किराये की कोख (सरोगेसी) पर हंगामा है क्यों बरपा, समझें पक्ष-विपक्ष के तर्क और असलियत

हाल-फिलहाल भारत में हर साल सरोगेसी से 2 हजार बच्चे जन्म लेते हैं. 12 लाख रुपये तक मिलते हैं किराये पर कोख देने पर. फिलहाल 2.3 अरब डॉलर तक पहुंच गया है सरोगेसी का कारोबार.

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Nihar Saxena
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किराये की कोख (सरोगेसी) पर हंगामा है क्यों बरपा, समझें पक्ष-विपक्ष के तर्क और असलियत

सरोगेसे बिल के कुछ प्रावधानों पर है आपत्ति.( Photo Credit : सांकेतिक चित्र.)

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राज्यसभा में सरोगेसी (नियमन) विधेयक 2019 को पेश करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने इसे 'गेम चेंजर' करार दिया था. यह एक तरह से सही भी था, क्योंकि देश में पहली बार 'किराए की कोख' (सरोगेसी) की सुविधा को नियम-कायदों के तहत बांधा जा रहा था. इस विधेयक के सबसे बड़ा मकसद यही है कि किराये की कोख के व्यावसायिक कारोबार पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सके. इस विधेयक में अल्ट्रस्टिक सरोगेसी को जारी रखने की व्यवस्था है. इसमें किराये की कोख उपलब्ध कराने वाली महिला को किसी किस्म की मुआवजा नहीं दिया जा सकता है. हालांकि वह चिकित्सकीय खर्च और बीमा की पात्र होती है. यही नहीं, किराये की कोख उपलब्ध कराने वाली महिला का नजदीकी रिश्तेदार होना भी जरूरी है. हाल-फिलहाल भारत में हर साल सरोगेसी से 2 हजार बच्चे जन्म लेते हैं. 12 लाख रुपये तक मिलते हैं किराये पर कोख देने पर. फिलहाल 2.3 अरब डॉलर तक पहुंच गया है सरोगेसी का कारोबार.

राज्यसभा में किया गया विरोध
किराए की कोख (सरोगेसी) को कानून के दायरे में लाने के लिए तैयार किए गए सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019 पर बुधवार को चर्चा हुई. इस दौरान उच्च सदन के सदस्यों ने विधेयक में निकट रिश्तेदार के प्रावधान को स्पष्ट करने, एकल महिला को भी सरोगेसी की इजाजत देने और पांच साल के वैवाहिक जीवन की शर्त हटाने की मांग रखी. उच्च सदन में विधेयक पर चर्चा करते हुए कांग्रेस की अमी याज्ञिक ने कहा कि विधेयक में कई खामियां हैं जिन्हें दूर किया जाना जरूरी है. उन्होंने बांझपन की भी स्पष्ट व्याख्या किए जाने की मांग की. उन्होंने निकटतम संबंधी की परिभाषा स्पष्ट करने की मांग करते हुए यह भी कहा कि विवाहित दंपती के लिए प्रजनन संबंधी खामी होने पर सरोगेसी के लिए पांच साल के इंतजार और दो प्रमाणपत्रों की अनिवार्यता की शर्त नहीं होनी चाहिए.

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इन मसलों पर है विरोध
गौरतलब है कि सरोगेसी रेगुलेशन विधेयक 2019 विधेयक बीते अगस्त महीने में लोकसभा में पारित कर दिया, जिसमें कॉमर्शियल (व्यावसायिक) सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने और अल्ट्रस्टिक सरोगेसी को बढ़ावा देने की वकालत की गई है. यह विधेयक कॉमर्शियल सरोगेसी पर तो रोक लगाता ही है, साथ ही इसमें अल्ट्रस्टिक सरोगेसी को लेकर नियम-कायदों को भी सख्त किया गया है. इसके तहत विदेशियों, सिंगल पैरेंट, तलाकशुदा जोड़ों, लिव इन पार्टनर्स और एलजीबीटीक्यूआई समुदाय से जुड़े लोगों के लिए सरोगेसी के रास्ते बंद कर दिए गए हैं. यही कारण है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं से लेकर डॉक्टरों तक ने इसके विरोध में मोर्चा खोल दिया है और विधेयक में संशोधन की मुहिम चलाई जा रही है.

