एक वक्त था जब पृथ्वी के इकलौते नेचुरल सैटेलाइट यानी चांद में कवि, शायरों, आशिकों या फिर ज्योतिषियों की ही दिलचस्पी हुआ करती थी, लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद उभर कर आई दुनिया की दो सुपर पावर अमेरिका और सोवियत रूस के बीच अंतरिक्ष में अपनी ताकत का जलवा दिखाने की ऐसी रेस शुरू हुई, जिसमें इंसान चांद तक पहुंच गया और चांद की ऊबड़-खाबड़ और बदसूरत धरती की जानकारी ने शायरों और आशिकों का दिल तोड़ दिया. खैर इंसान की फितरत ऐसी है कि जो चीज उसे आकर्षित नहीं करती उससे वह दूरी बना लेता है, लेकिन अब एक बार फिर से दुनिया के पावरफुल देश चांद को हासिल करना चाहते हैं. आइए जानते हैं कि आखिरकार चांद में ऐसा क्या है, जिसके लिए दुनिया के बड़े देश एक बार फिर से मुरीद है चांद पर अपना झंडा गाड़ने की फिराक में हैं.
वैसे तो दुनिया के कई शक्तिशाली राष्ट्र चांद को जानने के लिए अपने-अपने हिसाब से प्रयास किए हैं और कर रहे हैं. पर इस फेहरिस्त में अब भारत का नाम भी शामिल हो गया है. इस महीने भारत का मिशन चंद्रयान पार्ट 3 अपने मुकाम कर पहुंचेगा तो वहीं रूस का लूना-25 भी चांद पर पहुंचने का रास्ते पर है.
रूस ने 47 साल बाद चांद पर अपना मिशन शुरू किया है.
चांद पर पहुंचने के इस नई रेस की वजह बताने से पहले हम आपको बताते हैं कि ये रेस करीब पांच दशक पहले बंद कैसे हो गई थी. आखिर अचानक से ऐसा क्या हो गया कि 50 साल तक कोई देश चांद के बारे में ज्यादा जानकारी लेने में रुचि नहीं ले रहे थे. सोवियत रूस ने कोल्ड वॉर के दिनों में 1959 में अपना लूना मिशन शुरू किया था. 1966 में रूस ने चांद की सतह पर पहली सॉफ्ट लैंडिंग की और 1968 में यूरी गागरिन के तौर पर पहला अंतरिक्ष यात्री स्पेस में भेजा.
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चांद पर इंसान को भेजने वाला संयुक्त राष्ट्र इकलौता देश
रूस की इस कामयाबी से परेशान अमेरिका ने भी कई मून मिशन चलाए और अपोलो 11 के तहत साल 1969 में पहली बार चांद की सतह पर इंसान के कदम पड़े. नील ऑर्मस्ट्रॉग चांद पर पहुंचने वाले पहले और बज एल्डि्रिन दूसरे इंसान थे. अमेरिका चांद पर इंसान भेजने वाला इकलौता देश है और उसने 1972 में अपोलो-17 मिशन तक कुल 12 एस्ट्रोनॉट्स को चांद पर भेजा. ये अमेरिका का आखिरी मून मिशन था. इसके बाद कहा जाता है कि वियतनाम युद्ध में हो रहे खर्चे के बाद अमेरिका ने अपने खर्चीले मून मिशन पर रोक लगा दी. वहीं दूसरी ओर सोवियत संघ ने साल 1974 में लूना-24 मिशन चांद पर भेजा जो 170 ग्राम मिट्टी लेकर धरती पर वापस लौटा.
.. तो चीन ने पैदा की दिलचस्पी
इसके बाद चांद को लेकर सोवियत संघ की दिलचस्पी भी खत्म हो गई. 1990 के दशक की शुरूआत में सोवियत संघ के टूट जाने के बाद अमेरिका अतरिक्ष की इकलौता सुपर पावर रह गया और उसने अपना फोकस चांद से हटाकर मंगल ग्रह की ओर करना शुरू कर दिया. अब हम आपको बताते हैं दुनिया के देशों की चांद में दिलचस्पी फिर से क्यों पैदा हो गई और इस दिलचस्पी को पैदा करने वाला है चीन. एक आर्थिक महाशक्ति के तौर पर उभरने के बाद चीन जिस तरह से दुनिया में अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है ठीक वैसी उसने चांद पर भी अपनी पताया फहराने का अभियान बड़े जोर-शोर से शुरू कर दिया है.
