देश के पूर्वोत्तर राज्यों (Northeastern States) में इस साल फिर सूअरों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर ( African Swine Fever) फैलने की पुष्टि हुई है. असम ( Assam) समेत पूर्वोत्तर के कई राज्यों में सूअरों में बुखार, जी मिचलाना और डायरिया की दिक्कतें सामने आ रही हैं. अफ्रीकन स्वाइन फीवर को लेकर राज्य सरकारों ने बड़े पैमाने पर तैयारियां शुरू कर दी हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर के अधिकतर मामलों में कोई इलाज ही नहीं मिलता. इस बीमारी का फिलहाल कोई टीका भी नहीं बन सका है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, असम में जहां अफ्रीकन स्वाइन फीवर का पहला मामला दर्ज किया गया है, वहां आसपास के इलाके में सुअरों को मारने का काम शुरू हो गया है. डिब्रूगढ़ में जिला पशुपालन और पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ हिमांदु बिकास बरुआ ने बताया कि एक किलोमीटर के दायरे में सभी सूअरों को मार दिया गया है. इसके बाद नियमानुसार सभी सूअरों को संक्रमित क्षेत्र में मारकर दफना दिया गया. इस क्षेत्र को संक्रमित घोषित करने के बाद पूरे इलाके को सेनेटाइज भी कर दिया गया है.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती
असम के मंत्री अतुल बोरा ने इस बारे में कहा कि अफ्रीकी स्वाइन फीवर सूअरों, पशुपालक किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती है. उन्होंने ट्वीट कर विशेषज्ञों और अधिकारियों से सूअर पालक किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाने का आग्रह भी किया है. उन्होंने बताया कि बीमार सूअर के एक सैंपल को जांच के लिए भेजा गया था. रिपोर्ट् में अफ्रीकी स्वाइन फीवर की पुष्टि होने पर एहतियातन कदम उठाए गए हैं. केंद्र सरकार और बाकी राज्य सरकारों के साथ भी इस बारे में बातचीत की जा रही है.
मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय में भी नए केस
असम के अलावा पूर्वोत्तर के मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय में भी अफ्रीकन स्वाइन फीवर के मामले सामने आए हैं. त्रिपुरा के सेपाहिजाला जिले में अप्रैल में सरकारी देबीपुर फार्म और आसपास के क्षेत्रों में भी ‘अफ्रीकी स्वाइन बुखार’के मामले सामने आए थे. पशु संसाधन विकास विभाग ने तब 165 सूअरों को मार डाला था. हाल के दिनों में मिजोरम में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से करीब 800 सूअरों की मौत हुई थी. इस साल फरवरी से संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कम से कम 124 सूअरों को मार दिया गया. बीमारी के प्रकोप के कारण आइजोल, चम्फाई, लुंगलेई और सैतुअल जिलों के कम से कम 17 गांव प्रभावित हुए थे.
अफ्रीकन स्वाइन फीवर और उसके लक्षण
अफ्रीकन स्वाइन फीवर घरेलू और जंगली पशुओं में होने वाला एक बेहद ही संक्रामक रक्तस्रावी वायरल रोग है. यह एसफेरविरिडे (Asfarviridae) परिवार के एक बड़े DNA वाले वायरस की वजह से होता है. इसे पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था. इस रोग में पशुओं की उत्पादकता प्रभावित होती है. इसके साथ अधिकतर मौत हो जाती है. सूअर को तेज बुखार, लड़खड़ा कर चलना, सफेद सूअर के शरीर पर नीले चकते होना, सुस्ती, खाना-पीना छोड़ देना वगैरह अफ्रीकी स्वाइन फीवर के लक्षणों में शामिल है.
कैसे फैलता है अफ्रीकन स्वाइन फीवर
पशुओं में यह बीमारी संक्रमित घरेलू या जंगली सूअरों के संक्रमण से सामने आता है. इसके साथ ही यह बीमारी अप्रत्यक्ष संपर्क जैसे खाद्य पदार्थ, अवशिष्ट या कचरे से भी फैलता है. इसके अलावा, ये वायरस सुअर के मांस, सलाइवा, खून और टिशू से भी फैलता है. इस बीमारी में संक्रमित पशुओं के हताहत होने की दर 100 फीसदी है. फार्म वाले सूअर इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं. इसकी वजह जंगली सूअर या देसी सूअर के मुकाबले उनकी प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होना है.
रोकथाम के लिए सरकार ने उठाए कदम
पशु चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक अफ्रीकी स्वाइन फीवर का प्रकोप पड़ोसी म्यांमार, बांग्लादेश और आसपास के पूर्वोत्तर राज्यों से आयातित सूअर या सूअर के मांस के कारण हो सकता है. पूर्वोत्तर राज्यों ने अलर्ट जारी कर लोगों से और खासकर से सुअर पालन के मालिकों से कहा है कि वे दूसरे राज्यों और पड़ोसी देशों, विशेष रूप से म्यांमार से सूअर और सूअर लाने से परहेज करें. साथ ही पड़ोंसी देशों और राज्यों से आने वाले पशु आहार, पशुधन आयात और वाहनों वगैरह पर नियंत्रण रखें.
ये भी पढ़ें - बंगाल के 11 जिले कालाजार की चपेट में, जानिए कितनी खतरनाक है ये बीमारी
पूर्वोत्तर में पोर्क का बहुत बड़ा कारोबार
पूर्वोत्तर राज्यों का सालाना पोर्क ( सूअर का मांस) कारोबार करीब आठ से दस हजार करोड़ रुपये का है. असम इसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है. पिछले वर्ष भी पूर्वोत्तर राज्यों में करीब 11 हजार सूअरों में यह बीमारी पाई गई थी. केंद्र सरकार की ओर से सुअर पालक किसानों को कुल मिलाकर 12 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया था. विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (OIE) के पशु स्वास्थ्य कोड में अफ्रीकी स्वाइन फीवर एक सूचीबद्ध बीमारी है. राहत की बात यह है कि यह बीमारी कोई जूनोटिक बीमारी नहीं है यानी यह पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता है.
HIGHLIGHTS
- इस बीमारी का फिलहाल कोई टीका भी नहीं बन सका है
- असम में अफ्रीकन स्वाइन फीवर का पहला मामला आया
- इसे पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था