देश की आजादी खासकर महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की हत्या के बाद हिंदू राष्ट्रवाद (Hindu Nationalism) पर अंगुली उठाने की परंपरा सी चल पड़ी है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को कठघरे में खड़ा करने वाली इस परंपरा का पालन फिर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने वायनाड (Waynad) में किया. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) पर नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) को लेकर निशाना साधा. बगैर यह विचार करे कि उनके परनाना और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की भूमिका 'गांधी हत्या' के बाद आरएसएस को कठघरे में खड़ा करने की 'जल्दबाजी' में खुद ही तमाम प्रश्न खड़े करती है. सच तो यह है कि राष्ट्रपिता की हत्या से जुड़े कई पहलू ऐसे हैं, जिन पर कभी चर्चा तक नहीं हुई. गांधीजी की हत्या के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 4 फरवरी 1948 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया माधव सदाशिव गोलवलकर ऊर्फ गुरुजी को गिरफ़्तार करवाने के बाद आरएसएस समेत कई हिंदूवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया था. यह अलग बात है कि गांधी की हत्या में आरएसएस की संलिप्तता का कोई प्रमाण नहीं मिलने पर छह महीने बाद 5 अगस्त 1948 को गुरु जी रिहा कर दिए गए थे. इसके साथ ही तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल ने संघ को क्लीनचिट देते हुए 11 जुलाई 1949 को उस पर लगे प्रतिबंध भी हटा दिए थे.
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गोलवलकर से जलते थे पंडित नेहरू!
तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू गांधीजी की हत्या में गोलवलकर समेत आरएसएस को फंसाने के लिए मन सा बनाए बैठे थे. नाथूराम गोडसे ने अपने इकबालिया बयान में साफ़-साफ़ कहा था कि गांधीजी की हत्या केवल उसने (गोडसे ने) ही की है. इसमें कोई न तो शामिल है और न ही कोई साज़िश रची गई. गांधी की हत्या के लिए ख़ुद गोडसे ने माना था कि उसने एक इंसान की हत्या की है, इसलिए उसे फांसी मिलनी चाहिए. इसी आधार पर गोड्से ने जज आत्माचरण के फांसी देने के फ़ैसले के ख़िलाफ अपील ही नहीं की. यह अलग बात है कि गोलवलकर की गिरफ्तारी सुनिश्चित कराने के साथ ही पंडित नेहरू ने आरएसएस को भी प्रतिबंधित करा दिया. गांधी हत्या की जांच की प्रगति पर पैनी नजर रखे तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल की संस्तुति के बाद गोलवलकर को रिहा किया गया और आरएसएस से प्रतिबंध हटाया गया. ऐसे में प्रश्न उठना लाजिमी है कि पंडित नेहरू की गोलवलकर समेत आरएसएस से खुन्नस की प्रमुख वजह क्या थी? अगर बीबीसी की 1949 में जारी डॉक्यूमेंट्री की मानें तो गोलवलकर उन दिनों लोकप्रियता के शिखर पर थे. उनकी चमक एक समय पंडित नेहरू के आभामंडल तक को फीका करने लगी थी. संभवतः यही वजह है कि पंडित नेहरू गोलवलकर और आरएसएस से 'ईर्ष्या' करने लगे थे. एक जगह तो यह भी कहा गया है कि गांधीजी की हत्या से ठीक एक दिन पहले यानी 29 जनवरी को पंडित नेहरू कहते पाए गए, 'मैं आरएसएस को बर्बाद कर दूंगा.'
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चौथी गोली का रहस्य
नाथूराम ने बाद में दूसरे आरोपी अपने छोटे भाई गोपाल गोडसे को बताया, 'शुक्रवार शाम 4.50 बजे मैं बिड़ला भवन के दरवाजे पर पहुंच गया. मैं चार-पांच लोगों के झुंड के साथ रक्षक को झांसा देकर अंदर जाने में कामयाब रहा. वहां मैं भीड़ में अपने को छिपाए रहा, ताकि किसी को मुझे पर शक न हो. 5.10 बजे मैंने गांधीजी को अपने कमरे से निकलकर प्रार्थना सभा की ओर जाते हुए देखा. गांधीजी दो लड़कियों के कंधे पर हाथ रखे चले आ रहे थे. जब गांधी मेरे क़रीब पहुंचे तब मैंने जेब में हाथ डालकर सेफ्टीकैच खोल दिया. अब मुझे केवल तीन सेकेंड का समय चाहिए था. मैंने पहले गांधीजी का उनके महान् कार्यों के लिए हाथ जोड़कर प्रणाम किया और दोनों लड़कियों को उनसे अलग करके फायर कर दिया. मैं दो गोली चलाने वाला था लेकिन तीन चल गई और गांधीजी 'आह' कहते हुए वहीं गिर पड़े. गांधीजी ने 'हे राम' उच्चरण नहीं किया था. मुंबई के रहने वाले शोधकर्ता पंकज फणनीस का यहां जिक्र करना मुनासिब होगा, जिन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में गांधी हत्या की नए सिरे से नए सबूतों के आलोक में जांच कराने की याचिका दायर की थी. हालांकि मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और एलएन राव ने इसे खारिज कर दिया. यह अलग बात है कि याचिका में पंकज ने कुछ किताबों और गांधीजी को लगी गोलियों के घावों की फोरेंसिक रिपोर्ट का हवाला दिया. पंकज ने अमेरिका स्थित फोरेंसिक विशेषज्ञ के हवाले से कहा था कि गांधीजी के शरीर पर तीन नहीं चार निशान थे. गौरतलब है कि बापू के हत्यारे गोडसे ने भी अपने बयान में तीन गोलियां चलाने की ही बात कही है. इसके अलावा उस वक्त मौजूद एक विदेशी पत्रकार ने भी कहा है कि उसने चार गोलियां चलने की आवाज सुनी थी. इसके बावजूबद आज तक चौथी गोली के रहस्य को सुलझाने की कोशिश नहीं की गई, बल्कि इस तथ्य को सिरे से खारिज कर दिया गया.
