Independence Day 2021:करतार सिंह सराभा को भगत सिंह क्यों मानते थे अपना आदर्श

16 नवम्बर 1915 को करतार सिंह सराभा को जब फांसी पर चढ़ाया गया, तब वे मात्र साढ़े उन्नीस वर्ष के थे. शहीद-ए-आजम भगत सिंह उन्हें अपना आदर्श मानते थे.

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Pradeep Singh
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क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा( Photo Credit : News Nation)

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Independence Day 2021:सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से भारत को विदेशी दासता से मुक्त करने का सपना देखने वाले करतार सिंह सराभा फांसी पर चढ़कर स्वतंत्रता संग्राम की चिनगारी को ज्वाला में बदल दिया. 16 नवम्बर 1915 को करतार को जब फांसी पर चढ़ाया गया, तब वे मात्र साढ़े उन्नीस वर्ष के थे. शहीद-ए-आजम भगत सिंह उन्हें अपना आदर्श मानते थे. पंजाब की धरती ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए अनेक रत्न पैदा किए जो देश-विदेश में स्वतंत्रता की अलख जगाते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी. अपने अल्प जीवन में ही करतार सिंह ने देशप्रेम की जो परिभाषा गढ़ी, आने वाले दिनों में वह स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों के लिए आदर्श बना.

वीर प्रसूता धरती पंजाब के लुधियाना ज़िले के सराभा गांव में 24 मई 1896 को माता साहिब सिंह की कोख से रत्न पैदा हुआ जिसका नाम  का नाम करतार रखा. पिता मंगल सिंह का करतार सिंह के बचपन में ही निधन हो गया था. करतार सिंह की एक छोटी बहन धन्न कौर भी थी. दोनों बहन-भाइयों का पालन-पोषण दादा बदन सिंह ने किया. करतार सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना के स्कूलों में हासिल की. बाद में उन्हें उड़ीसा में अपने चाचा के पास जाना पड़ा.उड़ीसा उन दिनों बंगाल प्रांत का हिस्सा था, जो राजनीतिक रूप से अधिक सचेत था. बंगाल के बौद्धिक एवं क्रांतिकारी वातावरण का प्रभाव करतार सिंह के मन-मस्तिष्क पर भी पड़ा. 

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करतार सिंह सराभा पढ़ने में मेधावी थे. उनकी बौद्धिकता को देखते हुए परिवार ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजने का निर्णय लिया. परिवार की सहमति अमेरिका पर बनी. 1 जनवरी 1912 को सराभा ने अमेरिका की धरती पर पांव रखा. उस समय उसकी आयु पंद्रह वर्ष से कुछ महीने ही अधिक थी. सराभा गांव का रुलिया सिंह 1908 में ही अमेरिका पहुंच गया था और अमेरिका-प्रवास के प्रारंभिक दिनों में सराभा अपने गांव के रुलिया सिंह के पास ही रहा. अमेरिका-प्रवास के दौरान एक आज़ाद देश में रहते हुए उनके मन में अपनी राष्ट्रीय अस्मिता, आत्मसम्मान व आज़ाद की तरह जीने की इच्छा पैदा हुई.  

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अपने गांव के रुलिया सिंह के पास कुछ समय अमेरिका के एस्टोरिया में रहने के दौरान करतार सिंह सराभा की मुलाकात बाबा सोहन सिंह भकना, हरनाम सिंह टुंडीलाट, काशीराम और ज्वाला सिंह ठट्ठीआं से भी हुई, जिन्होंने उन्हें बर्कले विश्वविद्यालय में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया, जहां सराभा रसायन शास्त्र का विद्यार्थी बने. बर्कले विश्वविद्यालय में करतार सिंह पंजाबी होस्टल में रहने लगा. बर्कले विश्वविद्यालय में उस समय करीब तीस विद्यार्थी पढ़ रहे थे, जिनमें ज़्यादातर पंजाबी व बंगाली थे. ये विद्यार्थी दिसंबर, 1912 में लाला हरदयाल के संपर्क में आए. इससे धीरे-धीरे सराभा के मन में देशभक्ति की तीव्र भावनाएं जागृत हुईं और वह देश के लिए मर-मिटने का संकल्प लेने की ओर अग्रसर होने लगे.

अमेरिका में गदर पार्टी की स्थापना

कनाडा और अमेरिका पहुंचे पढ़े-लिखे भारतीयों ने शीघ्र ही वहां से भारतीय स्वतंत्रता की मांग उठाने वाली पत्र-पत्रिकाएं निकालनी शुरू कीं. तारकनाथ दास ने Free Hindustanपहले कनाडा से पत्र निकाला तो बाद में अमेरिका से. गुरुदत्त कुमार ने कनाडा में ‘यूनाइटेड इंडिया लीग’बनाई और ‘स्वदेश सेवक’पत्रिका भी निकाली.

करतार सिंह सराभा और उनके साथियों ने भारत पर काबिज़ ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ 19 फ़रवरी 1915 को ‘गदर’की शुरुआत की थी. इस ‘गदर’यानी स्वतंत्रता संग्राम की योजना अमेरिका में अस्तित्व में आई. इसके लिए लगभग आठ हज़ार भारतीय अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में सुख-सुविधाओं भरी ज़िंदगी छोड़ कर भारत को अंग्रेज़ों से आज़ाद करवाने के लिए समुद्री जहाज़ों पर भारत पहुंचे थे. ‘गदर’आंदोलन शांतिपूर्ण आंदोलन नहीं था, यह सशस्त्र विद्रोह था, लेकिन ‘गदर पार्टी’ने इसे गुप्त रूप न देकर खुलेआम इसकी घोषणा की थी और गदर पार्टी का मुखपत्र ‘गदर’पंजाबी, हिंदी, उर्दू व गुजराती चार भाषाओं में निकलता था.  

विश्व स्तर पर चले इस आंदोलन में दो सौ से ज़्यादा लोग शहीद हुए, ‘गदर’व अन्य घटनाओं में 315 से ज़्यादा ने अंडमान जैसी जगहों पर काले पानी की उम्रकैद भुगती और 122 ने कुछ कम लंबी कैद भुगती. करतार सिंह सराभा गदर पार्टी के उसी तरह नायक बने, जैसे बाद में 1925-31 के दौरान भगत सिंह क्रांतिकारी आंदोलन के महानायक बने.  

HIGHLIGHTS

  • बर्कले विश्वविद्यालय में करतार सिंह सराभा ने रसायन शास्त्र में लिया था दाखिला
  • लाला हरदयाल के संपर्क में आने से सराभा के मन में जगी देशभक्ति की भावना 
  • फांसी पर चढ़ाने के समय मात्र साढ़े उन्नीस वर्ष के थे करतार सिंह सराभा 
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