्म होते होते अंग्रेजों ने इंफाल पर हमला बोल दिया.राजकुमार को गिरफ्तार करने के लिए अंग्रेज अफसर ने 400 गोरखाओं के साथ महल पर हमला बोल दिया.लेकिन मेजर पाओना को अंग्रेजों के खिलाफ हार मंजूर नहीं थी. वो जानते थे कि वो अकेले 400 का सामना नहीं कर सकते हैं.लेकिन फिर भी उन्होने मोर्चा नहीं छोड़ा और जख्मी हालत में भी जंग लड़ते रहे. 25 अप्रैल 1891 के दिन मेजर पाओना ब्रजबासी शहीद हो गए.
लंदन में अंग्रेज अधिकारी को गोली मारने वाला क्रांतिकारी
जंग-ए-आजादी का वो सिपाही जिसने पढ़ाई के चौथे साल ही अंग्रेजों की धरती पर ही अंग्रेज अफसर को मार कर धरती लाल कर दी थी. वो थे मदन लाल धींगरा. 25 साल की अल्हड़ उम्र में बिरतानिया हुकूमत की सरजमीं पर मदनलाल धींगरा ने इंडिया ऑफिस के सेक्रेटरी के राजनैतिक सलाहकार कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी थी. हत्या के आरोप में पकड़े जाने के महज 16 दिन बाद ही ढींगरा को फांसी दी गई थी. फांसी के बाद ढींगरा के शरीर को ब्रिटेन में ही दफना दिया गया था. जिसे 1976 में भारत वापस लाया गया और महाराष्ट्र के अकोला में रखा गया था.
किताब के पन्ने को रिवॉल्वर के आकार में काटने वाले ऊधम
वो भगत सिंह को अपना आदर्श मानते थे. भगतसिंह की फोटो अपनी जेब में रखते थे .खुद को राम प्रसाद बिस्मिल का फैन कहते थे. जिसने 21 साल बाद लिया था जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला. वो थे सरदार ऊधम सिंह. 6 साल की उम्र में अनाथ होने वाला ये शहीद बचपन में शेर सिंह नाम से जाना जाता था. लेकिन भारतीय समाज की एकता के लिए उन्होने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया था. सरदार ऊधम सिंह ने लंदन में माइकल फ्रेंसिस ओ’डायर को दो गोली मारी थी. ऊधम सिंह अपनी रिवॉल्वर किताब में छिपा कर लेकर गए थे.जिसके लिए पहले किताब के पन्ने रिवॉल्वर के आकार में काटा था और किताब के अंदर रिवॉल्वर रख कर लेकर गए थे. 31 जुलाई 1940 को सरदार ऊधम सिंह को फांसी दी गए थी.
आखिर क्या हुआ था 20 दिसंबर 1928 की सुबह ?
20 दिसंबर 1928 की सुबह उन्होंने लाहौर से कलकत्ता जाने वाली ट्रेन के तीन टिकट लिए. अंग्रेजों से बचने के लिए दुर्गा भाभी ने भगत सिंह की पत्नी होने का अभिनय किया और राजगुरू ने नौकर का. पहचान छिपाने के लिए भगत सिंह ने भी भेष बदल लिया. सिर पर हैट रख लिया. लाहौर से आने वाली डायरेक्ट ट्रेनों में भी चेकिंग जारी थी. लखनऊ में राजगुरु अलग होकर बनारस चले गए. वहीं भगत सिंह, दुर्गा भाभी, और उनका छोटा बच्चा हावड़ा के लिए निकल गए. कलकत्ता में ही भगत सिंह की वो मशहूर तस्वीर ली गई थी जिसमें उन्होंने हैट पहन रखा है. इस तरह भगत सिंह को अंग्रेजों की नाक के नीचे से निकाल लाईं थी ’दुर्गावती बोहरा, उर्फ़ दुर्गा भाभी...
फांसी के दिन रोशन सिंह ने पहरेदार से कहा... चलो
19 दिसंबर 1927 को रोशन सिंह को इलाहाबाद स्थित मलाका जेल में फांसी पर लटका दिया गया. फांसी से पहली रात रोशन सिंह कुछ घंटे सोये फिर देर रात से ही ईश्वर-भजन करते रहे. प्रात:काल स्नान ध्यान किया कुछ देर गीता-पाठ में लगायी फिर पहरेदार से कहा-"चलो." वह हैरत से देखने लगा यह कोई आदमी है या देवता!
HIGHLIGHTS
- चार सौ जवानों से अकेले टक्कर लेने वाला ब्रजबासी
- फांसी के दिन व्यायाम करने वाला वीर सेनानी
- भगत सिंह जिस क्रांतिकारी को मानते थे अपना आदर्श