आजादी से पहले देश में एक दौर ऐसा भी था, जब टीबी यानि ट्यूबरकुलोसिस (Tuberculosis) सबसे बड़ी लाइलाज बीमारी थी. लेकिन नैनीताल जिले के एक संस्थान में उस दौर में भी इसका बेहतर इलाज होता था. यहां पर कमला नेहरु, नेताजी सुभाष चंद्र बोस तक का इलाज हो चुका है. 110 साल पुरानी हेरिटेज टीवी सैनिटोरियम की दिलचस्प कहानी न्यूज नेशन आपको बता रहा है. ये टीवी सेंटर नैनीताल के भवाली में है. साल 1912 में अंग्रेजों ने भवाली में इस संस्थान की स्थापना की थी. तब अंग्रेज अफसर किंग जॉर्ज एडवर्ड यहां पदस्थापित थे. उस दौर में टीबी पूरी दुनिया में सबसे बड़ी लाइलाज बीमारी थी. कई देशों में इसकी वजह से हजारों लोग मारे जा रहे थे.
यहां पर भर्ती थीं कमला नेहरू
इस टीबी सैनिटोरियम में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू भी 1935 के समय में भर्ती रही थी. कमला नेहरू को जब टीबी की बीमारी हो गई थी, तो डॉक्टर ने उन्हें इस संस्थान में भर्ती होने की सलाह दी. उस दौर में पंडित जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद की नैनी जेल में बंद थे, ऐसे में पंडित जवाहरलाल नेहरू को फिर अल्मोड़ा की जेल में शिफ्ट किया गया, जहां से वह कमला नेहरू को देखने के लिए इस सैनिटोरियम में आते थे. बताया जाता है कि अंग्रेजों ने इस स्थान को इसलिए चुना था, क्योंकि यह ऊंचाई पर था और चारों ओर से चीड़ ली के पेड़ों से घिरा हुआ था. चीड़ के पेड़ों की हवा ट्यूबरकुलोसिस के मरीज के लिए बेहतर होती है, ऐसा कहा जाता है.
नामी हस्तियों का हुआ था इस जगह पर इलाज
इस टीबी सैनिटोरियम में उस दौरान देश के कई बड़ी हस्तियां इलाज कराने के लिए पहुंची. सुभाष चंद्र बोस को जब ट्यूबरकुलोसिस हो गया था तो उन्हें भी यहां भेजा गया वो इस सैनिटोरियम में आए थे लेकिन उस दौर में टीवी का इलाज पूरी तरह से नहीं था इसलिए उन्होंने यहां से दवा नहीं ली थी और वह विदेश चले गए थे. प्रख्यात क्रांतिकारी और साहित्यकार यशपाल भी यहां इलाज के लिए भर्ती हुए थे. प्रख्यात गायक कुंदन लाल सहगल, खिलाफत आंदोलन के मोहम्मद अली और शौकत अली और प्रसिद्ध क्रांतिकारी गया प्रसाद शुक्ल भी यहां इलाज के लिए भर्ती हुए थे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री संपूर्णानंद की पत्नी का भी यही इलाज हुआ था.
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रामपुर के नवाब ने भी दान दी थी 18 हेक्टेयर जमीन
इस सैनिटोरियम में जनरल वार्ड के साथ कई प्राइवेट वार्ड भी बनाए गए. कुछ पेइंगवार्ड भी विशिष्ट लोगों के लिए बनाए गए. टीबी सैनिटोरियम को 1912 में अंग्रेजों ने जब बनाया था तो उस वक्त मरीजों के लिए 378 बेड की कैपेसिटी थी. हालांकि अब 110 साल बाद कई भवन टूट चुके हैं लेकिन आज भी 60 से 70 बेड यहां उपलब्ध हैं, जिनमें इलाज हो रहा है. समुद्र तल से 1731 मीटर की ऊंचाई पर 18 हेक्टेयर क्षेत्र में इस पूरे टीबी सैनिटोरियम को बनाया गया है. बताया जाता है कि रामपुर के नवाब की पत्नी की ट्यूबरक्लोसिस के चलते मृत्यु हुई थी ऐसे में उन्होंने फिर इस बीमारी के इलाज के लिए इसी संस्थान को बनाने के लिए 18 हेक्टेयर जमीन अंग्रेजों को दान की थी. अब 110 साल बाद करीब 60 से 70 मरीजों का यहां पर इलाज होता है. कुछ पुराने भवन जो बेहतर कंडीशन में थे, उनका जीर्णोद्धार किया गया और उनमें जनरल वार्ड और ओपीडी बनाए गए हैं.
