सोशल मीडिया पर यह खबर तेजी से फैल रही है कि मोदी सरकार उत्तर प्रदेश को बांटने की रणनीति पर काम कर रही है और दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के मूड में है. हालांकि अभी इन खबरों की किसी भी स्तर पर पुष्टि नहीं हुई है. भले ही इन खबरों की दम हो या न हो लेकिन उत्तर प्रदेश के बंटवारे के लिए कोई ठोस कदम बीएसपी अध्यक्ष मायावती की सरकार ने ही उठाया था. बता दें नवंबर 2011 में उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मायावती सरकार ने राज्य विधानसभा में उत्तर प्रदेश को चार राज्यों पूर्वांचल, बुंदेलखण्ड, पश्चिम प्रदेश और अवध प्रदेश में बांटने का प्रस्ताव पारित कराकर केन्द्र के पास भेजा था.हालांकि कुछ ही महीनों बाद प्रदेश में सपा की सरकार बनने के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया था.
दरअसल उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांटने की मांग लंबे समय से हो रही है. मायावती की सरकार ने एक सार्थक पहल भी की लेकिन वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा ने उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में बांटने का विधेयक तत्कालीन मायावती सरकार द्वारा पारित कराये जाने का कड़ा विरोध करते हुए इसे चुनावी मुद्दा बना दिया. उस चुनाव में बसपा को पराजय का सामना करना पड़ा था.
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पूर्वांचल राज्य की मांग पुरानी
- 1962 में गाजीपुर से सांसद विश्वनाथ प्रसाद गहमरी ने लोकसभा में यहां के लोगों की समस्या और गरीबी को उठाया तो प्रधानमंत्री नेहरू रो दिए.इसी के बाद इस मुद्दे पर बात शुरू हुई.हालांकि पूर्वांचल राज्य की मांग आंच धीमी पड़ती गई.इसकी मांग ने कभी भी बड़े आंदोलन का रूप नहीं लिया.
- वर्ष 1995 में समाजवादी विचारधारा के लोग गोरखपुर में इकट्ठा हुए और पूर्वांचल राज्य बनाओ मंच का गठन किया.इसमें शतरूद्र प्रकाश, मधुकर दिघे, मोहन सिंह, रामधारी शास्त्री, प्रभु नारायण सिंह, हरिकेवल प्रसाद, श्यामधर मिश्र, और राजबली तिवारी आदि विशेष रूप से शामिल रहे.कल्पनाथ राय व पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी पूर्वांचल राज्य का मुद्दा उठाया.तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह व एचडी देवगौड़ा के समर्थन के बाद कुछ उम्मीद जगी पर लालू यादव ने सारनाथ में पूर्वांचल राज्य का मुख्यालय बनारस में बनाने की बात कह दी और इसकी गंभीरता यहीं खत्म हो गई.
- मायावती ने 2007 में उत्तर प्रदेश को तीन हिस्सों में बांटकर पूर्वांचल, बुंदेलखंड व हरित प्रदेश के गठन का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि केंद्र सरकार चाहे तो इनका गठन हो सकता है.विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस नए राज्यों के गठन के मुद्दे की पड़ताल कर रही थी, जिसे मायावती ने भांप कर पासा फेंक दिया.समाजवादी पार्टी सूबे के बंटवारे के पक्ष में कभी नहीं रही.
बुंदेलखंड की मांग ठंडी पड़ी
उत्तर प्रदेश के 7 और मध्य प्रदेश के छह जिलों में फैले बुंदेलखंड को अलग राज्य घोषित किए जाने की मांग करीब 20 साल से की जा रही है, लेकिन यह कभी चुनावी मुद्दा नहीं बन पायी.लगभग 70 हजार वर्ग किलोमीटर में फैले, दो करोड़ आबादी वाले इस क्षेत्र का दायरा उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी तथा ललितपुर जिले एवं मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, दमोह, पन्ना, सागर और दतिया तक विस्तृत है.
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वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव के समय पृथक बुंदेलखंड की मांग को लेकर जोरदार अभियान चलाने वाले अभिनेता राजा बुंदेला ने 'बुंदेलखण्ड कांग्रेस' बनाकर इसी मुद्दे पर चुनाव भी लड़ा था. केन्द्र में भाजपा की अगुआई में सरकार बनने पर वह बुंदेलखंड को अलग राज्य घोषित करने की शर्त पर बीजेपी में शामिल हुए थे.
Source : दृगराज मद्धेशिया