फौज को 'जानलेवा' अधिकार देने वाले AFSPA का असम से होगा अंत ! what is AFSPA  

वो चाहें तो किसी को भी बिना वॉरंट के गिरफ्तार कर सकते हैं. सिर्फ शक होने पर किसी के ऊपर भी गोली चला सकते हैं. बल प्रयोग कर सकते हैं. कहीं भी घुसकर तलाशी ले सकते हैं. स्ट्रक्चर गिरा सकते हैं. और इन सबके लिए उनके ऊपर न तो मुकदमा चलेगा और न ही कार्रवाई

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Mohit Sharma
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afspa( Photo Credit : News Nation)

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वो चाहें तो किसी को भी बिना वॉरंट के गिरफ्तार कर सकते हैं. सिर्फ शक होने पर किसी के ऊपर भी गोली चला सकते हैं. बल प्रयोग कर सकते हैं. कहीं भी घुसकर तलाशी ले सकते हैं. स्ट्रक्चर गिरा सकते हैं. और इन सबके लिए उनके ऊपर न तो मुकदमा चलेगा और न ही कार्रवाई होगी. ये कुछ खास अधिकार हैं, जो सेना और सुरक्षा बलों को AFSPA के तहत दिए गए हैं. AFSPA यानी सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम. जैसा कि नाम से ही जाहिर है, यह कानून विशेष अधिकार प्रदान करता है. लेकिन बहुत से लोग इसे बेरहम कानून भी कहते हैं. अब असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस कानून को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि हम 2023 के अंत तक पूरे असम से अफस्पा हटाने का लक्ष्य बना रहे हैं. नवंबर तक इसे पूरी तरह हटाया जा सकता है.

आपको शायद अंदाजा न हो कि ये बयान कितना बड़ा है. लेकिन पूर्वोत्तर के जो लोग पिछले 60 साल से इस कानून की मार झेल रहे हैं, उनके लिए ये मुंहमांगी मुराद पूरी होने जैसा है. अफस्पा क्या है, इसकी कहानी क्या है, इसमें क्या-क्या अधिकार दिए गए हैं, और उनका जबर्दस्त विरोध क्यों होता रहा है, ये सब आपको बताएंगे. लेकिन पहले असम के मुख्यमंत्री के इस बयान के मायने जान लीजिए.

नवंबर 1990 वो तारीख है, जब असम में ये कानून लागू किया गया था. उसके बाद से हर छह महीने में इसे बढ़ाया जाता रहा है. पिछले साल 1 अप्रैल को केंद्रीय ग गृह मंत्री अमित शाह ने असम के 23 जिलों और एक सब डिवीजन से अफस्पा हटाने का ऐलान किया था. लेकिन 8 जिले और एक सबडिवीजन में ये कानून अब भी लागू है. सिर्फ असम ही नहीं, पूर्वोत्तर के कई और राज्य इस कानून का दंश दशकों से झेल रहे हैं.

असम के अलावा नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के कई हिस्सों में ये कानून अब भी लोगों के बीच दहशत का पर्याय बना हुआ है. त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम को हालांकि अब इससे निजात मिल चुकी है. ऐसा नहीं है कि अफस्पा सिर्फ पूर्वोत्तर के राज्यों में ही लागू किया गया. कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने पर 1990 के दशक में इसे लागू किया गया था. यहां तक पंजाब और चंडीगढ़ में भी यह लागू हो चुका है. वहां 1997 में इसे हटा दिया गया था.

भारत में इस कानून की जड़ें ब्रिटिश काल तक जाती हैं. 1942 में जब भारत छोड़ो आंदोलन ने अंग्रेज सरकार की नींद उड़ा दी थी, तब उसे कुचलने के लिए उन्होंने इसी का सहारा लिया था. आजाद भारत में यह अध्यादेश से कानून बन गया. पूर्वोत्तर के राज्यों में नागा आंदोलन की आग फैली तो उसे काबू करने के लिए इसे कानून की शक्ल दे दी गई. '50 के दशक का दौर था. नागा आंदोलन जोर पकड़ चुका था. पुलिस ने बल प्रयोग किया तो हथियारबंद आंदोलन शुरू हो गया. जब किसी भी तरह हालात काबू में नहीं आए, तब सरकार ने संसद में AFSPA कानून बना दिया. यह 11 सितंबर 1958 का दिन था. इस कानून को पूरे राज्य में लागू कर दिया गया. मणिपुर के तीन नागा बहुल जिलों में भी यह कानून लगाया गया. 1979 में पूरे राज्य को इसकी जद में ला दिया गया. बाद में जब अलगाववादी और  राष्ट्रवादी आंदोलन पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में फैलने लगा तो वहां भी AFSPA का विस्तार होता रहा.

सरकार किसी खास इलाके को अशांत घोषित करके अफस्पा लगा सकती है. यह काम केंद्र सरकार, राज्य के राज्यपाल या फिर केंद्र शासित प्रदेश के एडमिनिस्ट्रेटर कर सकते हैं. एक बार अशांत घोषित हो जाने पर उस इलाके को सेना या सुरक्षाबलों के हवाले कर दिया जाता है. वहां दंगा-फसाद-उपद्रव से निपटने के लिए इन्हें छूट दे दी जाती है. वे बिना वॉरंट गिरफ्तार कर सकते हैं. 'उचित संदेह' के आधार पर गोली चला सकते हैं. किसी की जान ले सकते हैं. बल प्रयोग कर सकते हैं. इस कानून के तहत सुरक्षाबलों को कहीं पर भी, किसी भी समय घुसकर तलाशी लेने का अधिकार होता है. वे चाहें तो किसी अड्डे, ठिकाने या ढांचे को गिरा  भी सकते हैं. कई मामलों में इस तरह के अधिकार असीमित होते हैं. सबसे बड़ी बात ये कि इस सबके लिए उनके ऊपर कोई कार्रवाई या मुकदमा नहीं किया जा सकता. कार्रवाई तभी हो सकती है, जब पहले से सरकार से इजाजत ले ली जाए.