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गांधीजी को अस्पताल लेकर क्यों नहीं गए?
यह एक बड़ा सवाल है जिसे लेकर कोई तार्किक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया. गांधीजी को दो से तीन फुट के फासले से पिस्तौल से गोली मारी गई. उनके पेट और छाती से खून निकलना शुरू हो गया. प्राथमिकी में लिखा है महात्माजी को बेहोशी की हालत में उठाकर बिड़ला हाउस के रिहायशी कमरे में ले गए और उनका उसी वक्त इंतकाल हो गया. पुलिस मुलजिम को थाने ले गई. सवाल यह उठता है कि पुलिस गांधीजी को अस्पताल लेकर क्यों नहीं गई? इसके बजाए उन्हें लगभग चार घंटे तक बिड़ला हाउस में ही क्यों रखा गया? उन्हें वहीं घटनास्थल पर ही मृत घोषित कर दिया गया और उनका शव उनके आवास बिड़ला हाउस में रखा गया, जबकि क़ानूनन जब भी किसी व्यक्ति पर गोलीबारी होती है और उसमें उसे गोली लगती है, तब सबसे पहले उसे पास के अस्पताल ले जाया जाता है और वहां मौजूद डॉक्टर ही बॉडी का परिक्षण करने के बाद उसे 'ऑन एडमिशन' या 'आफ्टर एडमिशन' मृत घोषित करते हैं. इसके बाद गांधीजी के शव का पोस्टमार्टम भी नहीं किया जाता है. चौथी गोली का रहस्य इस तरह आज भी बरकरार है. यह सवाल भी अनुत्तरित है कि आखिर गांधीजी को मृत घोषित करने की इतनी जल्दी क्यों थी? क्यों नहीं उनके शव का पोस्टमार्टम हुआ ताकि चश्मदीद गवाहों के तीन-चार गोली चलने की आवाज की पुष्टि हो जाती?
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गांधीजी की हत्या के तीन आरोपी जो आज भी फरार
गांधीजी की हत्या से जुड़े दस्तावेज़ गोपनीय हैं और इन्हें सार्वजनिक करने को लेकर केंद्रीय सूचना आयोग में एक मामले की सुनवाई चल रही है. इस दौरान ऐसे कई पहलुओं का ज़िक्र हुआ है जो बताते हैं कि गांधीजी की हत्या के केस में भी हद दर्जे की लापरवाही बरती गई थी. उनकी हत्या के मामले में नाथूराम गोडसे के अलावा 11 और लोगों को आरोपी बनाया गया था. इन 12 लोगों में से 9 लोगों को या तो सज़ा हुई या तो वे बरी हो गए. सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक तीन आरोपी-गंगाधर दंडवते, गंगाधर जाधव और सूर्यदेव शर्मा केस चलने के समय से ही फरार हैं. इन 71 सालों में इनका कोई पता नहीं चला. महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी का कहना है कि इन तीन फरार आरोपियों ने ही गोडसे को पिस्टल मुहैया कराई थी. बताते हैं कि गांधीजी की हत्या के चार घंटे से भी अधिक समय बाद तक प्राथमिकी में अपराधी के सामने का खाना खाली छोड़ा गया था और नाथूराम गोडसे के नाम का उल्लेख नहीं था, बल्कि एक चश्मदीद के बयान में नारायण विनायक गोडसे का नाम लिया गया था. मामले के शुरुआती जांच अधिकारी तुगलक रोड पुलिस थाने के तत्कालीन एसएचओ दसौंधा सिंह, पुलिस उप अधीक्षक जसवंत सिंह और कांस्टेबल मोबाब सिंह थे. मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दर्ज किया गया था. बताते हैं कि फरार आरोपी ग्वालियर में पकड़े गए थे, लेकिन उन्हें गैर-जरूरी बताकर गिरप्तार नहीं किया गया. उसके बाद से तो वह जैसे हवा में गायब हो गए. अगर वे पकड़े जाते तो चौथी गोली समेत गोडसे तक पहुंची बेरेटा रिवॉल्वर का रहस्य भी सामने होता.
HIGHLIGHTS
- तीन आरोपी-गंगाधर दंडवते, गंगाधर जाधव और सूर्यदेव शर्मा केस चलने के समय से ही फरार हैं.
- फोरेंसिक विशेषज्ञ के हवाले से कहा था कि गांधीजी के शरीर पर तीन नहीं चार निशान थे.
- पुलिस गांधीजी को अस्पताल लेकर क्यों नहीं गई? उन्हें बिड़ला हाउस में ही क्यों रखा गया?