दुनिया के चौथे सबसे बड़े लोकतंत्र ब्राजील में रविवार को राष्ट्रपति पद के लिए मतदान हो रहा है. मुख्य मुकाबला धुर दक्षिणपंथी जेयर बोलसोनारो और भूतपूर्व वामपंथी लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा के बीच है. ब्राजील (Brazil) में चुनाव ऐसे समय हो रहे हैं जब उसकी अर्थव्यवस्था कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) के प्रभाव से गहरे तक जूझ रही है. ब्राजील लातिन अमेरिका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, जिसकी गिनती विश्व की 10 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भी होती है. इस चुनाव का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ब्राजील की अवाम की संवैधानिक संस्थाओं के प्रति अविश्वास की भावना और लोकतांत्रिक संस्था के सिद्धांतों को लेकर चिंताएं बढ़ी हुई हैं. इसकी वजह यह है कि चुनाव प्रचार अभियान के दौरान बोलसोनारो (Jair Bolsonaro) के बयान बहुत हद तक अमेरिका के भूतपूर्व रष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) से मेल खाते मिले. उन बयानों से ऐसा लगा कि बोलसोनारो आसानी से हार नहीं मानेंगे. लूला डा सिल्वा (Luiz Inacio Lula da Silva) की वापसी के संकेत दे रहे ओपीनियन पोल को खारिज करना और ब्राजील की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर संदेह जताना इस कड़ी में शामिल है. हालांकि ओपीनियन पोल लूला की जीत के प्रति आश्वस्त हैं.
बोलसोनारो बनाम लूला
2018 में बोलसोनारो के राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के बाद ब्राजील ने तमाम उतार-चढ़ाव देखे हैं. हालांकि उनके सत्ता संभालने के पहले ब्राजील आर्थिक मंदी का दौर झेल रहा था. कुछ समय तक पहले जो अर्थव्यवस्था विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शुमार थी, उसके लिए यह बेहद चिंता की बात थी. विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार ब्राजील में बेरोजगारी बढ़ी है और बीते एक दशक में लगातार नीचे जा रहे सकल घरेलू उत्पाद में सिर्फ 2021 में थोड़ा सुधार देखने को मिला. इसी बीच कोरोना महामारी एक बड़ा झटका बनकर सामने आई, जिसने ब्राजील में 6 लाख लोगों को निगल लिया. कोरोना संक्रमण से ब्राजील में मौत का आंकड़ा अमेरिकी के बाद सबसे ज्यादा रहा. ऐसी त्रासदी के बीच एक पत्रकार ने जब बोलसोनारो से कोरोना मौत पर सवाल पूछा, तो उन्होंने पलट कर पूछ लिया, 'किस देश में लोग नहीं मर रहे है'. वह यहीं नहीं रुके उन्होंने पत्रकार को लगभग झिड़कते हुए कहा, 'देखो... मैं यहां बोर होने नहीं आया हूं'. यही नहीं, कोरोना वैक्सीन की खिलाफत में भी बोलसोनारो काफी कुछ बोले. इसमें भी 'जो लोग कोरोना वैक्सीन ले रहे है हैं वह मगरमच्छ में बदल जाएंगे' वाला बयान दुनिया भर की सुर्खियों में छाया था. हालांकि बोलसोनारो को व्यापार हितैषी माना जाता है, जो केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता के पक्षधर हैं. यही नहीं, पेंशन सिस्टम में आमूल-चूल बदलाव भी उनकी एक बड़ी उपलब्धि है. इस कड़ी में निम्न आय वर्ग परिवारों के लिए मासिक भुगतान से उनकी लोकप्रियता में थोड़ा इजाफा भी हुआ है. 2018 में उनकी हत्या के प्रयास से भी बोलसोनारो की छवि में सुधार आया. इस घटना के बाद उन्होंने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए खुद का 'दूसरा जन्म' बताया. ऐसे में कट्टर समर्थक उन्हें 'सिद्ध पुरुष' बतौर भी देखने लगे हैं. ईसाईयों और उच्च आय वर्ग में उनके प्रशंसकों की बड़ी संख्या है. हालांकि जनजातीय वर्ग मुखर आलोचक है, जिसकी निगाह में व्यापार हितैषी होने के फेर में बोलसोनारो ने अमेजन की जंगल को गंभीर नुकसान पहुंचाया.
बोलसोनारो के प्रतिद्वंद्वी लूला चुनाव जीतने के बाद तेल और गैस की राष्ट्रीय गैस कंपनी पेट्रोब्रास पर सरकार का नियंत्रण चाहते हैं. इसके अलावा वह स्वच्छ ऊर्जा और जनकल्याण से जुड़े खर्चों में कमी लाना चाहते हैं. लूला ने अपने चुनाव अभियान में 2000 के दशक की पिंक वेव का गौरव के साथ जिक्र किया. यह वह दौर था जब दक्षिण अमेरिकी इलाके में धुर वामपंथी नेता अपने-अपने देश की अर्थव्यवस्था को सफलता के साथ चला रहे थे. लूला का निम्न आय वर्ग समेत कुछ खास इलाकों में जबर्दस्त समर्थन प्राप्त है. हालांकि उनका नाम कार वॉश घोटाले से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से सरकार को 800 मिलियन डॉलर की चपत लगी थी. हालांकि 2021 में ब्राजील की सुप्रीम कोर्ट ने लूला को इन आरोपों से बरी कर दिया.
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राष्ट्रपति चुनाव के परिणामों से जुड़ी चिंताएं
ब्राजील में 18 से 70 के वय के बीच हरेक साक्षर मतदाता के लिए मतदान अनिवार्य है. लिख-पढ़ नहीं सकने वाले 16 से 17 या 70 से अधिक वय के लोग चाहें तो मतदान प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते हैं. ब्राजील चुनाव में यदि किसी राष्ट्रपति पद के दावेदार को 50 फीसदी से अधिक वोट नहीं मिलते हैं, तो 30 अक्टूबर को रनऑफ होगा. इसमें भी जिसका पहले राउंड में सबसे ज्यादा मत प्रतिशत होगा वह विजेता घोषित किया जाएगा. यही वह बात जिसको लेकर चिंता जताई जा रही है. फिलवक्त के आंकड़े बता रहे हैं कि बोलसोनारो को 20 से 22 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि लूला को 10 से 12 प्रतिशत के बीच. बोलसोनारो का दो टूक कहना है कि अगर उन्हें पहले राउंड में जीत नहीं मिलती है, तो वह चुनाव परिणामों को ही खारिज कर देंगे. इसके अलावा उन्होंने ईवीएम पर भी बगैर किसी आधार के संदेह जताया है. बोलसोनारो 'तानाशाही' के भी पक्षधर रहे हैं. अस्सी के दशक के मध्य में उन्होंने 1999 में ब्रिटिशअखबार द गार्डियन सेकहा था, 'इस देश में आप सिर्फ मतदान के सहारे कुछ भी नहीं बदल सकते हैं. कुछ नहीं मतलब कुछ भी नहीं. दुर्भाग्य से स्थितियों में बदलाव गृहयुद्ध से आएगा. उस वक्त हम वह सब कुछ करेंगे जो सेना नहीं कर पा रही है. भले ही इसके लिए 30 हजार लोगों को मारना ही क्यों न पड़े. कुछ मासूम मरते हैं तो मरें.'
HIGHLIGHTS
- वर्तमान राष्ट्रपति बोलसोनारो ने दिए ट्रंप की तरह हार नहीं मानने के संकेत
- लूला डा सिल्वा को ओपीनियन पोल फिलवक्त सबसे आगे रहे हैं बता