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World Bank ने क्यों दी Great Inflation की चेतावनी? क्या है बड़ी वजह

वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी गति से आगे बढ़ रही है. इससे 1970 के दशक के समान संकट पैदा हो सकता है. आइए, जानते हैं कि विश्व बैंक ने मौजूदा दौर में किन वजहों से दुनिया के सामने 1970 के दशक के जैसे आर्थिक संकट के खतरे की चेतावनी दी है.

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Keshav Kumar
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वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी गति से आगे बढ़ रही है( Photo Credit : News Nation)

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विश्व बैंक ( World Bank) ने हाल ही में चेतावनी दी है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था खतरे ( Economic Crisis) में हैं. विश्व 1970 के आर्थिक संकट ( Great Inflation)  जैसे खतरे का सामना कर रहा है. दुनिया के कई देशों को आने वाले दिनों में मंदी से बचने के लिए भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. विश्व बैंक ने एक रिपोर्ट जारी कर कहा है कि रूस- यूक्रेन युद्ध ( Russia- Ukraine war ) ने विश्व अर्थव्यवस्था को कोरोना महामारी ( Corona Pandemic ) के बाद दूसरा सबसे बड़ा नुकसान पहुंचाया है. 

रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी गति से आगे बढ़ रही है. इससे 1970 के दशक के समान संकट पैदा हो सकता है. आइए, जानते हैं कि विश्व बैंक ने मौजूदा दौर में किन वजहों से दुनिया के सामने 1970 के दशक के जैसे आर्थिक संकट के खतरे की चेतावनी दी है. उससे पहले यह जानते हैं कि अर्थव्यवस्था में 1970 संकट क्या है? अमेरिकी मैक्रो इकॉनॉमिक नीतियों की सबसे बड़ी नाकामी के तौर पर देखी जाने वाली घटना महान मुद्रास्फीति ( Great Inflation) की वजहें क्या थीं और दुनिया को कैसे इससे निजात मिल सकी?

अर्थव्यवस्था में 1970 संकट क्या है

पूरा 1970 का दशक और 1980 के दशक की शुरुआत को विस्तारित महान मुद्रास्फीति ( Great Inflation) के रूप में जाना जाता है. यह दुनिया में लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति का दौर था. इसकी शुरुआत अमेरिका में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के कार्यकाल में हुई थी. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा मापी जाने वाली मुद्रास्फीति दर, 1980 में बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई थी. फेडरल रिजर्व की नीतियों ने मुद्रा आपूर्ति में बड़ी वृद्धि को बढ़ावा दिया जो मुद्रास्फीति की बड़ी वजह बनी. महान मुद्रास्फीति और उसके बाद आई वैश्विक आर्थिक मंदी ने कई व्यवसायों को बर्बाद कर दिया और अनगिनत लोगों को चोट पहुंचाई.

अमेरिकी नीतियों की सबसे बड़ी नाकामी

महान मुद्रास्फीति के रूप में मशहूर मैक्रो इकॉनॉमिक घटना 1965 से 1982 तक चली. यह 1970 के दशक की सबसे दर्दनाक कहानी की तरह याद की जाती है. दुनिया के आर्थिक इतिहासकारों के मुताबिक यह संकट 1972 के अंत में शुरू हुआ और 1980 के दशक की शुरुआत तक जारी रहा. व्हार्टन के प्रोफेसर जेरेमी सीगल ने अपनी पुस्तक 'स्टॉक्स फॉर द लॉन्ग रन: ए गाइड फॉर लॉन्ग-टर्म ग्रोथ' में इस समय को 'युद्ध के बाद की अवधि में अमेरिकी मैक्रोइकॉनॉमिक नीति की सबसे बड़ी विफलता' कहा था. महान मुद्रास्फीति को तेल की कीमतों, मुद्रा सट्टेबाजों, लालची व्यापारियों और लालची संघ के नेताओं पर दोषी ठहराया गया था. हालांकि, यह साफ है कि बड़े पैमाने पर बजट घाटे को वित्तपोषित करने वाली और राजनीतिक नेताओं की ओर से समर्थित मौद्रिक नीतियां इसकी वजहें थीं.