इसी तरह के विशेषाधिकारों की वजह से कुछ लोग अफस्पा को जालिम कानून भी कहते हैं. लोग ऐसा क्यों कहते हैं, अब पूर्वोत्तर में इसके कुछ उदाहरण भी देख लीजिए-

6 दिसंबर का दिन था, साल 2021. नागालैंड के मोन जिले में स्पेशल फोर्सेज की गोलीबारी में 14 लोग मारे गए. इनमें छह कोयला मजदूर थे, बाकी गांववाले थे जो घटना के बारे में सुनकर मौके पर पहुंचे थे. असम पुलिस ने रिपोर्ट में कहा कि आर्मी ने फायरिंग से पहले लोगों की पहचान करने तक की जहमत नहीं उठाई थी.

नवंबर 2000 का किस्सा सुनिए. असम राइफल्स की 8वीं बटालियन ने इंफाल में 10 नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी. बाद में जांच से खुलासा हुआ कि यह फर्जी एनकाउंटर था. 21 साल बाद हाईकोर्ट ने मृतकों के परिवारों को 5-5 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया.

इससे पहले, फरवरी 1994 में 18 पंजाब रेजिमेंट के जवानों ने असम के तिनसुकिया में 9 लोगों को उनके घरों से उठाया और गोली मार दी. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला कि मारने से पहले उन पर जुल्म ढाए गए थे. 2018 में कोर्ट ने 7 जवानों को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई.

साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट में अफस्पा के खिलाफ एक याचिका आई. उसमें मई 1979 से लेकर मई 2012 के बीच 1528 फर्जी एनकाउंटर का आरोप लगाया गया. अदालत ने छह मामलों की जांच के लिए कमिटी बनाई. जांच में आरोप सही मिले. 2012 में संयुक्त राष्ट्र ने भी अफस्पा पर उंगली उठाई थी. उसका कहना था कि लोकतंत्र में AFSPA की कोई जगह नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने एक अन्य फैसले में कहा था कि अफस्पा के तहत मिले अधिकार असीमित नहीं हैं. फोर्सेज को तय नियमों के अधीन रहते हुए ही इन अधिकारों का पालन करना होगा.

पूर्वोत्तर के तमाम संगठन और राजनीतिक दल समय-समय पर अफस्पा को खत्म करने की मांग करते रहे हैं. एक्टिविस्ट शर्मिला इरोम ने तो इसके खिलाफ लगातार 16 साल तक अनशन किया था. कानून के बढ़ते विरोध को देखते हुए 2004 में केंद्र ने इसकी समीक्षा के लिए पांच सदस्यों की समिति बनाई थी. समिति ने अपनी सिफारिश में कहा था कि यह कानून दमन का प्रतीक बन चुका है, इसे खत्म कर दिया जाना चाहिए. बाद में कई और आयोग व समितियों ने भी ऐसी ही सिफारिशें कीं.

केंद्र की मोदी सरकार ने नागालैंड एनकाउंटर की जांच के लिए एक समिति बनाई थी. उसकी रिपोर्ट को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अशांत घोषित क्षेत्रों की संख्या में कटौती का ऐलान किया. अब असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने बाकी इलाकों से भी अफस्पा हटाने की डेडलाइन बता दी है. वह इसके लिए इलाकों में आई शांति का हवाला दे रहे हैं. देखना होगा कि उनकी ये उम्मीद कब तक और किस हद तक पूरी हो पाती है.

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असम में AFSPA
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असम में 1990 में लागू हुआ AFSPA
हर छह महीने मे इसे बढ़ाया जाता है
2022 में 23 जिलों से हटा AFSPA
8 जिले, 1 सबडिवीजन में अब भी लागू
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इतिहास में AFSPA
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1942 में अंग्रेजों ने बनाया था ऐसा कानून
1958 में संसद से पास हुआ AFSPA
पूर्वोत्तर में नागा आंदोलन दबाने को बना था
बाद में पूर्वोत्तर, J&K,पंजाब में भी लागू रहा
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'बेलगाम' अधिकार?
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AFSPA में फौज को विशेष अधिकार
बिना वॉरंट के कर सकते हैं गिरफ्तार
'उचित संदेह' पर गोली मार सकते हैं
इसके लिए केस भी नहीं चल सकता
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रक्तरंजित इतिहास
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दिसंबर 2021 में नागालैंड में 14 लोग मारे
नवंबर 2000 में इंफाल में 10 की हत्या
फरवरी 1994 में असम में 9 को गोली मारी
1528 फर्जी एनकाउंटर का आरोप लगा
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AFSPA पर अंकुश
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2012 में UN ने AFSPA पर उंगली उठाई
16 साल तक शर्मिला इरोम ने अनशन किया
2004 में समिति ने बताया, दमन का प्रतीक
SC ने कहा, फौज को असीमित अधिकार नहीं
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Source : News Nation Bureau

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