मोदी 2.0 सरकार (Modi 2.0) के गठन के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) अपने दूसरे कार्यकाल में मालदीव की अपनी पहली यात्रा शनिवार से शुरू कर रहे हैं. वहां से लौटते हुए वह श्रीलंका जाएंगे. ईस्टर पर हुए श्रंखलाबद्ध बम धमाकों (Srilanka Serial Blasts) के बाद किसी भी विदेशी राष्ट्राध्यक्ष की यह पहली श्रीलंका यात्रा होगी. पीएम नरेंद्र मोदी के साथ ही विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) भूटान हो आएंगे. इन दोनों ही यात्राओं के गहरे कूटनीतिक (Diplomatic Repercussion) निहितार्थ हैं. वास्तव में यह पाकिस्तान को सिरे से किनारे लगाने औऱ चीन को उसकी जगह दिखाने की मुहिम की शुरुआत है.
एस जयशंकर समेत पीएम मोदी अपनी-अपनी विदेश यात्राओं से पहले स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके लिए 'नेबरहुड फर्स्ट' पॉलिसी सर्वोपरि है. साथ ही सार्क की तुलना में बिम्सटेक देशों को अपने साथ मजबूती से खड़ा कर भारत बंगाल की खाड़ी में अपना प्रभाव और वर्चस्व बढ़ाने की कूटनीतिक मुहिम को भी और धार दे रहा है. गौरतलब है कि सागर सिद्धांत (Sagar Doctrine) के अनुरूप ही नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद पर अपने दूसरे शपथग्रहण समारोह में बजाय सार्क के बिम्सटेक देशों के प्रमुखों को न्यौता दिया था.
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पहला झटका चीन को
पीएम मोदी के मालदीव (Maldives) और श्रीलंका दौरे से चीन को पहला झटका लगेगा. गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी अपने पहले पीएम कार्यकाल में मालदीव नहीं गए, क्योंकि वहां पर चीन समर्थक अब्दुल्ला यमीन सरकार ( Abdullah Yameen regime) थी. चीन के प्रभाव में तत्कालीन मालदीव सरकार ने भारत के साथ संबंधों को ताक पर रख दिया था. अब दूसरे कार्यकाल में पीएम मोदी अपनी पहली ही विदेश य़ात्रा पर मालदीव इसलिए जा रहे हैं, क्योंकि मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सलेह (Ibrahim Solih government) न सिर्फ भारत समर्थक हैं, बल्कि उन्हें चीन के कर्ज के मकड़जाल से उबरने में भी भारत की मदद चाहिए. जाहिर है भारत तो पहले से लुक ईस्ट (Look East) और नेबरहुड पॉलिसी को अमलीजामा पहनाने को आतुर है. इसी तरह श्रीलंका में भी पीएम मोदी कोलंबो में ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (East Terminal Container) के कार्य का जायजा लेंगे. इसका निर्माण भारत-जापान-श्रीलंका के सहयोग से हो रहा है. यह चीन द्वारा श्रीलंका में बनाई जा रही 'पोर्ट सिटी' से चंद किलोमीटर की दूरी पर है.
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सामरिक रणनीति को लगेंगे चार चांद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मालदीव और श्रीलंका दौरे से चीन की हिंद महासागर (Indian Ocean) में बढ़ती गतिविधियों की काट कर रहे हैं. इसी वजह से उन्होंने नेबरहुड पॉलिसी के तहत बंगाल की खाड़ी के देशों को भारत के साथ लाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है. चीन पर नजर रखने के लिए भारत एक तीर से दो निशाने की कहावत चरितार्थ कर रहा है. गौरतलब है भारत मालदीव में तटीय इलाकों पर नजर रखने के लिए राडार प्रणाली (Radar) और मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स के प्रशिक्षण में मदद कर रहा है. जाहिर है मालदीव को राडार तकनीक में मदद कर भारत एक तरह से चीन की हिंद महासागर में गतिविधियों में नजर रखेगा. इसी तरह श्रीलंका में निवेश (Investment In Srilanka) से भारत एक तो पड़ोसी देश की चीन पर निर्भरता को कम करने का प्रयास करेगा, वहीं बम धमाकों के बाद यात्रा कर पीएम मोदी यह संदेश देना चाहेंगे कि भारत हर सुख-दुख की घड़ी में अपने पड़ोसियों के साथ है.