क्या है सरोगेसी?
जब कोई दंपति किसी भी चिकित्सकीय कारण से मां-बाप नहीं बन सकता, तो ऐसी स्थिति में किसी अन्य महिला की मदद ली जाती है. आईवीएफ यानी इनविट्रो फर्टिलाइजेशन तकनीक के जरिये पति के स्पर्म (शुक्राणु) और पत्नी के अंडाणु से बने भ्रूण को किसी अन्य महिला के गर्भ में डाल दिया जाता है. इस प्रक्रिया को सरोगेसी और इस प्रक्रिया से जन्म लेने वाले बच्चे को सरोगेट चाइल्ड कहते हैं. इस प्रक्रिया से जन्म लेने वाले बच्चे का डीएनए सरोगेसी कराने वाले दंपति का ही होता है.

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कॉमर्शियल और अल्ट्रस्टिक सरोगेसी में अंतर
कॉमर्शियल यानी व्यावसायिक सरोगेसी में नि:संतान दंपति पैसों का भुगतान कर सरोगेट मदर के जरिये संतान सुख हासिल करता है, जबकि अल्ट्रस्टिक सरोगेसी में चिकित्सकीय रूप से अयोग्य दंपति सरोगेसी के लिए करीबी रिश्तेदार की ही मदद ले सकते हैं. इसके लिए सरोगेट मां को मेडिकल खर्चे के अलावा किसी तरह का आर्थिक मुआवजा नहीं दिया जा सकता.

क्या है सरोगेसी रेगुलेशन विधेयक 2019

  • सरोगेसी रेगुलेशन विधेयक के तहत केवल ऐसे शादीशुदा दंपति सरोगेसी करा सकते हैं, जिनकी शादी को पांच साल हो गए हों और जो किसी मेडिकल कारण से मां-बाप नहीं बन पाते हैं.
  • इस स्थिति में पहली शर्त यही होगी कि सरोगेट मदर दंपति की करीबी रिश्तेदार हो और वह खुद शादीशुदा हो और उसका खुद का एक बच्चा होना अनिवार्य है. इसके साथ ही सरोगेट मदर की उम्र भी 25 से 35 साल निर्धारित की गई है.
  • सरोगेसी का सहारा लेने वाले पुरुष की आयु 26 से 55 साल, जबकि महिला की 23 से 50 साल होनी चाहिए.
  • सरोगेसी के लिए चिकित्सीय रूप से सक्षम होने का सर्टिफिकेट महिला के पास होना चाहिए, तभी वह सरोगेट मां बन सकती है.
  • सरोगेसी का सहारा लेने वाले दंपति के पास मेडिकल प्रमाण पत्र होना चाहिए कि वे चिकित्सकीय तचौर पर बांझ हैं.
  • दंपति का कोई जीवित बच्चा (बायोलॉजिकल, गोद लिया हुआ या सरोगेट) नहीं होना चाहिए.
  • ऐसे दंपति जिनका बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम नहीं हैं, वे सरोगेसी का विकल्प चुन सकते है अन्यथा ऐसे दंपति को ही सरोगेसी का सहारा लेने की अनुमति होगी, जिनकी कोई संतान नहीं होगी.
  • एक महिला अपने जीवन में एक ही बार सरोगेट मदर बन सकती है.
  • विधेयक में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सरोगेसी बोर्ड का गठन करने का भी प्रावधान है.
  • इस कानून के अस्तित्व में आने के 90 दिनों के भीतर राज्यों को इसके लिए अधिकारी नियुक्त करने होंगे.

