ईरान की गश्त-ए-इरशाद पुलिस के खिलाफ बढ़ रहा है गुस्सा, जानें वजह

1978-79 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद 1981 में सभी महिलाओं के लिए अनिवार्य हिजाब कानून पारित किया गया. इस्लामिक पेनल कोड की धारा 638 के तहत सार्वजनिक जीवन, सड़कों पर किसी भी महिला के लिए बगैर हिजाब पहने निकलना अपराध है.

author-image
Nihar Saxena
New Update
Morality Police

महसा अमीनी की हिरासत में मौत के बाद तेज हुआ आंदोलन.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

Advertisment

कुर्दिस्तान की लड़की महसा अमीनी की हिरासत में हुई मौत के बाद ईरान में सरकार विरोधी धरना-प्रदर्शन तेज हो गया है. हिजाब विवाद की वजह से ईरान सरकार की दुनिया भर में आलोचना हो रही है, तो हिजाब के खिलाफ आंदोलन कई देशों में फैल गया है. सलीके से हिजाब नहीं पहनने के आरोप में ईरान (Iran) की मॉरेलिटी पुलिस ने महसा को हिरासत में लिया था. उसके भाई का कहना है कि महसा (Mahsa Amini) के साथ हुई मारपीट के बाद वह कोमा में चली गई और अंततः उसकी मौत हो गई. इसके बाद सरकार विरोधी आंदोलन ने हिंसक रूप अख्तियार कर लिया. फिर पुलिस ने भी आंदोलनकारियों पर सख्ती बरतनी शुरू कर दी. पुलिस की इस कार्रवाई में अब तक ईरान में 50 आंदोलनकारियों की जान जा चुकी है, तो सैकड़ों आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया जा चुका है. यह अलग बात है कि अब आंदोलनकारियों के निशाने पर मॉरेलिटी पुलिस भी आ गई है और आरोप लग रहे हैं कि हिजाब कानून (Hijab) की आड़ में ईरानी महिलाओं के साथ बदसलूकी और उनका उत्पीड़न किया जा रहा है. ऐसे में आंदोलनकारी महिलाएं और लड़कियां सड़कों पर बाल काट और हिजाब उतार कर अपना विरोध दर्ज करा रही हैं. 

क्या है ईरान की मॉरेलिटी पुलिस
ईरान सरकार का हिस्सा करार दी जाने वाली मॉरेलिटी पुलिस को गश्त-ए-इरशाद कहा जाता है, जिसका काम सार्वजनिक स्थानों पर इस्लामिक कानूनों के तहत ड्रेस कोड से जुड़े नियमों का पालन कराना है. ईरान में इस लिहाज से धार्मिक नियम-कायदों समेत पहनावे से जुड़े नियमों का अनुपालन कराना मॉरेलिटी पुलिस की जिम्मेदारी है. मॉरेलिटी पुलिस की मुख्य जिम्मेदारी है कि ईरानी महिलाएं हिजाब कानूनों का सख्ती से पालन करें. हिजाब कानूनों के पालन में लापरवाही बरतने पर उन्हें हिरासत में ले लिया जाता है. महसा अमीनी पर भी सलीके से हिजाब नहीं पहनने का आरोप था, जिसकी वजह से उसे हिरासत में लिया गया था. 

यह भी पढ़ेंः राजस्थान पर 'राज' की रारः ये विकल्प हो सकते हैं कांग्रेस हाईकमान के तारणहार

क्या है ईरान का हिजाब कानून
1978-79 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद 1981 में सभी महिलाओं के लिए अनिवार्य हिजाब कानून पारित किया गया. इस्लामिक पेनल कोड की धारा 638 के तहत सार्वजनिक जीवन, सड़कों पर किसी भी महिला के लिए बगैर हिजाब पहने निकलना अपराध है. ईरान सरकार इस कानून को लेकर कितनी कट्टर है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि प्रशासन सार्वजनिक परिवहन के वाहनों में फेशियल रिकग्निशन टेक्नोलॉजी को लागू करने पर विचार कर रहा है ताकि हिजाब कानूनों का सलीके से पालन नहीं करने वाली महिलाओं की पहचान की जा सके. यह अलग बात है कि जुलाई में राष्ट्रीय हिजाब और शुद्धता दिवस पर ईरान में बड़े पैमाने पर महिलाओं ने सोशल मीडिया पर हिजाब उतार कर अपना विरोध-प्रदर्शन दर्ज कराया. कुछ महिलाओं ने बसों में बगैर हिजाब के यात्रा करते हुए अपनी फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर डाले. इन विरोध प्रदर्शन को देख ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने हिजाब और शुदद्धता कानूनों को नए प्रतिबंधों संग कड़ाई के साथ लागू करने का आदेश दे दिया. 

