हिमाचल के बाद अब गुजरात विधानसभा चुनाव, दिल्ली-मुंबई के म्यूनिसिपल चुनावों के बीच राजनीतिक पार्टियों के बीच जमकर जुबानी तीर चल रहे हैं. गुजरात विधानसभा चुनावों को लेकर भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी त्रिकोणीय वाक् युद्ध में उलझे हैं, तो दिल्ली-एमसीडी चुनाव में भी कमोबेश यही स्थिति है. हालांकि राजनीतिक पार्टियों की चुनावी जंग के बीच दक्षिण भारत एक अलग तरह की 'जंग' का सामना कर रहा है. यह जंग है राज्यपाल और निर्वाचित सरकारों के बीच. तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना में सत्तारूढ़ सरकार ने राज्यपाल के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. इन तीन राज्यों में निर्वाचित सरकार और संवैधानिक पद पर बैठे शख्स की बयानबाजी हर गुजरते दिन के साथ और तीखी होती जा रही है. आइए जानते हैं कि उक्त तीन राज्यों में किन मसलों पर मुख्यमंत्री कार्यालय और राजभवन आमने-सामने हैं.
तमिलनाडु
राज्यपाल आरएन रवि और एमके स्टालिन सरकार कई मुद्दों पर आमने-सामने हैं. इनमें नीट परीक्षा, 23 अक्टूबर को कार बम धमाके की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंपने में कथित तौर पर देरी प्रमुख हैं. यही नहीं, सरकार का कहना है कि राज भवन में 20 बिल अटके पड़े हैं. स्थिति यहां तक आ चुकी है कि सत्तारूढ़ डीएमके पार्टी ने राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू से राज्यपाल को बर्खास्त करने तक की मांग कर दी है. डीएमके का आरोप है राज्यपाल ने संवैधानिक शपथ का उल्लंघन किया है. इसके साथ ही राज्यपाल आरएन रवि पर और भी कई आरोप लगाए गए हैं. राज्य में डीएमके नीत सेक्युलर प्रोग्रेसिव अलायंस को राज्यपाल की 'सनातन धर्म की सराहना' से भी आपत्ति हैं. गठबंधन सरकार का आरोप है कि राज्यपाल सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा दे रहे हैं. इसको लेकर 2 नवंबर 2022 को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को राज्पाल के खिलाफ एक ज्ञापन भी सौंपा गया है. इस ज्ञापन में कहा गया है, 'कुछ लोग उनके बयानों को देशद्रोह भी मान सकते हैं, क्योंकि बयान घृणा या अवमानना या लोगों को उकसा कर विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ असंतोष भड़काने का प्रयास करते हैं'. डीएमके और उसकी सहयोगी पार्टियां तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को वापस बुलाने के लिए राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को एक ज्ञापन भी भेजने वाले हैं. इस ज्ञापन में भी राज्यपाल पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं. इसमें भी प्रमुख है राज्यपाल पर सांप्रदायिक वैमनस्य बढ़ाने का आरोप, जिससे राज्य की शांति और सौहार्द्र को गंभीर खतरा है.
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केरल
बीते बुधवार को ही केरल सरकार ने विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति बतौर राज्यपाल की जगह शिक्षाविदों को नियुक्त करने का अध्यादेश लाने का फैसला किया है, जिसका बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही ने जोरदार विरोध किया है. एलडीएफ सरकार का यह कदम ऐसे समय आ रहा है जब राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से राज्य में कुलपतियों की नियुक्तियों समेत विश्वविद्यालयों के कामकाज पर मोर्चा खुला हुआ है. राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदू का कहना है कि हाल के दिनों में विश्वविद्यालयों के कामकाज में राजभवन का हस्तक्षेप बढ़ा है. इससे राज्य में उच्च शिक्षा को लेकर गंभीर चुनौती आ खड़ी हुई है. राज्य सरकार यह कदम राज्यपाल के कुलाधिपति बतौर केरल के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के चयन के लिए समिति बनाने और 10 कुलपतियों को उनके पद से हटाने के एकतरफा निर्णय के खिलाफ उठाने जा रही है. ऐसे में बुधवार को मंत्रिमंडल ने कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को हटाने के लिए अध्यादेश लाने का निर्णय किया. बतौर कुलाधिपति राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने 10 कुलपतियों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. आरिफ मोहम्मद खान ने यह कदम सुप्रीम कोर्ट में केरल टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति एमएस राजश्री की नियुक्ति को चुनौती देती याचिका पर दिए फैसले के तहत उठाया है. राज्य सरकार के इस फैसले का विरोध करते हुए बीजेपी और कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि मंत्रिमंडल का यह निर्णय औऱ कुछ नहीं, बल्कि विश्वविद्यालयों को वामपंथी केंद्र बनाने के लिए उठाया जा रहा है.
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तेलंगाना
के चंद्रशेखर राव नीत सरकार और राज्यपाल तमिलिसाई सौंदर्याराजन आमने-सामने हैं. राज्यपाल सौंदर्याराजन का आरोप है कि उनके फोन टेप किए जा रहे हैं. हालांकि उन्होंने अपने आरोप को विस्तार से रखने से इंकार करते हुए कहा कि टीआरएस विधायकों की खरीद-फरोख्त से जुड़ी हालिया सोशल मीडिया की पोस्ट इस बात के संकेत दे रही हैं. दो महीने पहले बतौर राज्यपाल तीन साल पूरे करने पर सौंदर्याराजन ने मीडिया से बातचीत में आरोप लगाया कि तेलंगाना सरकार ने एक महिला के राज्यपाल होने के नाते इस पद को अपमानित किया है.
HIGHLIGHTS
- तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना में एक अलग 'जंग'
- इन राज्यों में राज्यपाल और सरकार आमने-सामने
- यहां हर रोज सामने आ रहे गंभीर आरोप-प्रत्यारोप
Source : Mohit Sharma