कर्नाटक (Karnataka) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेता जगदीश शेट्टार ने विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Elections 2023) में टिकट कटने के बाद अपने सहयोगी बीएल संतोष (BL Santhosh) पर 'कर्नाटक भाजपा पर नियंत्रण करने की योजना' के तहत उन्हें खत्म करने की कोशिश करने का आरोप लगाया. इसके बाद देश भर में लोगों ने सवाल पूछना शुरू कर दिया है, 'संतोष, कौन?' तीन दशकों से काफी अधिक तक भगवा पार्टी (Saffron Party) में रहने और भाजपा से इस्तीफा देने के एक दिन बाद ही शेट्टार (Jagdish Shettar) कांग्रेस में शामिल हो गए. कांग्रेसी होने के बाद भी शेट्टार रुके नहीं उन्होंने 'अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं' की वजह से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष पर 'षड्यंत्र' रचने का बड़ा और तीखा हमला किया. टिकट कटने पर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और उत्तरी कर्नाटक से छह बार के विधायक शेट्टार ने अचानक अपनी दुनिया को उल्टा-पुल्टा पाया. वह भी तब जब वह अभी भी एक दशक या उससे अधिक अपने राजनीतिक करियर को आराम से खींच सकते थे. उन्होंने संकेत दिया कि बीजेपी से टिकट काट उनके राजनीतिक करियर को विराम देने की साजिश में अन्य लोग भी शामिल थे. यह अलग बात है कि बीएल संतोष को उन्होंने 'अपमान' के लिए जिम्मेदार प्रमुख व्यक्तियों में से एक बताया.
बीजेपी छोड़ने के बाद शेट्टार ने किया संतोष को 'बेनकाब'
2014 में केंद्रीय सत्ता में भाजपा के आने के बाद शायद यह पहली बार था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संतोष को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के रूप में अपने आंतरिक घेरे में शामिल करने के लिए चुना था. यह भी पहली ही बार था कि कर्नाटक भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने खुले तौर पर संतोष पर 'गंदी राजनीति' करने का आरोप लगाया. शेट्टार ने यह भी दावा किया कि संतोष पीएम मोदी और अमित शाह को अंधेरे में रखकर बीजेपी को 'बर्बाद' कर रहे हैं. यह पब्लिक डोमेन में है कि बीएल संतोष कई राज्यों में कई 'बैकरूम ऑपरेशन' में शामिल रहे हैं. इन ऑपरेशंस में बड़े पैमाने पर अहं को तोड़ गया है और कम से कम बाहरी दुनिया के लिए कुछ आभासी गैर-लोगों को सत्ता में लाया गया. इसके बावजूद अब तक किसी ने यह आरोप लगाने की हिम्मत नहीं की थी संतोष बिना किसी अधिकार के एक 'लोन वोल्फ' की तरह काम कर रहे थे. हालांकि यह भी सच है कि जगदीश शेट्टार ने भाजपा छोड़ने और कांग्रेस में शामिल होने के बाद ही बीएल संतोष को 'बेनकाब' करने की कोशिश की.
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बीएल संतोषः रहस्यमय और शक्तिशाली आदमी
नरेंद्र मोदी जब से 2014 लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बने हैं उनकी 'किचन कैबिनेट' में सबसे रहस्यमय व्यक्तियों में से एक सबसे लंबे नामों वाला कर्नाटक के उडुपी जिले का एक कट्टर संघी आदमी है: बोम्माराबेट्टू लक्ष्मीजनार्दन संतोष या संक्षेप में बीएल संतोष. कर्नाटक के तटीय जिले के एक छोटे से गांव हिरियादका में एक ब्राह्मण परिवार से आने वाले 56 वर्षीय संतोष इंजीनियरिंग स्नातक हैं. वह बहुत कम उम्र में आरएसएस में शामिल हो गए और संगठनात्मक कार्यों में सक्रियता से शामिल होने के कारण तेजी से सीढ़ियां चढ़ते गए. संतोष ने न केवल आरएसएस की विचारधारा और 'परिवार' के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण, बल्कि कठिन राजनीतिक परिस्थितियों को कुशलता से संभालने की अपनी क्षमता के कारण शीर्ष नेतृत्व को प्रभावित किया. 2014 में पीएम मोदी द्वारा चुने जाने के बाद दक्षिणी राज्यों के लिए भाजपा के संयुक्त महासचिव (संगठन) बनाए गए संतोष को 2019 में भाजपा की शानदार वापसी के बाद नई दिल्ली में महासचिव (संगठन) के पद पर पदोन्नत किया गया. उसके बाद से बीजेपी के लगभग हर राजनीतिक संकट में नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने बीएल संतोष पर जबर्दस्त भरोसा जताया. संतोष राजनीतिक संकट पैदा करने वालों को सख्त संदेश देने या कार्य को पूरा करने के लिए 'सही आदमी' की भूमिका अच्छे से निभाते आए हैं. यही नहीं, हर राजनीतिक संकट के दूर होने पर हर बार ऐसा लगता रहा कि बीएल संतोष ने अपने काम को बीजेपी की राजनीति के शीर्ष नेतृत्व की इच्छा के अनुसार काम को अंजाम दिया है. चाहे वह गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी से इस्तीफा देने और भूपेंद्र पटेल के लिए रास्ता बनाने का मसला रहा हो या त्रिपुरा में माणिक साहा के रूप में बिप्लब देब को मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित करना हो या तीरथ सिंह रावत के स्थान पर पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित करना हो... जो भी काम संतोष को दिया गया उसे उन्होंने बगैर किसी हिचक के पूरा किया. गौरतलब है कि ये सभी बदलाव विधानसभा चुनाव होने से कुछ महीने पहले किए गए और खुशी की बात है कि भाजपा के लिए वांछित परिणाम भी दिए.
