इंग्लैंड (England) और पाकिस्तान (Pakistan) के बीच चल रही तीन मैचों की टेस्ट सीरीज (Test Series) में गुरुवार को दिन का खेल खत्म होने तक इंग्लैंड का कुल स्कोर 4 विकेट पर 506 रन था. इंग्लैंड के बल्लेबाजों ने ये रन केवल 75 ओवरों में 6.75 के रन रेट से बनाए. यह टेस्ट क्रिकेट में एक अभूतपूर्व रिकॉर्ड है. यह भी पहली बार था जब किसी टेस्ट मैच में किसी ने 6 रन प्रति ओवर की दर से 340 से अधिक रन बनाए. इंग्लैंड ने 6.5 के रन रेट के साथ 657 रन बना दूसरे दिन ही पारी समाप्ति की घोषणा कर दी. यह आश्चर्यजनक पारी इंग्लिश बल्लेबाजी की नई स्टाइल की देन है, जो 'तेज स्कोरिंग निडर खेल' पर जोर देती है. इंग्लैंड के नए कोच ब्रेंडन मैकुलम (Brendon McCullum) के उपनाम 'बैज' पर इसे 'बैजबॉल' नाम दिया गया है. इसकी दुनिया भर के क्रिकेट (Cricket) हलकों में जबर्दस्त चर्चा है. इससे पहले किसी मैच के पहले दिन सबसे अधिक रनों 6 विकेट पर 494 का पिछला रिकॉर्ड ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 112 साल पहले 1910 में बनाया था.
'बैजबॉल' और इस जुनून के पीछे की स्टाइल
टेस्ट क्रिकेट एक रूढ़िवादी खेल है जिसमें अक्सर आक्रामकता, नई शैली पर बल्लेबाज का धैर्य, रक्षात्मक तकनीक और दृढ़ता का मनोविज्ञान भारी पड़ता है. ऐसा माना जाता है कि टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाज का लक्ष्य लंबे समय तक क्रीज पर टिके रहकर विरोधी टीम को हैरान-परेशान करना होता है. टेस्ट क्रिकेट में एक विकेट का मूल्य सर्वोपरि होता है और बल्लेबाज से अपेक्षा की जाती है कि वह यथासंभव लंबे समय तक पिच पर टिके रहकर जोखिम रहित शॉट्स से रन बनाता रहे. दूसरी ओर गेंदबाज का काम होता है बल्लेबाज पर गेंद से आक्रमण कर विकेट चटकाए और जल्द से जल्द मैच को खत्म करे. टेस्ट क्रिकेट की इन परंपरागत मान्यताओं और धारणाओं को ध्वस्त करती है 'बैजबॉल' स्टाइल. इस स्टाइल की खास बात इसके तहत बल्लेबाजी करने का अंदाज है. ब्रेंडन मैकुलम ने इंग्लिश टीम के बल्लेबाजों को अपना विकेट बचाने की कोशिश करने के बजाय, जितनी जल्दी हो सके तेज स्कोरिंग करने के निर्देश दिए. इसके पीछे सिद्धांत यह था कि बल्लेबाज चाहे जो शैली अपनाए क्रिकेट में कभी न कभी आउट होना ही है. एक सही गेंद बेहतरीन रक्षात्मक बल्लेबाज की भी गिल्लियां बिखेर सकती है. ऐसे में आउट करने वाली सही गेंद पड़ने से पहले तेज स्कोरिंग कहीं ज्यादा तर्कसंगत है.
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'बैजबॉल' का मनोवैज्ञानिक लाभ
इसके अलावा 'बैजबॉल' स्टाइल में लंबे प्रारूप के क्रिकेट में पारंपरिक रूप से आक्रामक रहने वाले गेंदबाजों पर तेज हमला कर बल्लेबाज ऐसी अराजक स्थिति पैदा कर देता है, जिसमें दबाव में आए गेंदबाजों से गलतियां होने की संभावना बढ़ जाती हैं. रावलपिंडी में इंग्लैंड की पहली पारी का ही उदाहरण लें. इंग्लिश टीम के ओपनर जैक क्राउली और बेन डकेट ने धमाकेदार शुरुआत की. सुबह के सत्र में फेंके गए 27 ओवरों में से केवल आठ में कम से कम एक बाउंड्री नहीं लगी. सबसे रोचक बात यह थी कि एक भी मेडन ओवर नहीं गया. नतीजतन केवल एक सत्र के खेल के बाद पाकिस्तान की रणनीति पूरी तरह से ध्वस्त हो गई. पाकिस्तान टीम के गेंदबाजों को इंग्लिश बल्लेबाजों ने जो झटका दिया, उससे वह सदमे की हालत में थे. इस मानसिक प्रभाव को मापना मुश्किल था, लेकिन निस्संदेह यह फील्डिंग कर रही टीम के हाव-भाव और उसकी प्रतिक्रियाओं में दिखाई दे रहा था. दिन के शेष खेल के दौरान पाकिस्तानी गेंदबाज आक्रमक गेंद फेंकने के बजाय डिफेंसिव लाइन-लैंथ पर गेंदबाजी करते रहे. उन्होंने पुराने ढर्रे की फील्डिंग मैदान में सजाई और ढेरों गलतियां कीं. यह तब था जब 'बैजबॉल' से जुड़ा एक बड़ा जोखिम या उसका नकारात्मक पहलू यह है बल्लेबाजी करने वाली टीम के खिलाड़ी तेज रन बनाने के फेर में मामूली स्कोर पर जल्द ही सारे विकेट गंवा देते हैं.
