केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को नासिक पुलिस ने आठ घंटे हिरासत में रखा और फिर कुछ शर्तों के साथ उन्हें रिहा कर दिया. राणे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए अपशब्द कहे थे. नारायण राणे मोदी सरकार में कुटीर, लघु और मध्यम उद्योग मंत्री हैं. नारायण राणे इस समय भाजपा में हैं. इसके पहले वह कांग्रेस में थे. लेकिन नारायण राणे के राजनीतिक जीवन की शुरूआत शिवसेना से हुई. एक समय वे शिवसेना के प्रमुख नेता और बाल ठाकरे के खास माने जाते थे. महाराष्ट्र में भाजपा- शिवसेना लंबे समय तक सहयोगी पार्टी रहे. अब दोनों दल एक दूसरे से अलग हैं. ठीक उसी तरह से नारायण राणे लंबे समय तक शिवसेना में रहे फिर शिवसेना से बाहर हुए. राणे के शिवसेना से बाहर होने का कारण उद्धव ठाकरे हैं. ऐसे में हम जानते हैं कि उद्धव और राणे के बीच ऐसा क्या है कि पार्टी छोड़ने के बाद भी दोनों एक दूसरे को फूंटी आंखों नहीं देखना चाहते हैं?
महाराष्ट्र के ताजा सियासी बवाल की पृष्ठभूमि को देखें तो उद्धव और राणे के बीच तल्खी सबसे पहले 2003 में देखने को मिली थी. बात उन दिनों की है जब बाल ठाकरे धीरे-धीरे अपने सुपुत्र उद्धव ठाकरे को पार्टी कमान सौंपने की तैयारी करने लगे थे. उद्धव 2002 में राजनीति में प्रवेश किया और उन्हें विधानसभा चुनाव प्रभारी बनाया गया. नारायण राणे को यह नागवार गुजरा. वे सार्वजनिक रूप से बाला साबह ठाकरे के निर्णय को चुनौती देने लगे. इसकी शुरुआती झलक 2003 में तब देखने मिली जब महाबलेश्वर की एक सभा में शिवसेना ने उद्धव को 'कार्यकारी अध्यक्ष' घोषित किया था. राणे ने इसका खुलकर विरोध किया था, वे उद्धव के नेतृत्व के खिलाफ थे. साल भर बाद विधानसभा चुनाव हुए. पार्टी की हार के बाद राणे ने आरोप लगाया कि पद और टिकट बेचे जा रहे हैं. साफ तौर पर कहा जाये तो राणे शिवसेना में राज ठाकरे के आदमी थे
उसके बाद शिवसेना विधायक दल के नेता पद से इस्तीफा देकर राणे ने कांग्रेस का दामन थाम लिया. इसके बावजूद, तत्कालीन अध्यक्ष बालासाहेब ठाकरे ने राणे को 'पार्टी विरोधी गतिविधियों' के चलते बाहर कर दिया. 2005 में राणे ने मालवण विधानसभा सीट से हुए उपचुनाव में अपने 'अपमान' का बदला ले लिया. उस चुनाव में बालासाहेब ठाकरे की भावुक अपील कोई काम नहीं आई. राणे के आगे शिवसेना उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो गई थी.
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नारायण राणे शिवसेना में अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत चेंबूर में स्थानीय स्तर पर 'शाखा प्रमुख' के पद से शुरु किया था. लेकिन तेज-तर्रार राणे ने बड़ी तेजी से सियासत की सीढ़ियां चढ़ीं. जल्द ही राणे BMC कॉर्पोरेटर बन गए, फिर बिजली सप्लाई वाली कमिटी के चेयरमैन. राणे का सूरज इतनी तेजी से चढ़ा कि 1999 में वह मनोहर जोशी की जगह कुछ महीने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे. शिवसेना के दिनों में राणे की गिनती उन चुनिंदा लोगों में होती थी जो मुंबई की सड़कों पर शिवसेना की हर बात लागू कराते थे.
राणे ने न सिर्फ BMC में शिवसेना को मजबूत किया, बल्कि कोंकण क्षेत्र में पार्टी को खड़ा करने वाले नेताओं में से भी एक रहे. राणे का कोंकण क्षेत्र में अच्छा जनाधार है. उनके जनाधार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2005 के उपचुनाव में बाला साहब ठाकरे की अपील भी काम नहीं आयी थी.
शिवसेना में रहते और वहां से बाहर होने के बाद भी राणे की उद्धव ठाकरे परिवार से तल्खी कम नहीं हुई. वे ठाकरे परिवार पर तीखे हमले करते रहे हैं. पिछले कुछ सालों से राणे के निशाने पर उद्धव की पत्नी रश्मि ठाकरे और बेटा आदित्य ठाकरे भी आ गए हैं.
HIGHLIGHTS
- शिव सेना से हुई थी नारायण राणे के राजनीतिक जीवन की शुरूआत
- पार्टी में राणे उद्धव नहीं राज ठाकरे के थे खास
- कोंकण क्षेत्र में शिव सेना की जड़ जमाने में नारायण राणे का अहम योगदान