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Assembly Elections 2023: छोटे राज्यों त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय का बड़ा राजनीतिक दांव, समझें कैसे

त्रिपरा, नागालैंड और मेघालय में फरवरी में विधानसभा चुनाव होंगे. तीनों राज्यों के नतीजे 12 मार्च को आएंगे. समझिए कि इन छोटे पूर्वोत्तर राज्यों में राजनीति का दांव किस तरह बड़ा हो गया है.

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Nihar Saxena
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Tripura

इन तीन पूर्वोत्तर राज्यों में प्रत्येक में 60 विधानसभा सीटें हैं.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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पूर्वोत्तर (North East) के त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय के रूप में तीन राज्यों में फरवरी में चुनाव होने हैं, जिनके परिणाम 12 मार्च को घोषित किए जाएंगे. ये राज्य आकार में भले ही छोटे हो सकते हैं, लेकिन यहां राजनीतिक दांव बहुत बड़ा है. इन तीन पूर्वोत्तर राज्यों में प्रत्येक में 60 विधानसभा सीटें हैं. इनके जरिये 2023 में भारत के व्यस्त चुनावी मौसम की शुरुआत हो जाएगी और इसके बाद कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे. इन विधानसभा चुनावों का परिणाम वास्तव में 2024 के लोकसभा चुनावों (Loksabha Elections 2024) का टोन सेट करेगा. गौरतलब है कि त्रिपुरा में भाजपा (BJP) का शासन है और पार्टी जूनियर सहयोगी के रूप में नागालैंड और मेघालय में सत्तारूढ़ गठबंधन का भी हिस्सा है. हालांकि जैसे-जैसे चुनाव यानी मतदान की तारीख नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे राजनीतिक समीकरणों में भी बदलाव आ रहा है.

बीजेपी का पूर्वोत्तर के राज्यों पर है खासा जोर
भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर भाजपा के विशेष ध्यान को ऐसे समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के क्षेत्र के विकास के लिए कई परियोजनाओं को लांच कर चुके हैं. इसके साथ ही इन चुनावों का महत्व उत्तर पूर्व लोकतांत्रिक गठबंधन (एनईडीए) की उपस्थिति से भी समझा जा सकता है, जो वास्तव में भगवा पार्टी के नेतृत्व वाले केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का एक स्थानीय संस्करण है. पूर्वोत्तर के विशिष्ट सामाजिक-राजनीतिक संस्कृति और आकांक्षाओं ने एनईडीए की जरूरत पर बल दिया, जिसमें भाजपा क्षेत्रीय दलों के साथ एक हिस्सा है. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के 2015 में कांग्रेस छोड़ने और केसरिया पार्टी का दामन थामते ही पूर्वोत्तर में भाजपा की किस्मत बदल गई. केंद्रीय सत्ता में रहने वाली पार्टी  के साथ गठबंधन करने की पूर्वोत्तर पार्टियों के बीच पैठ बना चुकी पारंपरिक सोच से भाजपा को भी फायदा हुआ है, जहां भगवा पार्टी 2014 से निर्बाध रूप से शासन कर रही है. इससे भाजपा को उस क्षेत्र में अपना विस्तार करने में मदद मिली है.