इंग्लैंड टेस्ट टीम जूझ रही निरंतरता से
इंग्लैंड को वास्तव में एक अच्छी टेस्ट टीम करार दिए हुए काफी समय हो गया है. खासतौर से वह इंग्लिश टीम कुछ समय पहले हुआ करती थी, जिसका बैटिंग लाइनअप लगातार मैच जीतने का माद्दा रखता था. एलिस्टेयर कुक, एंड्रयू स्ट्रॉस, केविन पीटरसन, जोनाथन ट्रॉट, इयान बेल और युवा जो रूट के खेल का आनंद लेने के बाद इंग्लैंड भरोसेमंद टेस्ट-मैच के लिए बेहतरी बल्लेबाजों को खोजने का संघर्ष कर रही है. उन्होंने काउंटी मैचों में लगभग हर आशाजनक संभावना के साथ प्रयोग किया, लेकिन जीत कुछ ही में मिली. सबसे ज्यादा शिकायत इंग्लैंड के युवा बल्लेबाजों की तकनीक रही. इन युवा बल्लेबाजों में से कुछ के पास ही प्रथम श्रेणी से जुड़े रिकॉर्ड हैं. क्रिकेट पंडितों ने इसके लिए काउंटी क्रिकेट की गुणवत्ता में गिरावट और खेल के अधिक आकर्षक छोटे प्रारूपों पर बढ़ते जोर को अंग्रेजी टेस्ट बल्लेबाजी में गिरावट का एक बड़ा कारण बताया.
पहली गेंद से नाकामी का डर निकाल आग बरसाने का फैसला
एक तरफ इंग्लैंड की टेस्ट मैच टीम निरंतरता के लिए संघर्ष करती रहीं, वहीं इंग्लैंड की सीमित ओवर वाले फॉर्मेट की टीम क्रांति की तलबगार बन रही थी. 2015 विश्व कप के विनाशकारी अभियान के बाद इंग्लैंड ने अपने सफेद गेंद के सेटअप को पूरी तरह से बदलने का फैसला किया. उनका ध्यान बल्ले और गेंद के साथ विशेषज्ञों को तैयार करने और खेल में बेहद आक्रामक रुख अपनाने वाले खिलाड़ियों के चयन पर पर केंद्रित हो गया. नतीजतन जोस बटलर, जॉनी बेयरस्टो, एलेक्स हेल्स, जेसन रॉय और बेन स्टोक्स जैसी प्रतिभाओं को खोजा गया. इन्हें जन्मजात शॉटमेकर करार दिया गया. कप्तान इयोन मोर्गन के नेतृत्व में इन विस्फोटक बल्लेबाजों की आक्रमाकता पर लगाम नहीं लगाने का फैसला किया गया, बल्कि पहली गेंद से नाकामी का डर निकाल आग बरसाने का फैसला हुआ. नतीजतन इंग्लैंड के पास आज दुनिया में सीमित ओवरों वाले फॉर्मेट की सर्वश्रेष्ठ टीम है, जिसने तीन साल 50 ओवर और टी20 विश्व कप दोनों जीते हैं. छोटे प्रारूप वाले क्रिकेट में उनकी बल्लेबाजी ने बार-बार रिकॉर्ड बनाए हैं.
