पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की जयंती के अवसर पर पूरे भारत में सुशासन दिवस ( Good Governance) के रूप में मनाया जा रहा है. इस खास दिन पर वाजपेयी के सम्मान में वर्ष 2014 में सरकार में जवाबदेही के लोगों के बीच जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए सुशासन दिवस मनाने का फैसला किया गया था. सुशासन दिवस को सरकार के लिए कार्य दिवस घोषित किया गया है. 25 दिसंबर (25 December) को उन्हें याद कर उनके द्वारा किए गए कामों के बारे में बात की जाती है. अलग-अलग जगहों पर सेमिनार का आयोजन भी होता है. वाजपेयी का आज 97 वां जन्मदिन है और इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं कि आखिर क्यों इस विशेष दिवस पर सुशासन दिवस मनाया जाता है.
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सुशासन भारत की प्राचीन संस्कृति और लोकाचार की विरासत है. बौद्ध धर्म के गण संघ के माध्यम से प्राप्त लोकतांत्रिक मूल्य, भगवान बसवेश्वर द्वारा स्थापित 11 वीं शताब्दी के अनुभव मंटप, चाणक्य के अर्थशास्त्र, सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान नागरिक नियोजन, मौर्य सम्राट अशोक की विरासत और विरासत में मिली बुद्धि है जो बेहतर शासन को सक्षम बनाती है. सुशासन दिवस पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती का प्रतीक है. स्वतंत्र भारत में उत्कृष्ट शासन उपायों को संस्थागत बनाने में पूर्व प्रधानमंत्री की उल्लेखनीय भूमिका पर प्रकाश डालना अनिवार्य है. स्वतंत्रता के बाद सुशासन शासन सुधारों का केंद्र बिंदु रहा है. योजना आयोग जैसी संस्थाओं द्वारा तैयार किए गए संविधान सभा की बहसों और नीति पत्रों में इसका उल्लेख किया गया था, लेकिन यह विचार कागजों तक ही सीमित रहा.
संसद का उपयोग वाजपेयी ने सुशासन पर प्रकाश डालने के लिए किया
वाजपेयी का संसद में एक लंबा कार्यकाल था. उन्होंने लोकसभा सांसद के रूप में 10 बार और राज्यसभा में दो बार सेवा की. उन्होंने इस मंच का उपयोग सुशासन पर प्रकाश डालने के लिए किया. विपक्ष के सदस्य के रूप में उनके तर्कपूर्ण तर्क और रचनात्मक आलोचना ने बहुत गंभीरता से काम लिया और कल्याण-केंद्रित शासन प्रणाली के निर्माण को प्रेरित किया. प्रधान मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान उभरी जन-केंद्रित पहल भारत की परिवर्तनकारी यात्रा में मील का पत्थर बन गई. किसान क्रेडिट कार्ड, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, स्वर्णिम चतुर्भुज, नदियों को जोड़ना, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम, सर्व शिक्षा अभियान, आदिवासी मामलों के लिए एक अलग मंत्रालय जैसी योजनाओं और विचारों ने समाज के हर वर्ग को छुआ.
इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत का दिया नारा
उनके कार्यकाल में अर्ध-न्यायिक केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग की स्थापना की गई और बिजली क्षेत्र में नियामक ढांचे में सुधार के लिए बिजली अधिनियम में संशोधन किया गया. मई 1998 में परमाणु परीक्षणों (nuclear tests) ने भारत को परमाणु शक्ति बना दिया. कश्मीर की जटिल समस्या को हल करने के लिए प्रसिद्ध वाजपेयी सिद्धांत ने इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत (मानवता, शांति और कश्मीरी लोगों की पवित्रता) के लोकप्रिय ज्ञान को प्रतिध्वनित किया. उनके प्रसिद्ध शब्द, "आप दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं", भारत की विदेश नीति का मार्गदर्शन करना जारी रखा.