फौजियों के लिए अलग वार्ड
अंग्रेजों की हुकूमत के समय ट्यूबरकुलोसिस का सबसे ज्यादा असर देखने को मिलता था ऐसे में सबसे बड़ी चिंता फौज और पुलिस के सिपाहियों के बीमार होने के दौरान होती थी क्योंकि हजारों की संख्या में पूरी फौज एक साथ बीमार हो सकती थी. ऐसे में इस सैनिटोरियम में अलग से एक पुलिस वार्ड की स्थापना की गई. फौज और पुलिस के जवान जब बीमार होते थे, वह तो उनको यहां भर्ती किया जाता था जिससे उनकी बीमारी अन्य लोगों में ग्रसित न हों.
इलाज कराने देश के कोने-कोने से आते हैं लोग
आज भी इस सैनिटोरियम में देश के कई राज्यों से लोग इलाज कराने के लिए पहुंचते हैं. सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के कोने-कोने से लोग यहां इलाज कराने के लिए आते हैं. इस सैनिटोरियम में नर्सिंग स्टाफ में तैनात रेणुका बताती हैं कि मरीजों का निशुल्क यहां इलाज होता है और उन्हें भोजन की व्यवस्था भी सरकार की ओर से होती है. दवाइयां वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की ओर से निशुल्क मिलती हैं, इसलिए आज भी बड़े पैमाने पर लोग यहां पहुंचते हैं. इस सैनिटोरियम में मरीजों का आज भी आना है. इसका एक कारण यह भी है कि टीबी के मरीज का इलाज अन्य मरीजों के साथ नहीं हो सकता है. साथ ही जिन लोगों के पास पैसा नहीं है वह आज भी संस्थान में इलाज कराने आते हैं.
सुविधाओं की कमी, सड़क की हालत खराब
अंग्रेज सरकार ने जिस लाइलाज बीमारी से लड़ने के लिए इस सैनिटोरियम की स्थापना की थी, आज 110 साल बाद इसका जीर्णोद्धार करना तो दूर की बात, प्रशासन यहां पहुंचाने वाली सड़क तक को बेहतर नहीं कर पाया है. डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ के साथ स्थानीय लोग और मरीज आए दिन दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं.
इस पुलिस वार्ड की लकड़ी की सीढ़ियां आज भी बताती हैं कि किस तरह इस संस्थान को बनाया गया होगा. 110 साल बाद भी लकड़ी की सीढ़ियां पूरी तरह मजबूत नजर आती है. नैनीताल के वरिष्ठ पत्रकार और प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता राजीव लोचन साह कहते हैं कि इस संस्थान को अब सरकारों ने बर्बाद कर दिया है. इस संस्थान को आज भी अगर बेहतर किया जाए तो इसमें काफी कुछ किया जा सकता है क्योंकि इसका क्षेत्रफल बहुत ज्यादा है और कोई भी बड़ा मेडिकल संस्थान यहां बनाया जा सकता है.
HIGHLIGHTS
- देश के सबसे पुराने टीबी संस्थान की हालत खराब
- कभी महान लोगों के हो चुके हैं इलाज
- अंग्रेजों ने साल 1912 में की थी स्थापना