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विरोध कर रहे लोगों का तर्क
इंडियन सोसाइटी फॉर थर्ड पार्टी असिस्टेड रिप्रोडक्शन की महासचिव शिवानी सचदेव कहती हैं, 'भारत में हर साल एक लाख 80 हजार आईवीएफ सर्जरी होती हैं, जिनमें से पांच फीसदी ऐसे मामले होते हैं, जब महिला के गर्भाशय में दिक्कतों की वजह से सरोगेसी करानी होती है, लेकिन विधेयक में सरोगेसी के प्रावधानों को इतना कड़ा कर दिया गया है कि इसके लागू होने पर कोई जरूरतमंद दंपति चाहकर भी सरोगेसी नहीं करा पाएगा.' वह कहती हैं, 'विधेयक में गैरकानूनी सरोगेसी के लिए सजा और जुर्माने का प्रावधान है लेकिन सरकार यह क्यों नहीं समझ रही है कि नियमों का इतना सख्त करके वह पिछले दरवाजे से अवैध सरोगेसी के कारोबार को फलने-फूलने का मौका दे रही है.' टीआरएस के बंदा प्रकाश ने कहा कि विधेयक में गर्भपात की समयसीमा के संदर्भ में स्थिति स्पष्ट की जानी चाहिए. तलाकशुदा और विधवा महिलाओं को भी सरोगेसी का अधिकार मिलना चाहिये. महिलाओं को दो बार सरोगेसी से बच्चा पैदा करने की इजाजत देने की व्यवस्था होनी चाहिए.

सरोगेसी रेगुलेशन विधेयक का इतिहास
2008 में सुप्रीम कोर्ट ने भारत को सरोगेसी का हब बताते हुए इसे सरोगेसी टूरिज़्म कहा था. 2009 में लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश में सरोगेसी रेगुलेशन को लेकर कमियां हैं और इसकी वजह से सरोगेट मदर्स का शोषण होता है. इसके बाद 2015 में सरकार ने सरोगेसी को रेगुलेट करने के लिए कुछ दिशा निर्देश बनाए. 21 नवंबर 2016 में यह विधेयक लोकसभा में पेश हुआ था लेकिन इसे संसद की स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया गया था. कमेटी ने 2017 में अपनी रिपोर्ट पेश की और यह 2018 में पारित हुआ.

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सरोगेसी का कारोबार
कनफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) के मुताबिक, देश में सरोगेसी का लगभग 2.3 अरब डॉलर का सालाना कारोबार है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर साल सरोगेसी के जरिये लगभग 2,000 बच्चों का जन्म होता है, जिनमें से अधिकतर विदेशियों को सौंप दिए जाते हैं. देश में सरोगेसी से जुड़े सात से आठ हज़ार क्लिनिक हैं, जो अवैध रूप से चल रहे हैं. ऐसे में पूरी संभावना है कि यह पूरा कारोबार पिछले दरवाजे से चलेगा.

विधेयक का समर्थन कर रहे लोगों का तर्क
सेंटर फॉर रिसर्च की निदेशक डॉ. रंजना कुमारी कहती हैं, 'पूरी दुनिया को मालूम है कि भारत सरोगेसी का हब बन गया है. दुनिया भर से लोग सरोगेसी के लिए भारत का रुख करते थे. सरोगेसी की आड़ में एक पूरी इंडस्ट्री है, जो फल-फूल रही है, जिसे रोकना बहुत जरूरी था और इस विधेयक की मदद से उस पर लगाम लगेगी. सरोगेट मदर्स का शोषम कम होगा. सरोगेसी को लेकर एक तरह की पारदर्शिता आएगी, जो पहले नहीं थी.' वह कहती हैं, 'विधेयक में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि एक महिला अपने जीवन में एक बार ही सरोगेट मदर बन सकती है जबकि पहले एक ही महिला के पांच-पांच बार सरोगेट मदर बनने के मामले सामने आते थे, जो किसी भी महिला के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ ही है. अब कम से कम इस पर रोक लगेगी.'

HIGHLIGHTS

  • किराये की कोख (सरोगेसी) के व्यावसायिक कारोबार पर पूरी तरह से रोक लगाई जा सकेगी.
  • अल्ट्रस्टिक सरोगेसी की वकालत की गई है. यह विधेयक कॉमर्शियल सरोगेसी को रोकता है.
  • हालांकि कुछ शर्तों को लेकर बिगड़ गई है बात. विरोधियों के मुताबिक इनसे नहीं होगा फायदा.
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