शहीदों के शवों को उनके घरों में लाने की दी अनुमति
वाजपेयी सरकार ने शहीदों के शवों को उनके घरों में लाने की अनुमति दी ताकि लोग देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले सैनिकों का सम्मान कर सकें. वे सर्वसम्मति और व्यावहारिकता के व्यक्ति थे, जिसने 2000 में तीन नए राज्यों छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड को शांतिपूर्ण तरीके से बनाने में सक्षम बनाया.
वाजपेयी बी आर अंबेडकर के विचारों की भविष्यवादी अंतर्दृष्टि और राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका से गहराई से प्रभावित थे. वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के आग्रह पर ही भाजपा द्वारा समर्थित वीपी सिंह सरकार ने 31 मार्च, 1990 को अंबेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया.
डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक बनाने के लिए आए आगे
वाजपेयी की इच्छा 26 अलीपुर रोड, दिल्ली को विकसित करने की थी, जहां सिरोही, राजस्थान के महाराजा ने 1951 में केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद अंबेडकर को रहने के लिए आमंत्रित किया था. जिसके कारण परिसर को एक संग्रहालय के रूप में विकसित किया गया जो लोगों को सामाजिक समानता की आकांक्षा के लिए प्रेरित किया. शहरी विकास मंत्रालय ने 14 अक्टूबर 2003 को वाजपेयी की देखरेख में इस निजी संपत्ति के एक्सचेंज डीड पर हस्ताक्षर किए और दिसंबर 2003 में विकास कार्यों का उद्घाटन किया गया. यूपीए शासन ने इस परियोजना को स्थगित रखा. बाद में मोदी सरकार ने इसे डॉ. अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक के रूप में 100 करोड़ रुपये की लागत से विकसित किया और इसे 13 अप्रैल, 2018 को राष्ट्र को समर्पित किया.
कई विकास कार्यों की दी गति
वाजपेयी ने 21वीं सदी की शुरुआत में कई पहल करके सुशासन की बात की. पीएम मोदी ने अपने लक्ष्यों को साकार करने के लिए इन उपायों की गति और पैमाने को बढ़ाया. डीबीटी और जैम जैसे तकनीकी हस्तक्षेप ने संस्थानों में लोगों के विश्वास को मजबूत किया है. भारतमाला, सागरमाला, राष्ट्रीय संपत्ति मुद्रीकरण पाइपलाइन, कृषि अवसंरचना कोष आदि के माध्यम से बुनियादी ढांचा क्षेत्र को एक बड़ा बढ़ावा दिया गया. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से जम्मू और कश्मीर में सेवाओं तक पहुंचाने में सुधार हुआ. हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केन-बेतवा नदी को जोड़ने की परियोजना को मंजूरी दी. "न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन" के मंत्र ने नागरिकों के जीवन को आसान बनाया है.
ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंक में हुआ था सुधार
जीएसटी का कार्यान्वयन, श्रम संहिता, दिवाला और दिवालियापन संहिता, नई शिक्षा नीति, मुद्रा, पीएम आवास योजनाएं, पीएम किसान, और कर विवादों का निर्बाध समाधान ऐसी पहल हैं जिन्होंने पारदर्शिता, जवाबदेही और सुशासन के अन्य आयामों को मजबूत किया है. भारत की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंक 2015 में 145 से बढ़कर 2020 में 63 हो गई. इसी तरह, ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स रैंकिंग 81 (2015) से बढ़कर 46 (2021) हो गई. प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के सर्वोत्तम हित में एक साथ चुनाव, एकल मतदाता सूची, न्यायिक सुधार आदि कराने का आह्वान किया. सुशासन संवैधानिक ढांचे के भीतर लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करके उनकी सेवा करने का एक साधन है.
HIGHLIGHTS
- आज पूरे देश में वाजपेयी का 97 वां जन्मदिन मनाया जा रहा है
- वाजपेयी के सम्मान में वर्ष 2014 में सुशासन दिवस मनाने का लिया गया था फैसला
- सरकार में जवाबदेही के लोगों के बीच जागरूकता को बढ़ावा देना है उद्देश्य