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विश्व बैंक की रिपोर्ट का अनुमान

विश्व बैंक ने जनवरी में भविष्यवाणी की थी कि वैश्विक विकास दर चार फीसदी पर रहेगी, लेकिन अब अनुमान लगाया गया है कि यह 2.9 फीसदी पर रहेगी. बैंक ने उम्मीद जताया है कि साल 2023 और 2024 में दुनिया की आर्थिक स्थिति में सुधार की शुरुआत हो सकती है. रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन में रूस के हमले से शुरू युद्ध ने वैश्विक व्यापार और निवेश को कम कर दिया है. इसके बाद उभरती अर्थव्यवस्थाओं में प्रति व्यक्ति आय कोरोना महामारी की तुलना में पांच फीसदी तक गिर गई है.

तेल की लगातार बढ़ती कीमत

विश्व बैंक के मुताबिक यूक्रेन में रूस की कार्रवाई, चीन में लगातार जारी लॉकडाउन और दुनिया भर में बिगड़ती आपूर्ति श्रृंखला ( Supply Chain) प्रणाली व्यापार पर दबाव डाल सकती है. दुनिया में तेल की बढ़ती कीमतों का असर तेल उत्पादक अरब देशों पर भी महसूस किया जा रहा है. मध्य पूर्व में कीमतें चरम पर हैं. तेल की कीमतों में संयुक्त अरब अमीरात में 56 प्रतिशत, जॉर्डन और मिस्र में 22 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. तेल की बढ़ती कीमतों का एक और कारण यह है कि कोरोना के बाद चीन अपने बाजार खोल रहा है. उसे उत्पादन के लिए अतिरिक्त तेल की जरूरत है, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप को गर्मियों में अतिरिक्त ईंधन की आवश्यकता होती है. 

स्वीडिश टुंड्रा फंडर की भविष्यवाणी

पिछले एक दशक से पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसी अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करने वाली कंपनी टुंड्रा के मालिक मैटिस मार्टिंसन के मुताबिक मौजूदा वैश्विक आर्थिक स्थिति को देखते हुए दक्षिण एशियाई बाजार उथल-पुथल में हैं. 2220 मिलियन स्वीडिश फंड टुंड्रा फंडर के मुख्य निवेश अधिकारी ने भविष्यवाणी की है कि अगले कुछ महीने दक्षिण एशियाई बाजारों के लिए बहुत दर्दनाक होंगे. इसमें मजबूत मुद्रास्फीति और ब्याज दरों में वृद्धि की संभावना है. मुद्राओं का मूल्यह्रास होगा.

गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्रियों की चिंता

गोल्डमैन सैक्स ( Goldman Sachs) के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में आने वाले दिनों में तेल की कीमतें और बढ़ने की आशंका है. यह 140 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है, लेकिन उपभोक्ताओं के लिए यह असर 160 डॉलर प्रति बैरल जितना होगा. दुनिया में फिलहाल रिफाइनरियों की उत्पादन क्षमता अधिक नहीं है. इस वजह से प्राकृतिक गैस की कीमतों में भी वृद्धि की उम्मीद है. ब्रेंट क्रूड इस साल पहले ही 50 फीसदी चढ़ चुका है और मंगलवार को 119 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया है. 

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यूरोपीय देशों में महंगे पेट्रोल से हाहाकार

ब्रिटेन में कार मालिकों को चेतावनी दी जा रही है कि सर्दियों में पेट्रोलियम उत्पादों की औसत कीमत 200 पाउंड प्रति लीटर तक जा सकती है.
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, ब्रिटेन में सात दिन पहले एक लीटर पेट्रोल और डीजल की कीमत हर दिन के हिसाब से बढ़ रही है. एक पारिवारिक कार में ईंधन भरने की लागत अब अधिकतम स्तर तक पहुंच गई है. ब्रिटेन में यह अपनी तरह का एक रिकॉर्ड है. ब्रिटेन सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि यूक्रेन में युद्ध के कारण वैश्विक तेल की कीमतें बढ़ रही हैं. इसलिए कार मालिकों को अतिरिक्त खर्चों के लिए खुद को तैयार करना चाहिए.

HIGHLIGHTS

  • रूस- यूक्रेन युद्ध से विश्व अर्थव्यवस्था को कोरोना महामारी के बाद दूसरा नुकसान
  • विश्व बैंक ने दुनिया को दी 1970 के दशक जैसे आर्थिक संकट के खतरे की चेतावनी
  • अंतरराष्ट्रीय बाजार में आने वाले दिनों में पेट्रोलियम की कीमतें और बढ़ने की आशंका
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