कर्नाटक में वैकल्पिक शक्ति केंद्र बन कर उभरे बीएल संतोष
अब जगदीश शेट्टार के इस्तीफे के साथ बीएल संतोष की अपने ही गृह राज्य कर्नाटक में भाजपा के अंदरूनी मामलों को संभालने पर आलोचना की गई है. साथ ही उन पर कुछ लोगों के प्रति पूर्वाग्रह रखने और अपने निहित स्वार्थ के तहत काम करने का आरोप लगा है. कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा की जबरदस्त छलांग और उनके राजनीतिक दशा-दिशा का बदलना. परिणतिस्वरूप उनके चार बार मुख्यमंत्री बनने के सफर को संतोष ने करीब से देखा है. इसके साथ ही संतोष ने येदियुरप्पा की कार्यशैली के बारे में अपनी राय भी बनाई. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में 2008 और 2011 के बीच मुख्यमंत्री के रूप में येदियुरप्पा के पहले कार्यकाल के दौरान खनन सम्राट जनार्दन रेड्डी के साथ उनका विवादास्पद संबंध, जिसके परिणामस्वरूप एक बड़ा घोटाला हुआ और येदियुरप्पा को इस्तीफा देने के लिए कहा गया पर भी संतोष की पैनी नजर रही. बीएल संतोष उस वक्त कर्नाटक में आरएसएस के प्रचारक थे और हर राजनीतिक घटनाक्रम पर पैनी निगाह रखते थे. येदियुरप्पा के 2013 विधानसभा चुनावों से ठीक पहले भाजपा छोड़ने और खुद की पार्टी कर्नाटक जनता पार्टी (केजेपी) बनाने के भाजपा और स्वयं येदियुरप्पा के लिए विनाशकारी परिणाम रहे थे. ऐसे में येदियुरप्पा प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर भाजपा में लौट आए और 2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा को 17 सीटें जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. संतोष अभी भी किनारे से एक उत्सुक पर्यवेक्षक के रूप में उक्त सभी घटनाक्रम देख रहे थे. भाजपा के संयुक्त महासचिव (संगठन) बनने के बाद संतोष मोदी और अमित शाह के करीब चले गए. हालांकि कर्नाटक की राजनीति और उसके चेहरों को लेकर अथाह थाह रखने वाले संतोष कर्नाटक से जुड़े हर बड़े फैसले में शामिल रहे. हालांकि येदियुरप्पा और संतोष के बीच खिंचाव हमेशा विद्यमान रहा. ऐसे जल्द ही येदियुरप्पा से असंतुष्ट या राज्य के शीर्ष नेतृत्व की अनदेखी के शिकार नेता संतोष की ओर आकर्षित हुए. इससे बीएल संतोष भाजपा कर्नाटक में एक वैकल्पिक शक्ति केंद्र बन कर भी उभरे.