गौरतलब है श्रीलंका (Srilanka) में चीन ने अच्छा-खासा निवेश कर रखा है, लेकिन पूर्ववर्ती सरकार बगैर इसकी चिंता किए चीन को भाव देने में लगी थीं. ऐसे में बतौर पीएम रानिल विक्रमसिंघे (ranil wickremesinghe) के आगमन ने श्रीलंका को फिर से यह समझ पाने में सफलता दिलाई है कि चीन अपना आर्थिक शिकंजा कसकर वास्तव में उन पर अपना नियंत्रण ही स्थापित करना चाहता है. ऐसे में अब वे भारत की मदद से जनकल्याणकारी योजनाओं को अमली जामा पहना कर लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाते हुए परस्पर सामरिक हितों (Strategic Ties) को भी साधेंगे.
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सार्क की तुलना में बिम्सटेक को महत्व
भारत द्वारा सार्क को थोड़ा किनारे कर बंगाल की खाड़ी (Bay Of Bengal) के देशों को तरजीह देना यूं तो नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी का ही अंग है, लेकिन इसके मूल में पाकिस्तान (Pakistan) को सिरे से किनारे लगा देना है. गौर करें कि आतंकवाद (Terrorism) के मसले पर भारत की आपत्ति के बाद पिछला सार्क सम्मेलन नहीं हो सका था. इसके पहले अफगानिस्तान, नेपाल और अन्य सार्क देश भारत के साथ आ ही चुके थे. पीएम मोदी इस कूटनीतिक कदम से पड़ोसियों को साधने का प्रयास कर रहे हैं. इससे पीएम मोदी भारत की दोस्ती बिम्सटेक (Bimstec) देशों से गहरी करना चाहते हैं. बिम्सटेक से जुड़े देशों ने 14 तकनीकी और आर्थिक क्षेत्रों में एक दूसरे के सहयोग (Mutual Cooperation) के लिए सहमति व्यक्त की. इससे भारत को भी सीधा फायदा मिल रहा है. इनमें पर्यटन, जलवायु परिवर्तन, तकनीक से लेकर कृषि, सार्वजनिक स्वास्थ्य और अधिक सहयोग शामिल है.
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यहां भी सबका साथ सबका विकास
एस जयशंकर (S Jaishankar) ने विदेश सचिव रहते हुए चीन और अमेरिका के संदर्भ में जिस कूटनीतिक क्षमता और संपर्कों का मुजाहिरा किया है, उससे पीएम मोदी खासे प्रभावित हैं. यही वजह है कि अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी ने उन्हें सीधे विदेश मंत्री (Foreign Minister) ही बना दिया है. संदेश साफ है अब मोदी सरकार कूटनीतिक स्तर पर अपने दो परोक्ष-अपरोक्ष 'दुश्मनों' को हर तरफ से घेरने की कोशिश करेगी. जाहिर है इसके लिए एक ऐसा शख्स विदेश मंत्री के पद पर होना चाहिए जो न सिर्फ इन देशों के चेहरे से वाकिफ हो, बल्कि इनके चाल-चरित्र को भी गहराई से समझता हो. चीन के साथ डोकलाम (Doklam) विवाद में एस जयशंकर ने अपनी कूटनीतिक क्षमता दिखा कर साबित कर दिया है कि वह नए भारत की नई वैश्विक छवि बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे.
HIGHLIGHTS
- अब बंगाल की खाड़ी में स्थित देशों से मोदी कहेंगे-सबका साथ सबका विकास
- मालदीव को राडार तकनीक का हस्तांतरण, लेकिन निशाने पर चीन
- बिम्सटेक को तरजीह दे पाकिस्तान को अलग-थलग करने की मुहिम
Source : News Nation Bureau