दरअसल बीते कुछ सालों में चांद के दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ के होने का पता चला है. बर्फ यानी पानी ..पानी यानी H2O .. यानी अगर चांद की सतह पर मौजूद बर्फ को तोड़ने में कामयाबी मिलती है तो उससे ऑक्सीजन भी पैदा की जा सकती है और चांद पर जीवन का संभावना भी तलाशी जा सकती है. यही नहीं, इस सूरत में चांद पर अपना स्टेशन बना कर अंतरिक्ष के मंगल जैसे बाकी ग्रहों की खोजबीन के लिए उसे एक लॉन्च पैड की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है. क्योंकि चांद पर मौजूद पानी रॉकेट फ्यूल बनाने के काम आ सकता है. इसके अलावा चांद पर हीलियम गैस का एक बड़ा खजाना मौजूद है जिससे क्लीन एनर्जी हासिल की जा सकती है. यही नहीं, चांद पर सोना, प्लेटेनियन, टाइटेनियन और यूरेनियन जैसे कीमती खनिज मौजूद होने की पूरी संभावना है.
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चीन ने एक दशक में भेजे तीन कामयाब मिशन
जाहिर हैं चांद के इस खजाने पर चीन ने अपनी नजरें गड़ा दी है. चीन ने पिछले 10 सालों में अपने तीन कामयाब मिशन चांद पर भेजे हैं. चीन ने 2013 में चांग ई -3 , 2019 में चांग ई-4 और 2020 में चांग ई-5 मिशन चांद पर भेजे और ना सिर्फ चांद की सतह पर रोबो की सॉफ्ट लैंडिंग कराई बल्कि चांग ई-5 मिशन ने तो चांद पर चीन का झंडा भी फहराया. चीन यहीं रुकने वाला नहीं है. उसकी योजना साल 2027 तक चांग ई- 7 मिशन के तहत चांद के साउथ पोल पर मौजूद पानी और बर्फ की जांच करने और 2030 तक चांद पर इंसान भेजने की है. चांद पर इंसान भेजने के चीन के मिशन में रूस भी उसका साथ दे रहा है.
चांद पर भारत का प्रदर्शन भी दमदार
चीन के तेज गति से चल रहे अभियान ने अमेरिका को मानो नींद से जगा दिया है और अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा अपने मून मिशन आर्टेमिस के जरिए 2026 तक चांद पर फिर से इंसानों को भेजने की योजना बना रही है. इसमें महिलाएं भी शामिल होंगी और ये टीम चांद पर मौजूद बर्फ पर रिसर्च करेगी. इसके अलावा यूरोपीय यूनियन, जापान और साउथ कोरिया जैसे देशों के अलावा ईलॉन मस्क की कंपनी स्पेस एक्स जैसे प्राइवेट प्लेयर भी चांद पर जल्द से जल्द पहुंचना चाहते हैं. चांद पर पहुंचने की रेस में भारत भी पीछे नहीं रहना चाहता है. 2008 में भारत के मिशन चंद्रयान-1 ने ना सिर्फ भारत को क्षमता का मुजाहिरा किया बल्कि चांद की सतह पर मौजूद खनिजों का पता लगाने में भूमिका निभाई. साल 2019 में भारत का मिशन चंद्रयान-2 नाकाम जरूर हुआ लेकिन मिशन चंमद्रयान-3 के जरिए भारत चांद पर सॉफ्ट लैंडिग की अपना क्षमता का कामयाबी पूर्वक प्रदर्शन करना चाहता है ताकि दुनिया के बड़े देश इस मुगालते में ना रहे कि चांद पर पर उन्हीं का हक है.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau