उत्तर प्रदेश में ऐन चुनाव से पहले ओबीसी के कई बड़े नेताओं के भारतीय जनता पार्टी (BJP) से किनारा कर समाजवादी पार्टी की साइकिल थामने के बावजूद पार्टी आलाकमान आसन्न विधान सभा चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए 60-40 के फॉर्मूले पर तो काम कर ही रहा है. साथ ही टिकट के बंटवारे में भी प्रत्याशियों के कद और उनके प्रभाव की पूरी नाप-तौल रख रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को गोरखपुर शहर और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) को कौशांबी के सिराथू से उतारने के पीछे भी पूरी गणित है. गौरतलब है कि योगी को अयोध्या और मथुरा से उतारने, तो केशव प्रसाद मौर्य को प्रयागराज की किसी सीट से उतारने के कयास यूपी की राजनीतिक फिजाओं में तैर रहे थे.
बीजेपी का बड़ा रणनीतिक दांव है योगी को गोरखपुर से उतारना
ऐसे में गोरखपुर शहर से सीएम योगी को उतारना राजनीतिक रूप से बीजेपी का बड़ा रणनीतिक दांव है. गौरतलब है कि योगी और गोरखपुर एक-दूसरे के पर्याय रहे हैं. गोरक्षपीठ के महंत और सीएम योगी आदित्यनाथ एक लंबे वक्त तक पूर्वांचल के तमाम इलाकों की राजनीतिक दशा-दिशा तय करते आए हैं. जातिगत आधार पर भी यह एक बड़ा सधा कदम है. योगी को गोरखपुर से लड़ाना वास्तव में स्वामी प्रसाद मौर्य सरीखे पूर्वांचल के कुछ नेताओं के बीजेपी छोड़ने का नुकसान की भरपाई भी करेगा. इसके जरिये बीजेपी पूर्वी उत्तर प्रदेश की उन 62 सीटों पर अपना प्रभाव बरकरार रखना चाहती है, जिसकी दो तिहाई सीटें 2017 विधानसभा चुनाव में उसने जीती थी.
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पिछली बार भी योगी का प्रभाव लाया था रंग
योगी के गोरखपुर शहर से चुनावी समर में उतरने से राजनीतिक रूप से गोरखपुर, आजमगढ़ और बस्ती मंडल की भी सीटों पर भी असर छोड़ेगा. गोरखपुर से सटे बस्ती, आजमगढ़ और देवीपाटन मंडलों में योगी की गोरक्षपीठ राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय है. बीते चुनाव में भी योगी ने अपने आस-पास के 7 जिलों की 60 से अधिक सीटों पर प्रचार किया था. इसी का नतीजा था कि 2017 विधानसभा चुनाव में 62 सीटों में 44 सीट बीजेपी के खाते में आई थीं. हालांकि उस वक्त योगी सांसद होते थे. ऐसे में इस बार भी योगी के गोरखपुर से खड़े होने से इन सीटों भी फर्क आना तय है.
10 जिलों की 62 सीटों में 44 जीती थीं बीजेपी ने
आंकड़ों की भाषा में बात करें तो फिलहाल बीजेपी की गोरक्ष क्षेत्र (गोरखपुर) के 10 जिलों में कुल 62 सीट हैं. इनमें 44 सीटों पर पार्टी ने 2017 में जीत हासिल की थी. गोरखपुर से 70 किलोमीटर दूर बस्ती मंडल में भी योगी आदित्यनाथ का गहरा प्रभाव है. इसी की बदौलत वहां के 3 जिलों की 13 सीटों पर 2017 में बीजेपी ने एकतरफा जीत हासिल की. बीते विधानसभा चुनाव में बस्ती मंडल के किसी भी जिले में विपक्ष का खाता तक नहीं खुल पाया था. राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि योगी की गोरक्षपीठ और खुद योगी आदित्यनाथ का प्रभाव पूर्वांचल के उन इलाकों में है, जो यूपी की सत्ता में निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं. योगी के प्रभाव क्षेत्रों में कुशीनगर, देवरिया, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, बस्ती, कुशीनगर, आजमगढ़ और मऊ जैसे महत्वपूर्ण इलाके हैं. कुछ स्थानों पर योगी की हिंदू युवा वाहिनी का प्रभाव भी बहुत अधिक है. ऐसे में बीजेपी ने योगी प्रभाव को इस बार राजनीतिक स्तर पर फिर कैश कराने के लिए गोरखपुर भेजा है.
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सिराथू से मौर्य भरेंगे प्रयागराज तक परवाज
अब बात करते हैं डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और उनकी सिराथू सीट की. उप मुख्यमंत्री का सियासी सफर देखें तो साफ है कि इस सीट से मिली जीत से उनके सुनहरे सियासी सफर को रफ्तार मिली थी. पिछले विधानसभा चुनाव से पहले यानी 2012 के विधानसभा चुनाव में प्रयागराज, प्रतापगढ़ और कौशांबी की 22 सीटों में से एकमात्र सिराथू से ही भाजपा को जीत हासिल हुई थी. इस सीट पर भाजपा की यह पहली जीत थी. इससे पूर्व के दो चुनावों में पार्टी को यहां से हार का ही स्वाद चखना पड़ा था. यही नहीं 2004 में अतीक अहमद के फूलपुर से सांसद बनने के बाद इलाहाबाद शहर पश्चिम सीट पर हुए उपचुनाव और इसी सीट पर 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में वह पराजित हो गए थे. 2012 के विधानसभा चुनाव के दो साल बाद हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें फूलपुर से प्रत्याशी बनाया, जिसमें उन्होंने रिकॉर्ड तीन लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल कर फूलपुर सीट पर भी पहली बार भाजपा का कमल खिलाया था. सितंबर 2017 में उन्होंने फूलपुर सांसद पद से इस्तीफा दे दिया था. इस बार सिराथू से बीजेपी प्रयागराज तक उनके प्रभाव पर परवाज भरने जा रही है.
HIGHLIGHTS
- योगी के जरिए बीजेपी चल रही मिशन पूर्वांचल का दांव
- पिछले चुनाव में यहां की 62 सीटों में 44 जीती थी पार्टी
- सिराथू पर केशव प्रसाद ने खिलाया था पहली बार कमल