जानें क्‍यों नहीं हो सका उत्‍तर प्रदेश का 4 राज्‍यों में बंटवारा, किसने कहां लगाया अड़ंगा

उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव विधानसभा में पास कराया था.

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Drigraj Madheshia
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जानें क्‍यों नहीं हो सका उत्‍तर प्रदेश का 4 राज्‍यों में बंटवारा, किसने कहां लगाया अड़ंगा

अटल बिहारी वाजपेयी और मायावतीी का फाइल फोटो

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उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों पूर्वांचल (Purvanchal), पश्चिम प्रदेश (West State), अवध प्रदेश (Awadh Pradesh) और बुंदेलखण्ड (Bundelkhand) में बांटने सम्बंधी प्रस्ताव को 16 नवंबर 2011 को तत्‍कालीन मायवती (Mayawati) सरकार ने मंत्रिपरिषद की बैठक में मंजूरी दी और इस प्रस्ताव को 21 नवंबर को विधानसभा में पारित कराकर सत्र को अनिश्‍चित काल के लिए स्‍थगित कर दिया गया. इस प्रस्‍ताव को उस समय केंद्र में बैठी सरकार को भेजा गया, केंद्र सरकार ने कई स्पष्टीकरण मांगते हुए वापस भिजवा दिया. सरकार के प्रस्ताव के मुताबिक पूर्वाचल में 32, पश्चिम प्रदेश में 22, अवध प्रदेश में 14 और बुंदेलखण्ड में 7 जिले शामिल होने थे.

उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव विधानसभा में पास कराया था. हालांकि समाजवादी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और कुछ अन्य दलों ने उस प्रस्ताव का विरोध किया था. मायावती का वह विभाजन-कार्ड तो 2012 के चुनाव में नहीं चला और सपा की सरकार बन गई.

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ऐसे होता विभाजन
उत्तर प्रदेश का विभाजन अगर चार विभिन्न राज्यों में होता तो पूर्वांचल में 24 जिले आते. इनमें वाराणसी, गोरखपुर, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, बस्ती जैसे जिले उल्लेखनीय हैं. इसी तरह बुंदेलखंड राज्य बना तो तीन मंडल और 11 जिले चले जाते. इनमें झांसी, महोबा, बांदा, हमीरपुर, ललितपुर, जालौन जैसे जिले शामिल होते. पश्चिम प्रदेश बनने पर आगरा, अलीगढ़, मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद, बरेली जैसे जिले शामिल होते. अवध प्रदेश में लखनऊ, देवीपाटन, फैजाबाद, इलाहाबाद, कानपुर इसके हिस्से होते.

ये थे केंद्र के सवाल

विधानसभा में उत्‍तर प्रदेश के बंटवारे का प्रस्‍ताव पास कराने के बाद तत्‍कालीन मायवती सरकार ने केंद्र को भेज दिया. लेकिन केंद्र सरकार ने कई स्पष्टीकरण मांगते हुए वापस भिजवा दिया. केंद्रीय गृहमंत्रालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से स्पष्ट करने को कहा है कि नए राज्यों की सीमाएं कैसी होंगीं, उनकी राजधानियां कहां बनेंगीं और भारतीय सेवा के जो अधिकारी इस समय उत्तर प्रदेश में काम कर रहे हैं, उनका बंटवारा उन चार राज्यों में किस तरह से होगा. सबसे अहम सवाल केंद्र सरकार ने ये पूछा था कि देश के सबसे अधिक आबादी वाले प्रदेश पर जो भारी भरकम कर्ज़ है, उसका बंटवारा किस तरह होगा. केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार से ये भी पूछा था कि वह वेतन के बोझ को किस तरह से बांटना चाहेगी?

बंटवारे पर क्या कहते रहे हैं नेता

समाजवादी पार्टी के निवर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव कहते रहे हैं कि प्रदेश के बंटवारे की बात करने वाले लोग एकता के दुश्मन हैं. मुलायम ने उत्तराखंड के गठन का भी विरोध किया था. मुलायम हरित प्रदेश बनाने की मांग का भी कट्‌टर विरोध करते रहे हैं.

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी स्पष्ट कहा था कि वे उत्तर प्रदेश का विभाजन नहीं होने देंगे. उत्तर प्रदेश के और बंटवारे पर भारतीय जनता पार्टी का स्टैंड ढुलमुल है.

उस समय कांग्रेस की उत्तर प्रदेश इकाई के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने कहा था कि चुनाव होने में बस कुछ दिन ही रह गए हैं. ऐसे में मायावती सरकार विभाजन का प्रस्ताव ला रही है. इसका कोई मतलब नहीं है. यह एक राजनीतिक स्टंट के सिवा कुछ नहीं है. कांग्रेस छोटे राज्यों की पक्षधर रही है. केंद्र सरकार द्वितीय पुनर्गठन आयोग गठित करे और उसकी टीम यहां आए और वह सारी बातों पर सहमत हो तभी उत्तर प्रदेश सरकार को विभाजन का प्रस्ताव रखना चाहिए.

छोटे राज्‍यों को अस्‍तीत्‍व में आने के कुछ रोचक तथ्‍य

  • उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जैसे तमाम राज्यों को अस्तित्व में लाने की प्रक्रिया कांग्रेस के कार्यकाल में पुख्ता हुई और भाजपा के शासनकाल में मंजूर हुई.
  • वर्ष 1953 में स्टेट ऑफ आंध्र पहला राज्य बना, जिसे भाषा के आधार पर मद्रास स्टेट से अलग किया गया था. इसके बाद दिसंबर 1953 में जवाहर लाल नेहरू ने न्यायमूर्ति फजल अली की अध्यक्षता में पहले राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया.
  • एक नवम्बर 1956 में फजल अली आयोग की सिफारिशों के आधार पर राज्य पुनर्गठन अधिनियम-1956 लागू हो गया और भाषा के आधार पर देश में 14 राज्य और सात केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए. मध्य प्रांत के शहर नागपुर और हैदराबाद के मराठवाड़ा को बॉम्बे स्टेट में इसलिए शामिल किया गया, क्योंकि वहां मराठी बोलने वाले अधिक थे.
  • त्रिपुरा को असम से भाषा के आधार पर अलग किया गया तो मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड का गठन नस्ल के आधार पर किया गया. सन 2000 में उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ के बंटवारे के आधार भी विकास नहीं थे बल्कि असलियत में सत्ताई महत्वाकांक्षा, नस्ल और भाषा थी. धीरे-धीरे देश के कई भागों में इस मुद्दे ने जोर पकड़ा.

Source : दृगराज मद्धेशिया

mayawati Bundelkhand division of up purvanchal rajya Atal Bihari Bajpayee
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