मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व वाली बिहार (Bihar) सरकार शनिवार से जाति-आधारित जनगणना (Caste Census) का पहला चरण शुरू कर चुकी है. इसकी लंबे समय से मांग की जा रही थी और कई बार तत्कालीन विपक्ष (Opposition) इसको लेकर सड़कों पर भी उतरा. जाति आधारित जनगणना शुरू होने से पहले सीएम नीतीश कुमार ने कहा, 'जाति-आधारित जनगणना सभी के लिए फायदेमंद होगी... यह सरकार को वंचित वर्ग समेत समाज के विभिन्न वर्गों के विकास के लिए काम करने में सक्षम बनाएगी. जाति आधारित जनगणना की कवायद पूरी होने के बाद उसकी फाइनल रिपोर्ट केंद्र सरकार (Modi Government) को भी भेजी जाएगी.'
जाति जनगणना आखिर होती क्या है?
अपनी समाधान यात्रा के दूसरे दिन संवाददाताओं से बात करते हुए नीतीश कुमार ने कहा, 'इस पूरी कवायद का मूल मकसद जाति आधारित गणना है. जाति आधारित गणना में सभी धर्म और जाति के लोगों को शामिल किया जाएगा. इस कवायद में शामिल अधिकारियों को उचित प्रशिक्षण दिया गया है.' बिहार सरकार दो चरणों में जाति आधारित जनगणना कराएगी. 21 जनवरी को खत्म होने वाले पहले चरण में राज्य के सभी घरों की संख्या की गणना की जाएगी. मार्च से शुरू होने वाले दूसरे चरण में सभी जातियों, उप-जातियों और धर्मों के लोगों से संबंधित डाटा एकत्र किया जाएगा. इस सर्वेक्षण में शामिल अधिकारियों और कर्मचारियों का प्रशिक्षण 15 दिसंबर से शुरू किया गया था. जाति, उप-जाति और धर्म के अलावा सर्वेक्षण में लोगों की आर्थिक स्थिति की जानकारी भी दर्ज की जाएगी. यह जाति आधारित जनगणना का काम मई 2023 तक पूरा हो जाएगा. पहले इसके लिए फरवरी 2023 समय-सीमा रखी गई थी, जो अब एक महीने के विलंब से पूरा किया जाएगा. राज्य सरकार इस कवायद पर आकस्मिक कोष से 500 करोड़ रुपये खर्च करेगी. सर्वेक्षण के लिए सामान्य प्रशासन विभाग को नोडल प्राधिकारी बनाया गया है.
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जाति जनगणना हो क्यों रही है
बिहार की राजनीति में जाति आधारित जनगणना एक प्रमुख मुद्दा रहा है. नीतीश कुमार की जद (यू) समेत 'महागठबंधन' में शामिल सभी दल लंबे समय से जाति आधारित जनगणना को जल्द से जल्द कराने की मांग करते आ रहे थे. 2010 में केंद्र में कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने इसके लिए सहमति भी दे दी थी, लेकिन जनगणना के दौरान इस तरह के आंकड़े कभी अलग से प्रस्तुत नहीं किए गए. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने पिछले साल लोकसभा में बताया था कि केंद्र एससी और एसटी के अलावा जाति आधारित गणना नहीं करेगा. इसके बाद राज्य सरकार ने कवायद शुरू की.
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वंचित और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए लाभप्रद रहेगी जाति आधारित जनगणना
ओबीसी से आने वाले नीतीश कुमार और मंडल राजनीति से उभरे राजद के बीच भी यह मसला राजनीतिक विवाद का केंद्र रहा है. 1931 में हुई अंतिम जाति जनगणना के बाद से विभिन्न सामाजिक समूह हालिया दौर में इसके लिए नए सिरे से कवायद के प्रबल पक्षधर रहे.1931 ब्रिटिश शासन में हुई जाति आधारित जनगणना में ओबीसी आबादी 52 प्रतिशत आंकी गई थी. भारत में अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए कोटा 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के लिए 7.5 प्रतिशत है और यह जाति समेत आदिवासी पहचान पर केंद्रित है. अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 प्रतिशत का उच्चतम आरक्षण बीपी मंडल आयोग के अनुसार तैयार किया गया था. 16 नवंबर 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़े वर्गों के लिए मंडल आयोग के 27 प्रतिशत कोटा को बरकरार रखा. नीतीश कुमार ने कहा था जनसंख्या की गणना की कवायद से सरकार को इस समूह के लिए अधिक सटीक कल्याणकारी योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी. जून 2022 में सर्वदलीय बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने जातिगत जनगणना की घोषणा की और कहा कि इसका उद्देश्य लोगों को मुख्य धारा में आगे लाना है ताकि राज्य में कोई भी पीछे न छूटे.
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ऐसे होगी जाति आधारित जनगणना
पटना के जिलाधिकारी चंद्रशेखर सिंह के मुताबिक पंचायत से लेकर जिला स्तर तक जाति आधारित जनगणना का काम डिजिटली किया जाएगा. एक मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से आकड़े जुटाए जाएंगे. इसके लिए खासतौर पर तैयार किए गए एप में स्थान, जाति, परिवार में सदस्यों की संख्या, उनका पेशा और वार्षिक आय के बारे से जुड़े प्रश्न शामिल किए गए हैं. उन्होंने कहा कि जनगणना कर्मियों में शिक्षक, आंगनवाड़ी, मनरेगा या जीविका कार्यकर्ता शामिल हैं. जाति आधारित जनगणना पटना के कुल 12,696 ब्लॉक में भी की जाएगी.
HIGHLIGHTS
- बिहार सरकार दो चरणों में करा रही जाति आधारित जनगणना
- जाति आधारित जनगणना का काम मई 2023 तक पूरा होना है
- 1931 में जाति केंद्रित जनगणना में 52 फीसदी ओबीसी थे देश में