बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया है. जेडीयू सहित कई दल बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे थे, लेकिन लोकसभा में केंद्र सरकार ने लिखित में जवाब देकर उनकी मांगों को खारिज कर दिया है. ऐसा होते ही सबसे बड़ा झटका जेडीयू मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लगा. उनको इस बार उम्मीद थी कि वो बिहार को स्पेशल स्टेटस दिलवा ही देंगे, क्योंकि NDA सरकार बनवाने में उनकी भूमिका अहम है. उधर, आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा की मांग करने वाली TDP रविवार को हुई ऑल पार्टी मीटिंग में मसले पर चुप रही. आखिर इन राज्यों को स्पेशल स्टेटस क्यों मिलना मुश्किल है.
सरकार ने दिया ये लिखित जवाब
बिहार को विशेष राज्य के दर्जे की मांग को खारिज करते हुए केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में लिखित जवाब दिया. उन्होंने ये जवाब झंझारपुर से जेडीयू सांसद रामप्रीत मंडल के सवाल पर दिया. केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिल सकता है. उन्होंने लोकसभा में कहा, 'विशेष राज्य का दर्जा के लिए नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल की तरफ से कुछ पैमाने तय किए गए हैं, जिनके तहत पहाड़, दुर्गम क्षेत्र, कम जनसंख्या, आदिवासी इलाका, अंतराष्ट्रीय बॉर्डर, प्रति व्यक्ति आय और कम राजस्व के आधार पर ही किसी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकता है.'
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं?
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी के जवाब से स्पष्ट होता है कि बिहार विशेष राज्य का दर्जा मिलने के लि जरूरी पैमाने को पूरा नहीं करता है. बता दें कि बिहार को विशेष राज्य को दर्जा दिए जाने की मांग लंबे समय से उठती रही है. 2012 में यूपीए सरकार इसको लेकर बड़ी पहल हुई थी. तब सरकार ने इस मुद्दे पर स्टडी करने के लिए मंत्रियों के ग्रुप का गठन किया था लेकिन उन मंत्रियों ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि नेशलन डेवलपमेंट काउंसिल के क्राइटेरिया के तहत बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दे पाना संभव नहीं है. इसको आधार बनाते हुए अब केंद्र सरकार ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग को एक बार फिर खारिज कर दिया.
विशेष राज्य का दर्जा देने का आधार
विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए गार्डगिल फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके तहत चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों, ऐसे राज्य जो अंतरराष्ट्रीय सीमा के आस-पास हैं और वहां इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट करना बहुत जरूरी है. राज्य की आर्थिक स्थिति और प्रति व्यक्ति आय जैसे पैमानों के भी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने वक्त देखा जाता है. आर्थिक रूप से पिछले राज्यों को सहायता देने के लिए भी विशेष राज्य का दर्जा दिया जाता है.
सर्वदलीय मीटिंग में क्या रही स्थिति?
संसद के बजट सत्र होने से एक दिन पहले यानी 21 जुलाई को सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें एनडीए के सहयोगी दल जेडीयू ने एक बार फिर बिहार को स्पेशल स्टेटस दिए जाने की मांग उठाई. यह मांग LJP (रामविलास) और RJD की ओर से भी उठाई गई. हालांकि इस मीटिंग में आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा की मांग करने वाले TDP इस मसले पर चुप रही है. कांग्रेस ने TDP के इस कदम पर हैरानी जताई. पार्टी के नेता जयराम रमेश ने कहा कि बड़ी अजीब बात है कि TDP इस मसले पर चुप है. इस मीटिंग में बिहार और आंध्र प्रदेश के अलावा ओडिशा की भी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग उठी.
बिहार-आंध्र की मांग का क्या है आधार?
बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य की मांग का आधार बंटवारा है. 2000 में बिहार का बंटवारा कर झारखंड बना था और 2014 में आंध्र से अलग होकर तेलंगाना बना दिया गया था. नीतीश कई मौकों पर कह चुके हैं कि झारखंड के अलग होने से बिहार की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है. बिहार देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक है और प्रदेश की बड़ी आबादी तक हेल्थ, ऐजूकेशन, और बुनियादी ढांचे की पहुंच नहीं है. आंध्र प्रदेश को लेकर कहा जाता है कि बंटवारा करते समय उसके साथ नाइंसाफी की गई. तेलंगाना को सबकुछ दे दिया गया, जबकि आंध्र प्रदेश को कुछ नहीं मिला.
टीडीपी ने अपनी मांग पर क्यों साधी चुप्पी?
आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा की मांग पर जिस तरह से केंद्र में तीसरी बार एनडीए की सरकार बनते ही टीडीपी प्रखर नजर आई, लेकिन ऑल पार्टी मीटिंग ने इस मसले पर चुप्पी साध ली. दरअसल अभी हाल ही में आंध्र प्रदेश के उद्योग मंत्री टीजी भरत ने बताया कि बीपीसीएल राज्य में 1 लाख करोड़ रुपये निवेश करने के लिए तैयार है, जिसमें संभावित रूप से एक तेल रिफाइनरी की स्थापना भी शामिल है. उन्होंने कहा, 'बीपीसीएल राज्य में 1 लाख करोड़ रुपये निवेश करने के लिए तैयार है. शुरुआत में यह 50,000 करोड़ रुपये से 75,000 करोड़ रुपये के बीच निवेश करेगी.'
इसके बाद 10 जुलाई को चंद्रबाबू नायडू ने बीपीसीएल और वियतनामी इलेक्ट्रिक व्हीकल कंपनी VinFast के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की. बाद में खबरें आईं कि केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश प्रदेश में 60,000 करोड़ रुपये के निवेश से एक ऑयल रिफाइनरी और पेट्रोकेमिकल हब बनाने के लिए सहमति दे दी है. रिफाइनरी खोलने के लिए प्रदेश के तीन स्थानों श्रीकाकुलम, मछलीपट्टनम और रामायापत्तनम के नामों पर विचार किया गया है. अब माना जा रहा है कि इसकी औपचारिक घोषणा 23 जुलाई को पेश होने वाले केंद्रीय बजट में की जा सकती है. ऐसे में TDP का ऑल पार्टी मीटिंग में आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा की मांग को नहीं उठाना समझ में आता है.
स्पेशल स्टेटस मिलना क्यों है मुश्किल?
- केंद्र सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि वो किसी नए राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देगी. पिछले साल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलेगा.
- 14वें वित्त आयोग (2015-20) ने सिफारिश की थी कि किसी राज्य को स्पेशल कैटेगरी का स्टेटस देने की बजाय उसे केंद्र के टैक्स रेवेन्यू में मिलने वाला हिस्सा बढ़ा दिया जाए.
- बिहार और आंध्र प्रदेश दोनों ही विशेष राज्य का दर्जा देने के गार्डगिल फॉर्मूले में फीट नहीं बैठते हैं, ये राज्य ना ही अतंरराष्टीय सीमा के आसपास और ना ही चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में हैं.
- आंध्र प्रदेश की आर्थिक स्थिति बिहार की तुलना में काफी मजबूत दिखती है. राज्य में कई बड़ी कंपनी काम कर रही हैं. 2021-22 में आंध्र प्रदेश की GDP 11.43% थी, जो देश में सबसे ज्यादा थी. वहीं 2023-24 में आंध्र प्रदेश की GDP का अनुमान 17 फीसदी जताया गया.
- इसके अलावा आंध्र प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 2.70 लाख रुपये से ज्यादा है, जो 2022-23 में 2.45 लाख रुपये थी.
- बिहार की बात करें तो वह देश के पिछड़े और गरीब राज्यों में से एक है. NFHS-5 के सर्वे के अनुसार बिहार में गरीबी का स्तर सबसे ज्यादा है. यहां की 33% से ज्यादा आबादी गरीब है.
लिहाजा आंध्र प्रदेश, बिहार या फिर ओडिशा को विशेष राज्य का दर्जा शायद न ही मिले. इसकी जगह इन राज्यों को स्पेशल पैकेज मिल सकता है.
Source : News Nation Bureau