सचिन पायलट (Sachin Pilot) को भले ही एहसास न हो, लेकिन किसी भी लंबी बातचीत में उन्हें हमेशा एक वाक्य कहने की आदत है और वह है 'बिल्ली की चमड़ी उतारने के एक से बढ़कर एक तरीके हैं.' उनकी अभिव्यक्ति में कोई अतिरंजना नहीं होती, बल्कि यह उनकी मानसिक प्रक्रिया को दर्शाता है. इसमें उनका सकारात्मक भरा आशय रहता है कि लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक नहीं कई तरीके अपनाने चाहिए. राजस्थान (Rajasthan) के मुख्यमंत्री (Chief Minister) के रूप में अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) की जगह लेने को इच्छुक सचिन पायलट अपने स्वभाव के अनुकूल लंबे समय से 'इंतजार करो और देखो' की रणनीति अपनाए हुए हैं. इस तरह वह सोनिया, राहुल, प्रियंका के रूप में गांधी (Gandhi Family) तिकड़ी समेत एआईसीसी प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) को अशोक गहलोत पर लगाम कसने की पूरी छूट दिए बैठे हैं. हालांकि वह शीर्ष नेतृत्व परिवर्तन का हाथ पर हाथ धरे इंतजार भी नहीं कर रहे हैं, वह भी अब कांग्रेस (Congress) के एक बगैर 'दाढ़ी वाले यात्री' की भूमिका में आ चुके हैं.
पायलट खेमा इसे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का फॉलो-अप बता रहा
सचिन पायलट 16 जनवरी से 28 जनवरी तक राजस्थान के जाट और राजपूत क्षेत्रों में जनसभाओं की एक श्रृंखला में किसानों और युवाओं को संबोधित करेंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 जनवरी से भीलवाड़ा में लगभग दस महीने दूर राजस्थान विधानसभा चुनाव अभियान को औपचारिक शुरुआत करने आ रहे हैं. ऐसे में यात्रा शुरू करने के सचिन पायलट के सधे कदम ने कांग्रेस हलकों समेत अन्य राजनीतिक दलों में भी भारी उत्सुकता जगा दी है. कुछ इसे दबाव की रणनीति के रूप में देख रहे हैं, जबकि अन्य इसे सोनिया-राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को दो टूक अल्टीमेटम बतौर देख रहे हैं. हालांकि पायलट खेमा इस बात का खास ध्यान रख रहा है कि इस यात्रा का नकारात्मक अंडरटोन न जाए. उनके विचार में सचिन पायलट का यह जनसंपर्क अभियान वास्तव में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का फॉलो-अप है. इसके जरिये सचिन पायलट 2023 नवंबर में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों से पहले ऊर्जा स्तर को बरकरार रखना चाहते हैं.
I will be among people and workers in various districts of Rajasthan.
— Sachin Pilot (@SachinPilot) January 12, 2023
The schedule for public meetings and interactions is as follows:
16 January - Nagaur
17 January - Hanumangarh
18 January - Jhunjhunu
19 January - Pali
20 January - Jaipur pic.twitter.com/iPvv5PFKtJ
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राजस्थान में कांग्रेस को अंधकारमय भविष्य से बचाने की जद्दोजेहद
हालांकि आलोचक पायलट के इस कदम के आलोक में सवालों की झड़ी लगा रहे हैं. मसलन, 'क्या यह राज्य कांग्रेस का कार्यक्रम है? क्या पायलट अपने निजी हैसियत से ऐसा कर रहे हैं? उसका वर्तमान पक्ष क्या है? क्या उन्होंने प्रदेश कांग्रेस कमेटी या एआईसीसी से अनुमति मांगी है? अशोक गहलोत सरकार पर उनके हमले या आलोचना की क्या लाइन होगी?' इस पर पायलट खेमा कहता है कि 124 सिख यूनिट में टेरिटोरियल आर्मी कैप्टन रहे सचिन जाहिरा तौर पर कांग्रेस को पंजाब, दिल्ली, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और गुजरात सरीखे हश्र से बचाना चाहते हैं, जहां पार्टी ने अपनी राजनीतिक जमीन बिल्कुल खो दी है. 2004 के आसपास जब सचिन पायलट कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में शामिल हुए थे, तब तक उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में कांग्रेस अपनी राजनीतिक प्रासंगिकता खो चुकी थी. अगले कुछ सालों में भारत की सबसे पुरानी पार्टी को पंजाब, दिल्ली, आंध्र, तेलंगाना, ओडिशा और गुजरात में एक समान अंधकारमय भविष्य का सामना करना पड़ा. इन राज्यों में कांग्रेस अब मुख्य विपक्षी पार्टी या सत्ताधारी पार्टी के लिए विश्वसनीय प्रतिद्वंद्वी बनने के लिए संघर्ष कर रही है.
