Bangladesh Secular Constitution: बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार की इन्तहा हो चुकी है. बांग्लादेश में अब ऐसा कुछ होने वाला है जिससे लगता है कि वहां हिंदुओं के द एंड का उलटी गिनती शुरू हो गई है. बांग्लादेश में संविधान से सेक्युलर शब्द हटाने की बात हो रही है. अगर ऐसा हुआ तो बांग्लादेश दूसरा पाकिस्तान बन जाएगा. दावा है कि जब 90 फीसदी मुसलमान हैं तो फिर सेक्युलरिज्म की जरूरत ही क्या है. बांग्लादेश में उठती इस डिमांड के मायने क्या हैं और क्या भविष्य में भारत में भी ऐसा ही देखने को मिल सकता है.
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‘बांग्लादेश को सेक्युलरिज्म की जरूरत नहीं’
बांग्लादेशी संविधान से सेक्युलर शब्द हटाने की बात इस बात की तस्दीक है कि यूनुस सरकार में किस तरह से कट्टरपंथ हावी है. यूनुस सरकार ने वहां की अदालत ने सेक्युलर शब्द को लेकर बड़ा बयान दिया. बांग्लादेश के अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुजज्मा ने हाईकोर्ट में कहा कि उनके मुल्क को सेकुलरिज्म की कोई जरूरत नहीं है. सेकुलरिज्म के साथ बांग्लादेश के संविधान से बंगाली राष्ट्रवाद हटाने की बात हो रही है. बता दें कि 2011 में तत्कालीन शेख हसीना सरकार ने बांग्लादेश को सेकुलर देश घोषित किया था.
संविधान से सेक्युलर शब्द हटने का मतलब?
अगर संविधान से सेक्युलर शब्द हटता है, तो इसके मायने ये होंगे कि बांग्लादेश 100 फीसदी मुस्लिम राष्ट्र बन सकेगा. ऐसा अक्सर उन्हीं देशों में होता है, जहां मुस्लिम आबादी 50 से 60 फीसदी के लेवल को पार कर जाती है. सेक्युलरिज्म एक ताकतवर शब्द है, जिसके किसी देश के संविधान में शामिल होने से सभी धर्मों को तमाम धार्मिंक स्वतंत्रताएं मिलती हैं, लेकिन इसी सेक्युलर शब्द को बांग्लादेश के संविधान से हटाने की बातें हो रही हैं. इससे साफ है कि बांग्लादेश में इस्लामिक क्रांति के नाम पर दूसरे धर्मों के सफाए की तैयारी है.
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क्या भारत में भी ऐसा होगा?
हालांकि, बांग्लादेश में दावा किया जा रहा है कि संविधान संशोधन के बाद हिंदुओं समेत तमाम अल्पसंख्यक धर्मों को अपने धर्म का पालन करने की छूट होगी, लेकिन तख्तापलट के बाद जिस तरह से वहां हिंदुओं और तमाम अल्पसंख्यक धर्मों पर कट्टरपंथी कहर बरपा रहे हैं, उसे देखकर तो ये संभव हो पाना बिल्कुल भी मुमकीन नहीं लगता है.
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एक तरह से बांग्लादेश का ये कदम हिंदुओं समेत अन्य धर्मों के लिए द एंड का काउंटॉडाउन शुरू होने जैसा साबित होगा. अब आशंकाएं ये जताई जा रही हैं क्या भारत में भी ऐसा होगा. ये सवाल इसलिए क्योंकि जिन इलाकों में मुस्लिम आबादी बढ़ी है, वहां दूसरे धर्मों के लोगों की मुश्किलें बढ़ने लगती हैं. इस बात की तस्दीक उन इलाकों से आने वाली हिंसा की खबर करती हैं.
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