अगर इन दोनों गांवों की मिट्टी नहीं मिलती तो चांद पर नहीं होता लैंडर विक्रम (Lander Vikram)

चांद पर चंद्रयान-2 की लैंडिंग सुरक्षित करने के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को कम पापड़ नहीं बेलने पड़े.इसरो ने अमेरिका के नासा से संपर्क भी किया और इसका सौदा काफी महंगा पड़ रहा था.

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Drigraj Madheshia
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अगर इन दोनों गांवों की मिट्टी नहीं मिलती तो चांद पर नहीं होता लैंडर विक्रम (Lander Vikram)

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर (theverge.)

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चांद (Moon) पर अपना लैंडर विक्रम (Lander Vikram)मौजूद है. यह 130 करोड़ भारतीयों की उम्‍मीदों का सूरज है. इसरो (ISRO) के वैज्ञानिक लैंडर विक्रम (Lander Vikram)को दोबारा अपने पैरों पर खड़े होने की आशा संजोए हैं क्‍योंकि लैंडर विक्रम (Lander Vikram)पूरी तरह से नष्ट नहीं हुआ है. सॉफ्ट लैंडिंग (Soft Landing) नहीं होने की वजह से वह 180 डिग्री के कोण पर चांद (Moon) की सतह से टकराया है. यानी उसके दो पैर ऊपर उठे हुए हैं. अगर ऑर्बिटर (Orbiter) दोबारा विक्रम से संपर्क स्थापित करने में सफल रहता है, तो विक्रम के अपने पैरों पर खड़ा होने की उम्मीदें फिर से जीवित हो उठेंगी. इसरो (ISRO)के वैज्ञानिक विक्रम से संपर्क साधने में जुटे हैं और भगवान ने चाहा तो उनकी यह मुश्‍किल वैसे ही आसान हो जाएगी जब चंद्रयान 2 तैयार हो रहा था. चांद (Moon) की सतह पर लैंडर और रोवर उतारने के लिए धरती पर कृत्रिम चांद (Moon) की सतह के निर्माण के लिए चांद (Moon) जैसी मिट्टी नहीं मिल रही थी.

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चूंकि उड़ान से पहले लैंडर के पैर और रोवर के पहियों का उस जमीन पर परीक्षण जरूरी था. ठीक चांद (Moon) की सतह जैसी मिट्टी और चट्टान के लिए इसरो (ISRO)ने अमेरिका के नासा से संपर्क भी किया और इसका सौदा काफी महंगा पड़ रहा था. इसकी कीमत $150 प्रति किलो था, यानी करीब ₹10000 प्रति किलो. इसरो (ISRO)को जरूरत थी करीब 60 टन मिट्टी चट्टान की. इसरो (ISRO)ने एक स्थानीय समाधान की तलाश की. कई भूवैज्ञानिकों ने इसरो (ISRO)को बताया कि तमिलनाडु में सलेम के पास एनॉर्थोसाइट चट्टानें हैं, जो चंद्रमा की मिट्टी के सामान हैं.

तमिलनाडु के दो गांवों ने किया समाधान

चंद्रयान-2 की सुरक्षित लैंडिंग (Chandrayaan 2 landing) में तमिलनाडु के इन दो गांव का नाम सीतमपोंडी और कुन्नामलाई है. इन गांवों में पाई जाने वाली मिट्टी/पत्थर चांद (Moon) की सतह पर मौजूद मिट्टी/पत्थर से मिलती-जुलती है. वैज्ञानिकों ने चांद (Moon) के साउथ पोल के अध्ययन के लिए यहां कि मिट्टी बेंगलुरु की प्रयोगशाला में परीक्षण किया था. इस काम के लिए शुरुआती बजट 25 करोड़ रुपये था, लेकिन सेवा देने वाली कंपनी ने कुछ भी नहीं लिया. इस कारण काफी पैसा बच गया.

चांद (Moon) की जमीन बनाना क्यों जरूरी था

धरती की सतह से चांद (Moon) की सतह एकदम अलग है. इसलिए चांद (Moon) की सतह पर लैंडर और रोवर उतारने के लिए धरती पर कृत्रिम चांद (Moon) की सतह का निर्माण जरूरी था.यूआर राव सेटेलाइट सेंटर (इसरो (ISRO)सेटेलाइट सेंटर) के निदेशक रहे एम अन्नादुरई के मुताबिक, चांद (Moon) की सतह क्रेटर (बड़े-बड़े गढ्डे), चट्टानों और धूल से ढकी हुई है. इसकी मिट्टी की बनावट पृथ्वी से बिल्कुल अलग है. चूंकि उड़ान से पहले लैंडर के पैर और रोवर के पहियों का उस जमीन पर परीक्षण जरूरी था.

पथरीली है चांद (Moon) की सतह

  • चांद सतह क्रेटर (बड़े-बड़े गड्ढे), चट्टानों और धूल से ढकी हुई है.
  • इसकी मिट्टी की बनावट पृथ्वी से बिल्कुल अलग है.

रोवर का परीक्षण

  • शुरुआत में रोवर प्रज्ञान में चार पहिये लगे थे. लेकिन परीक्षण के बाद इसरो (ISRO)के वैज्ञानिकों ने इसे और अधिक स्थिरता देने के लिए इसमें छह पहिये लगाए.
  • कुछ बदलाव पहियों के आकार के साथ भी किए गए.
  • रोवर के भार को कम करने और धरती से कम होने वाले चांद (Moon) के गुरुत्व बल से तारतम्य बैठाने के लिए उसके साथ हीलियम के गुब्बारे लगाए गए.
  • धरती से चांद (Moon) पर गुरुत्वाकर्षण कम है यानी अगर कोई वस्तु धरती पर 100 किलो की है तो वह वस्तु चांद (Moon) पर महज 17 किलो की ही होगी.
  • रोवर और लैंडर के बीच संचार क्षमताओं का परीक्षण हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में किया गया.

लैंडर का परीक्षण

  • लैंडर विक्रम (Lander Vikram)का परीक्षण करने के लिए, कर्नाटक में चित्रदुर्ग जिले के चल्लाकेरे में चांद (Moon) के कृत्रिम क्रेटर बनाए गए.
  • सॉफ्ट-लैंडिंग (Chandrayaan 2 landing) से पहले लैंडर विक्रम (Lander Vikram)के सेंसर यह जांचेंगे कि क्या उतरने वाला भूभाग सुरक्षित है या नहीं.
  • लैंडिंग (Chandrayaan 2 landing) के बाद भी अगर इलाक़ा उपयुक्त नहीं है तो लैंडर ऊपर जाकर एक स्थान पर स्थिर हो जाएगा.
  • टीम ने एनआरएससी (नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर) से संबंधित छोटे प्लेन में सेंसर लगा दिए और सेंसर की जांच करने के लिए इसे दो बार कृत्रिम सतह के ऊपर उड़ाया.
  • अन्य अंतरिक्ष एजेंसियां भी अपने उपकरणों की जांच के लिए ऐसे परीक्षण स्थलों का निर्माण करती हैं जिससे वास्तविक रूप से उतरने में लैंडर को कोई दिक्कत न आए.
  • लैंडर के एक्युटेटर्स महेंद्रगिरि के इसरो (ISRO)सेंटर में जांचे गए. यहीं इसके थ्रस्टर्स की भी जांच की गई.
  • लैंडर के पैर की दो परिस्थितियों में जांच की गई. एक उतरते समय इंजन बंद करके और दूसरा इंजन चालू रहते.

Source : शंकरेष के.

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