यह भी पढ़ेंः राजस्थान पर 'राज' की रारः ये विकल्प हो सकते हैं कांग्रेस हाईकमान के तारणहार

मॉरेलिटी पुलिस के महिलाओं के लिए दिशा-निर्देश
मॉरेलिटी पुलिस के दिशा-निर्देशों के तहत ईरान में यौवन की सीमा लांघ चुकी सभी लड़कियों-महिलाओं के लिए सार्वजनिक स्थानों पर सिर पर स्कार्फ और ढीले कपड़े पहनने होते हैं. हालांकि कानून में लड़कियों की सही उम्र का कोई उल्लेख नहीं है. स्कूलों में सात साल की उम्र से लड़कियों के लिए हिजाब पहनना जरूरी है. हालांकि इन पर सार्वजनिक स्थानों वाला कानून लागू नहीं होता है. मॉरेलिटी पुलिस के दिशा-निर्देशों के तहत हिजाब पहने महिला या लड़की के सिर के बाल पूरी तरह ढंके होने चाहिए. बताते हैं कि महसा अमीनी के कुछ बाल हिजाब से बाहर दिख रहे थे और इसी आधार पर उसे हिरासत में लिया गया था. हिजाब के खिलाफ हिंसक विरोध-प्रदर्शन के बाद अब उनके हाई हील्स पहनने पर रोक लगा दी गई है. साथ ही यह भी कहा गया है कि पहनावा ऐसा होना चाहिए, जिससे गला और कंधा नहीं दिखाई पड़े.

यह भी पढ़ेंः शी जिनपिंग का तख्तापलट इसलिए नहीं है आसान, समझें उनकी ताकत को

आंदोलन ने ले लिया है हिंसक रूप
महसा अमीनी की मौत के बाद सबसे पहले आंदोलकारी तेहरान के बाहरी इलाके में स्थित कासरा अस्पताल के बाहर एकत्रित हुए. इसी अस्पताल में महसा को पूछताछ के दौरान कथित तौर पर गिर जाने के बाद लाया गया था. फिर आंदोलन तेहरान के बाहर फैलने लगे, जिसमें अमीनी का शहर साकेज भी शामिल है. आंदोलनों को देखते हुए पुलिस ने अमीनी के अंतिम संस्कार के वक्त लोगों की संख्या सीमित रखने के तमाम जतन किए. यह अलग बात है कि उसकी कब्र के आसपास हजारों की संख्या में लोग एकत्रित थे. अमीनी को सुपुर्द-ए-खाक करने के बाद आंदोलनकारी साकेज के गवर्नर कार्यालय के बाहर जा डटे. यहीं से आंदोलन ने हिंसक रूप अख्तियार कर लिया. 

यह भी पढ़ेंः मांकडिंगः हंगामा क्यों है बरपा दीप्ति के चार्ली डीन को रन ऑउट करने पर

कुर्दों पर ईरान सरकार का कहर
महसा अमीनी कुर्द युवती थी, जो ईरान के पश्चिमी सीमाई प्रांत कुर्दिस्तान की रहने वाली थी. गैर प्रतिनिधित्व वाले राष्ट्र और जन संगठनों के समूह के मुताबिक ईरान में कुर्दों की आबादी 80 लाख से एक करोड़ के आसपास है, जो कुल आबादी का 11 से 15 फीसदी है. इसके बावजूद ईरान पर लंबे समय से कुर्दों के उत्पीड़न और मानवाधिकार हनन के आरोप लगते रहे हैं. इसी वजह से कुर्दों की अक्सर ईरानी सुरक्षा बलों से झड़प और सरकार विरोधी प्रदर्शन करती घटनाएं सामने आती रहती हैं. सच तो यह है कि इनके मूल में भी कुर्द कार्यकर्ताओं, लेखकों और छात्रों समेत अन्य की गिरफ्तारियां रहती हैं. ईरान और कुर्द लोगों के बीच विद्यमान संघर्षों के पीछे मूल वजह कुर्द लोगों की एक अलग स्वतंत्र देश की मांग है. कुर्द लोगों को विद्रोही और विकासशील माना जाता है और इस कारण वह तेहरान सरकार के खिलाफ अक्सर सड़कों पर उतर आते हैं. सरकार की कुर्द लोगों से तनाव की एक बड़ी वजह यह भी है.

HIGHLIGHTS

  • ईरान की मॉरेलिटी पुलिस को गश्त-ए-इरशाद कहा जाता है
  • इसका काम महिलाओं के लिए हिजाब कानून लागू करना है
  • महसा अमीनी की हिरासत मौत के बाद आंदोलन हुआ हिंसक
hijab ईरान iran Mahsa Amini महसा अमीनी हिजाब विवाद Morality Police Protests आंदोलन मॉरेलिटी पुलिस हिजाब
Advertisment
Advertisment
Advertisment