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त्रिपुरा
भाजपा शासित त्रिपुरा में स्थिति तेजी से बदल रही है, जहां उसने 2018 के चुनावों में 25 साल के वाम शासन को समाप्त कर दिया था. इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा ने भाजपा के साथ संबंध तोड़ने की घोषणा कर दी है और आदिवासी सहयोगी नवगठित टिपरा मोथा के साथ बातचीत कर रही है, जिसका नेतृत्व शाही वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा कर रहे हैं. टिपरा मोथा ग्रेटर तिप्रालैंड के रूप में एक अलग राज्य की मांग कर रहा है. टिपरा मोथा को लगता है कि स्वदेशी लोग अपनी ही मातृभूमि में अल्पसंख्यक बन गए हैं, क्योंकि अब बांग्लादेश से हिंदू प्रवासियों की बाढ़ आ गई है. टिपरा  मोथा ने अप्रैल 2021 में त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद चुनावों में जीत हासिल की थी. ऐसे में उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है. मुख्यमंत्री माणिक साहा के नेतृत्व में भाजपा त्रिपुरा को बनाए रखने और दो अन्य राज्यों में अपने पैरों के निशान का विस्तार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है. दूसरी ओर, कांग्रेस और वामपंथी प्रासंगिकता हासिल करने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की टीएमसी भी त्रिपुरा चुनाव लड़कर यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि उसका प्रभाव पूर्वी राज्य से परे है. इसका एक फायदा यह है कि त्रिपुरा में, जहां पूर्वोत्तर के बाकी हिस्सों की तरह क्षेत्रीय भावनाएं मजबूत हैं, टीएमसी को अनिवार्य रूप से एक बंगाली पार्टी के रूप में देखते हैं. पूर्व कांग्रेस महिला सुष्मिता देव त्रिपुरा में टीएमसी की पसंदीदा व्यक्ति हैं. ममता बनर्जी त्रिपुरा का दौरा कर चुकी हैं और चुनाव प्रचार के जोर पकड़ने पर वह दोबारा ऐसा करेंगी. बीजेपी और आईपीएफटी के बीच सीधी टक्कर हो सकती है. कांग्रेस और सीपीएम त्रिपुरा में भाजपा के खिलाफ हाथ मिला सकते हैं जहां 16 फरवरी को चुनाव होंगे. केरल एकमात्र ऐसा राज्य है जहां वाम दलों का मुख्यमंत्री है, जबकि कांग्रेस भी शायद अपने सबसे खराब अस्तित्व से बाहर आने की कोशिश कर रही है. हालांकि टिपरा मोथा ने त्रिपुरा के संबंध में गठबंधन की पेशकश के साथ सरमा से संपर्क किया है. भगवा पार्टी को अभी जवाब देना है. त्रिपुरा में लगभग 20 आदिवासी सीटें हैं, जो चुनावी जीत के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती हैं.

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मेघालय
मेघालय में 27 फरवरी को चुनाव होने हैं. भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के साथ भाजपा का कोई चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं हुआ है. मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने घोषणा की है कि आगामी चुनावों में एनपीपी अकेले चुनाव लड़ेगी. दोनों पार्टियां एक-दूसरे पर हमले कर रही हैं, लेकिन यह याद रखना चाहिए कि चुनाव के बाद अक्सर राज्य में गठबंधन किया जाता है. यहां कांग्रेस को अपने विधायकों के पलायन के मामले में भारी नुकसान हुआ है. बड़ी संख्या में कांग्रेसी विधायकों और नेताओं ने टीएमसी का दामन थामा है. 2018 में कांग्रेस मेघालय में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन उसकी 21 सीटों की संख्या 60 सदस्यीय विधानसभा में आधे रास्ते से कम हो गई. भाजपा ने दो विधायकों के साथ सरकार बनाने के लिए एनपीपी का समर्थन किया था.

नागालैंड
हालांकि नागालैंड में जहां 27 फरवरी को चुनाव होने हैं, बीजेपी सत्तारूढ़ नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ अपना गठबंधन जारी रखेगी. बीजेपी ने अपने 20 उम्मीदवारों के नाम फाइनल कर लिए हैं. मुख्यमंत्री नीफ्यू रियो के नेतृत्व वाली एनडीपीपी बाकी बची 40 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. यहां कभी बड़ी ताकत रही कांग्रेस का लगभग सफाया हो गया है. इस बीच परंपरा का अनुपालन करते हुए नागालैंड में स्वदेशी समूहों ने चुनावों का बहिष्कार करने की धमकी दी है. कई जनजातियां राज्य के 16 जिलों को काटकर 'फ्रंटियर नागालैंड' नामक एक अलग राज्य की मांग कर रही हैं. केंद्र सरकार ने हाल ही में ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (ईएनपीओ) के साथ बैठक की ताकि कोई रास्ता निकाला जा सके. इन तीन राज्यों में चुनाव के बाद, 2023 तक कर्नाटक, मिजोरम, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तेलंगाना में चुनाव होंगे. केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में भी इसी साल चुनाव हो सकते हैं.

HIGHLIGHTS

  • हिमंत बिस्वा सरमा के केसरिया पार्टी का दामन थामते ही पूर्वोत्तर में भाजपा की किस्मत बदली
  • त्रिपुरा में भाजपा का शासन है और पार्टी जूनियर सहयोगी के रूप में नागालैंड और मेघालय में
  • यहां राजनीतिक दांव बहुत बड़ा है. इन तीन पूर्वोत्तर राज्यों में प्रत्येक में 60 विधानसभा सीटें हैं
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