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संतोष की स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता
संतोष का स्वतंत्र निर्णय लेने का पहला प्रदर्शन येदियुरप्पा की जगह नलिन कुमार कतील को राज्य भाजपा अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के साथ हुआ. पार्टी में एक वरिष्ठ व्यक्ति को अध्यक्ष नियुक्त करने की परंपरा रही है, लेकिन संतोष ने मंगलुरु से युवा सांसद कतील को अध्यक्ष पद देकर इस प्रथा को तोड़ा. माना जाता है कि जब संतोष पहली बार दिल्ली आए थे, तो कतील के साधारण एमपी क्वार्टर में कुछ महीने रुके थे और उसी दौरान कतील उन्हें पसंद आ गए थे. फिर 2018 के चुनावों के बाद एक त्रिशंकु विधानसभा सामने आई और भाजपा को बहुमत से नौ सीटें कम मिली. उस वक्त येदियुरप्पा ने खुद के मुख्यमंत्री के रूप में अभिषेक करने के लिए पार्टी पर दबाव डाला. येदियुरप्पा का दावा था कि इस तरह वह विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़ा आसानी से जुटा लेंगे. हालांकि येदियुरप्पा और उनके विश्वस्त सहयोगी जनार्दन रेड्डी एक बार फिर 'ऑपरेशन कमल' को अंजाम देने में विफल रहे. इसके बाद जब येदियुरप्पा को इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा, तो शीर्ष नेतृत्व और केसरिया पार्टी के दामन पर छींटे पड़ चुके थे. संतोष के पास येदियुरप्पा की अति महत्वाकांक्षा पर उपहास करने का एक और अवसर था.
येदियुरप्पा की जिद और संतोष की जिम्मेदारी
येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के पतन के परिणामस्वरूप जनता दल (सेक्युलर)-कांग्रेस गठबंधन सरकार बनी, जिसमें एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री थे. यह एक अस्थिर व्यवस्था थी जो अधिक समय तक नहीं चल सकती थी. फिर येदियुरप्पा कांग्रेस के 15 विधायक और जद (एस) के तीन विधायक भाजपा के खेमे में शामिल कराने में कामयाब रहे. नतीजतन सत्ता में आने के 14 महीने के भीतर कुमारस्वामी सरकार गिर गई. अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद येदियुरप्पा ने एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने की तीव्र उत्कंठा दिखाई. हालांकि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उनके प्रयासों को रोक दिया और एक नए चेहरे की तलाश के संकेत दिए. यह काम भी संतोष को सौंपा गया कि वह सीएम पद के लिए काबिल व्यक्ति की पहचान करें. हालांकि तीन दिन बीत जाने के बावजूद सरकार का गठन होते नहीं देख येदियुरप्पा ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को फिर धमकी दी. उन्होंने कहा अगले कुछ घंटों में मुख्यमंत्री के लिए उनके नाम की घोषणा कर दी जाए अन्यथा वह एक प्रेस कांफ्रेंस बुला राजनीति से अपने संन्यास की घोषणा कर देंगे. येदियुरप्पा की यह चाल काम कर गई और उन्होंने चौथी बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.
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संतोष की उम्मीदवारों के चयन में भारी दखल
जुलाई 2021 में येदियुरप्पा सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाजें मुखर होने बाद पार्टी नेतृत्व ने येदियुरप्पा को उनकी उम्र और आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए पद छोड़ने के लिए कहा. जब येदियुरप्पा ने फिर टाल-मटोल की, तो पीएम मोदी ने खुद उन्हें दिल्ली बुलाया और भविष्य में 'बेहतर जिम्मेदारियों' का वादा कर मना भी लिया. उस वक्त भी जगदीश शेट्टार सहित कई अन्य वरिष्ठ बीजेपी नेताओं के दावों की अनदेखी करते हुए आश्चर्यजनक रूप से बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया. कर्नाटक में सत्ता के गलियारे इन चर्चाओं से भरे हुए हैं कि संतोष, बोम्मई और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी का 'तिकड़ी' बन गई है और वे 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए मिलकर काम कर रहे हैं. इस तिकड़ी ने उम्मीदवारों के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और लगभग 70 नए चेहरे चुने, जो ज्यादातर पार्टी कार्यकर्ता हैं. कहते हैं कि इन उम्मीदवारों का चयन भी प्रमुखता से बीएल संतोष ने किया. यही नहीं, लिंगायत समुदाय के कुछ वर्गों का मानना है कि शट्टर को दरकिनार कर दिया गया ताकि वह मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर हो जाएं. साथ ही इस तरह संतोष, बोम्मई या जोशी के लिए मैदान साफ हो जाए बशर्ते भाजपा इस चुनाव में बहुमत हासिल कर ले. क्या यही है उनका गेम प्लान? यह तो केवल समय बताएगा.
HIGHLIGHTS
- पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद बीएल संतोष को संघ से चुनकर बनाया राष्ट्रीय महासचिव
- पीएम मोदी की 'किचन कैबिनेट' के सबसे रहस्यमय व्यक्तियों में से एक हैं संतोष
- 'संकटमोचक' संतोष पर पहली बार लगा निहित स्वार्थवश फैसले करने का आरोप
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