सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में दायर एक याचिका में देश का आधिकारिक नाम भारत रखे जाने की मांग की गई है. अभी संविधान के अनुच्छेद 1 में देश का नाम इंडिया दैट इज भारत यानी इंडिया जिसे भारत भी कहते है, लिखा गया है. याचिकाकर्ता का कहना है कि अनुच्छेद 1 से इंडिया शब्द को हटाया जाना चाहिए क्योंकि ये गुलामी का प्रतीक है. इसके बजाय भारत या हिंदुस्तान ही देश का नाम होना चाहिए, ऐसा करना देश में राष्ट्रीय स्वाभिमान का संचार करेगा. उम्मीद है कि बुधवार को ये मामला चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने लगेगा.
संविधान सभा की बहस
लेकिन आपको बता दे कि देश के नाम को लेकर बहस ये बहुत पुरानी है. देश के संविधान के निर्माण के लिए गठित संविधान सभा में भी इसे लेकर जोरदार बहस हुई थी. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में तैयार किये गए संविधान के ड्राफ्ट के अनुच्छेद 1 को लेकर संविधान सभा में ज़ोरदार बहस हुई. कई सदस्यों को देश के नाम में इंडिया को प्राथमिकता देने पर ऐतराज था.
एच वी कामथ ने विस्तार से अपनी बात रखते हुए इस बात पर जोर दिया कि संविधान सभा को देश के नाम को गम्भीरता से लेना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह ने बताया कि कामथ का विचार था कि मुख्य नाम भारत ही होना चाहिए. उन्हें आर्टिकल 1 की इस भाषा पर जिसमे इंडिया दैट इज भारत लिखा गया था, सख्त एतराज था.
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उन्होंने सुझाव दिया कि इंडिया दैट इज भारत के बजाए Bharat, which english translation is India यानि भारत, जिसका अंग्रेजी अनुवाद इंडिया है ,लिखा जा सकता है.
यही नहीं, बहस के दौरान वैकल्पिक नाम के तौर हिंदुस्तान, हिंद, भारतभूमि, भारतवर्ष जैसे नाम पर भी चर्चा हुई.
विरोध करने वालों में संविधान सभा के सदस्य सेठ गोविंद दास भी थे शामिल
विरोध करने वालो में संविधान सभा के सदस्य सेठ गोविंद दास भी शामिल थे. उन्होंने वेद, महाभारत, पुराण का हवाला देकर ये साबित करने की कोशिश की कि इस देश को हमेशा भारत के नाम से जाना जाता रहा है. गोविंद दास ने कहा कि गांधी जी के नेतृत्व में देश ने भारत माता की जय के नारे के साथ देश की आजादी में हिस्सा लिया, इसलिये इससे बेहतर नाम नहीं हो सकता. गोविंद दास ने भी इंडिया दैट इज भारत के बजाए Bharat known as India also in foreign countries यानि भारत जिसे विदेश में इंडिया के नाम से भी जाना जाता है, लिखने का प्रस्ताव दिया.
बाकी सदस्यों ने भी भारत नाम पर जोर दिया
सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह बताते है कि संविधान सभा के बाकी सदस्यों शिब्बन लाल सक्सेना, कमलापति त्रिपाठी, हरगोबिंद पंत, मौलाना हसरत मोहानी ने भारत नाम को ही वरीयता दिए जाने का समर्थन किया. हसरत मोहानी का एतराज तो संविधान ड्राफ्ट की प्रस्तावना को भी लेकर भी था. प्रस्तावना में -we the people of india लिखा गया है,भारत नाम का ज़िक्र नहीं हैं.
कमलापति त्रिपाठी और डॉक्टर अंबेडकर के बीच नोकझोंक भी हुई
संसोधन का प्रस्ताव गिर गया
बहरहाल बहस के बाद एच वी कामथ की ओर से रखे गए संसोधन के प्रस्ताव पर वोटिंग हुई. 38 सदस्यों ने इसका समर्थन किया, 51 ने इसके खिलाफ वोट किया. जिसके चलते ये प्रस्ताव गिर गया यानि संविधान सभा ने वोटिंग के जरिये बहुमत से इंडिया दैट एज भारत को स्वीकार कर लिया. वैसे एच वी कामथ और गोविंद दास दोनो की ओर से दिये सुझाव में भी भारत, इंडिया दोनों नाम सम्मलित थे, पर उनका एतराज इंडिया को शुरू में रखने को लेकर था.
क्या कोर्ट दखल देगा ?
वकील ज्ञानंत सिंह का मानना है कि मुख्यत ये मामला संसद के अधिकार क्षेत्र मे आता है. संसद इस पर विचार कर सकती है और चाहे तो इसमे फेरबदल कर सकती है. हालांकि चूंकि याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर हो गई तो पहले ये देखना होगा कि चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच इसे सुनवाई के लिए स्वीकार करती भी है या नहीं. अगर स्वीकार करती है तो केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने के लिए कहा जा सकता है अन्यथा याचिकाकर्ता को सरकार के पास अपनी मांग रखने के लिए कोर्ट बोल सकता है.
Source : News Nation Bureau