सीमित ओवर फॉर्मेट से प्रेरणा लेती 'बैजबॉल' स्टाइल
वास्तव में 'बैजबॉल' ने इंग्लैंड के व्हाइट-बॉल सेटअप से सीख ली. यह स्टाइल इंग्लैंड के टेस्ट बल्लेबाजों की सीमाओं को ध्यान में रख खिलाड़ियों की ताकत से खेलने की कोशिश करती है. अगर इंग्लिश खिलाड़ी ज्योफ्री बॉयकॉट की तरह बल्लेबाजी नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें करने की जरूरत नहीं है. इसके बजाय टेस्ट मैच क्रिकेट में उनके सीमित ओवर फॉर्मेट की शैली को अमल में लाया जाता है. हालांकि टेस्ट क्रिकेट में ऐसा प्रयोग पहले कभी नहीं देखा गया. मैकुलम का टीम का चयन भी आक्रामकता की इस प्रतिबद्धता को सामने लाता है. पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट में उन्होंने लियाम लिविंगस्टोन का चयन किया, जो टी20 फॉर्मेट में छक्का मारने वाली मशीन कहे जाते हैं. गौरतलब है कि क्लासिकल बल्लेबाजों की कतार में लिविंगस्टोन से भी कई बेहतर हैं, जो फॉरवर्ड डिफेंस खेलने में माहिर हैं.
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अब तक, बहुत अच्छा लेकिन क्या लंबे समय तक चलेगी 'बैजबॉल' स्टाइल
जिस समय से ब्रेंडन मैकुलम ने इंग्लैंड के ड्रेसिंग रूम में प्रवेश कर इंग्लिश टीम के खेलने के तरीके को पूरी तरह से बदला है आलोचक टीम के असफलता का स्वाद चखने का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि इंग्लैंड भी अजेय नहीं रहा है. इस साल की शुरुआत में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहले टेस्ट में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद पूर्व भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने ट्वीट किया, 'दक्षिण अफ्रीका ने दिखा दिया है कि 'बैजबॉल' विश्व स्तरीय गेंदबाजी के आक्रमण और स्मार्ट फील्ड सेट करने वाले एक तेज कप्तान के खिलाफ काम नहीं करती है.' कैफ ने आलोचना अचानक नहीं की. 'बैजबॉल' स्टाइल के साथ इंग्लैंड ने पहले चार टेस्ट जीते. अब क्रिकेट पर्यवेक्षक इसक समक्ष बड़ी चुनौती पड़ने का इंतजार कर रहे हैं. अन्य लोगों का मानना है कि इंग्लैंड ने जिन पिचों पर खेला है, वे क्रिकेट की उनकी स्टाइल के अनुकूल हैं. जैसा कि इस खेल में पाकिस्तान के अपने बल्लेबाजी प्रदर्शन से संकेत मिलता है कि रावलपिंडी की पिच ने शायद ही गेंदबाजों की मदद की हो. अब तक इंग्लैंड ने ब्रेंडन मैकुलम के नेतृत्व में अच्छा खेला है. गौरतलब है कि सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट टीम देश-कालखंड-परिस्थितियों के अनुरूप विभिन्न तरीकों से खेलती है. वे सही समय पर अटैक करते हैं, लेकिन बचाव तब करते हैं जब उन्हें करना होता है. विभिन्न परिस्थितियों में अच्छी टीमों के खिलाफ निरंतरता के लिए पद्धति का यह लचीलापन महत्वपूर्ण है, जबकि शुरुआत से हमले ने अब तक इंग्लैंड को अधिक बार मदद नहीं की है. ऐसे में टेस्ट क्रिकेट की पुरानी परंपरा से किनारा कर एक नई शुरुआत करना नासमझी है
खिलाड़ियों के दिमाग से असफलता का डर निकालना
असफलता खेल का एक अपरिहार्य हिस्सा है. 'बैजबॉल' स्टाइल ने भी कुछ असफलताएं देखी हैं और यह और भी देखेगी. इसकी वजह बनेगी 'या तो सब कुछ या कुछ भी नहीं' वाली सोच. जब बल्लेबाज आक्रामक शॉट खेलने के लिए तैयार होते हैं, तो वे स्वाभाविक रूप से बहुत अधिक दर से असफलता का सामना करते हैं. हालांकि आक्रामक शाट से अधिक रन भी बनते हैं. 'बैजबॉल' स्टाइल अधिक रनों पर केंद्रित है. गौर करने वाली बात यह है कि अंग्रेजी क्रिकेट की संस्कृति, अपने भावुक प्रशंसकों और खेल के शाही इतिहास के साथ असफलता से नफरत करती है. मैकुलम भी जानते हैं कि उनके हिस्से भी असफलता आएगी और जब ऐसा होगा, तो आलोचक हमला करने में देर नहीं करेंगे.
HIGHLIGHTS
- रावलपिंडी टेस्ट में इंग्लैंड टेस्ट बल्लेबाजों ने की आक्रामक बल्लेबाजी
- लस्त-पस्त पाकिस्तानी गेंदबाजों की हालत से फिर उठी 'बैजबॉल' चर्चा
- इंग्लिश टीम के कोच ब्रेंडन मैकुलम के उपनाम पर नाम पड़ा है 'बैजबॉल'