अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण क्या पाकिस्तान की जीत और भारत की हार है? पाकिस्तान में तालिबान के जीत पर मिश्रित प्रतिक्रिया देखने-सुनने को मिल रही है. लेकिन सत्ता प्रतिष्ठान और कट्टरपंथी जमात तालिबान की जीत पर जश्न मना रहे हैं. पाकिस्तान का सत्ता प्रतिष्ठान और कट्टरपंथी सोच रहे हैं कि अब तालिबान की मदद से कश्मीर पर कब्जा किया जा सकता है. ऐसे में तालिबान के काबुल पर कब्जा के बाद से ही दुनिया के तमाम देश पाकिस्तान को शक भरी निगाहों से देख रहे हैं. तालिबान और पाकिस्तान का क्या संबंध है, अभी तक तो यह खुलकर सामने नहीं आया है, लेकिन तालिबान को लेकर पाकिस्तान के सत्ता से जुड़े हलको में जो जश्न और खुशी का माहौल है, उससे साफ जाहिर होता है कि पाकिस्तान की न केवल इमरान खान सरकार बल्कि हर सरकार का तालिबान के साथ खास रिश्ता होता है.
भारत में पाकिस्तान के राजदूत रहे अब्दुल बासित ने तालिबान की जीत को भारत की हार की तरह देखा. 15 अगस्त को अब्दुल बासित ने अपने एक ट्वीट में कहा था, ''अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान को अस्थिर करने वाली जगह भारत के हाथ से निकलती जा रही है. अब भारत जम्मू-कश्मीर में और अत्याचार करेगा. पाकिस्तान अब ठोस रणनीति के तहत काम करे ताकि कश्मीर विवाद को सुलझाने के लिए भारत पर राजनयिक दबाव डाला जा सके.''
India, losing space in Afghanistan to destabilise Pakistan, will likely resort to more oppression in illegally occupied Jammu and Kashmir. Pakistan should have a solid strategy in place how to build diplomatic pressure on India towards settling the Kashmir dispute.
— Abdul Basit (@abasitpak1) August 15, 2021
पाकिस्तान में इस समय अधिकांश राजनीतिक शख्सियतों और लोगों को लगता है कि तालिबान के आने के बाद कश्मीर मसले पर भारत को दबाया जा सकता है. ऐसे में सवाल उठता है कि पाकिस्तान सरकार तालिबान से मिलकर कश्मीर को "आजाद" कराने की मुहिम यानी जम्मू-कश्मीर में तालिबान समर्थित आतंकवादियों को भेजना तेज करेगा?
23 अगस्त को एक टीवी बहस में पाकिस्तान की सत्ताधारी तहरीक-ए-इंसाफ़ पार्टी (पीटीआई) की नेता नीलम इरशाद शेख़ ने कहा कि तालिबान ने कश्मीर को आज़ाद कराने के लिए पाकिस्तान का साथ देने की घोषणा की है. नीलम इरशाद शेख़ ने कहा, ''तालिबान हमारे साथ हैं और वे कहते हैं कि इंशाअल्लाह वे हमें कश्मीर फ़तह करके देंगे.''
पाकिस्तान खुले तौर पर भले ही यह स्वीकार नहीं करता है कि तालिबान से उसके रिश्ते दोस्ताना हैं, लेकिन यह बात साफ है कि तालिबान को समर्थन देने की पाकिस्तान की रणनीति लंबे समय से अफ़ग़ानिस्तान के लिए चिंता का विषय रही है. पाकिस्तान,अफ़ग़ानिस्तान और भारत की दोस्ती से आशंकित रहा है.
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अब तालिबान की जीत से उसे लग रहा है कि भारत का डर कम होगा. भारत और तालिबान की दुश्मनी पुरानी है और भारत शायद ही तालिबान को मान्यता दे. अगर तालिबान पाकिस्तान के भीतर इस्लामिक चरमपंथियों को समर्थन देता है तो पाकिस्तान व्यापार मार्ग बंद कर सकता है.
लेकिन तालिबान और पाकिस्तान का संबंध इतना प्रगाढ़ नहीं है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा विवाद है. तालिबान डूरंड रेखा को नहीं मानता है. अफ़ग़ानिस्तान पाकिस्तान से लगी सीमा और सिंधु नदी तक के कुछ इलाक़ों पर अपना दावा करता रहा है.
इसके साथ ही पाकिस्तान में रह रहे पश्तून शरणार्थी भी पाकिस्तान और तालिबान के रिश्ते को प्रगाढ़ बनते समय मोल-तोल करेंगे. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान में तालिबान को लेकर जो खुशी का माहौल है वह राजनीतिक-रणनीतिक रूप से बहुत सफल नहीं होगा.
HIGHLIGHTS
- भारत और तालिबान की दुश्मनी पुरानी है और भारत शायद ही तालिबान को मान्यता दे
- पाकिस्तान को लगता है कि तालिबान से मिलकर कश्मीर मसले पर भारत को दबाया जा सकता है
- काबुल पर तालिबान के कब्जा के बाद से ही दुनिया पाकिस्तान को शक भरी निगाहों से देख रहे है