कांग्रेस के लिए आसन्न विधानसभा चुनाव राजनीति भविष्य के लिहाज से करो या मरो वाला
इस अर्थ में देखें तो कई बाधाओं और सवालों के बावजूद पायलट का यह नवीनतम प्रयास एक तरह से 'कांग्रेस बचाओ अभियान' प्रतीत होता है. यहां यह उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने पांच साल के कार्यकाल के बाद जब भी सत्ता गंवाई, तो उसकी हार बेहद निराशाजनक रही है. 2003 में जब कांग्रेस पार्टी अशोक गहलोत के नेतृत्व में हारी, तब उसे 200 सदस्यीय विधानसभा में से 56 सीटों पर जीत मिली थी. 2013 राजस्थान विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस का आंकड़ा महज 21 सीटों पर सिमट आया था! इस कड़ी में पहले की परिपाटी समेत हालिया आंतरिक आंकलन में भी राजस्थान में कांग्रेस की स्थिति खराब दिखती है. वास्तव में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी पदाधिकारियों समेत कुछ वाह्य चुनावी विश्लेषकों ने अपनी रिपोर्ट सौंपी हैं, जिसमें आगामी राजस्थान विधानसभा चुनावों में पार्टी की निराशाजनक तस्वीर पेश की गई है.
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लंबी रेस का घोड़ा करार दिए जाते हैं सचिन पायलट
सचिन पायलट के सार्वजनिक जीवन में एक 'सामान्य राजनेता' की शक्ल-ओ-सूरत उनकी ताकत रही है. गलती के प्रति हमेशा चौकस और विनम्र पायलट की सार्वजनिक घोषणाएं कसौटी पर खरी उतरने वाली रहती हैं. राजनीतिक रूप से सही और खुद को राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बनाए रखने वाली. पार्टी के कई पुराने कार्यकर्ता उन्हें 'लंबी रेस का घोड़ा' कहते हैं यानी वह नेता जिसमें क्षमता है और जो लंबे समय में अपनी क्षमता साबित करने के योग्य है. हालांकि पायलट को अक्सर अशोक गहलोत के अपमान, तानों और उकसाने वाली बातों रूपी जहर को निगलना पड़ता है. स्टीफन कॉलेज और अन्य सामाजिक समूहों के बीच चलने वाले हंसी-मजाक में पायलट एक केंद्र बिंदु हैं. उनके बारे अक्सर लोग मजाकिया लहजे में कहते हैं कि वह अकेले नेता हैं, जो राहुल गांधी की लियो टॉल्स्टॉय की उक्ति पर विश्वास करते हैं. गौरतलब है कि महान दार्शनिक लियो टॉल्स्टॉय ने कहा था 'धैर्य और समय ही दो सबसे शक्तिशाली योद्धा हैं.'
HIGHLIGHTS
- सचिन पायलट के इस कदम को लेकर राजस्थान कांग्रेस में सियासी पारा चढ़ा
- पायलट खेमा इन जनसभाओं को 'कांग्रेस बचाओ अभियान' बतौर देख रहा है
- विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस की आंतरिक रिपोर्ट बेहद निराशाजनक