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Britain ने मॉरीशस को सौंपा चागोस द्वीपसमूह, खत्म हुआ 50 साल पुराना विवाद, जानें- कैसे रंग लाया भारत का रूख!

Chagos Archipelago Mauritius: ब्रिटेन ने आखिरकार चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस को सौंप दिया है. आइए जानते हैं कि विवाद के समाधान में भारत का रूख कैसे रंग लाया?

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Ajay Bhartia
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ब्रिटेन ने मोरीशस को सौंपा चागोस द्वीपसमूह, ऐसे खत्म हुआ 50 साल पुराना विवाद, क्या रंग लाया भारत का रूख?

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Chagos Archipelago Mauritius: मॉरीशस के लिए आज का दिन बड़ी ही अहम है. ब्रिटेन ने आखिरकार चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस को सौंप दिया है. इस तरह दोनों देशों के बीच 50 से अधिक वर्षों पुराना विवाद खत्म हो गया. ये खबर उन लोगों के लिए भी राहत भरी है, जो दशकों पहले यहां से विस्थापित किए गए थे. अब वो अपने घर वापस लौट सकेंगे. हालांकि, डिएगो गार्सिया पर ब्रिटिश-यूएस सैन्य अड्डे का इस्तेमाल जारी रखेगा. आइए जानते हैं कि चागोस द्वीपसमूह को लेकर क्या विवाद था और इसके समाधान होने में भारत का रूख कैसे रंग लाया?

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एक रिपोर्ट के अनुसार, चागोस द्वीपसमूह (Chagos Archipelago News) को लेकर यूनाइटेड किंगडम (यूके) और मॉरीशस में एक ऐतिहासिक समझौता हुआ है, जिसके तहत चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस को सौंपा गया, जबकि यूके डिएगो गार्सिया पर ब्रिटिश-यूएस सैन्य अड्डे का उपयोग बरकरार रखेगा. मॉरीशस के प्रधानमंत्री और यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री ने आज यानी गुरुवार इस समझौते की पुष्टि की और कहा गया कि चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता को ऐतिहासिक समझौते के तहत मॉरीशस को सौंपी जा रही है. इसको लेकर 10 डाउनिंग स्ट्रीट द्वारा प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की गई है.

क्या है चागोस द्वीपसमूह? (What is Chagos Archipelago)

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चागोस 60 से अधिक द्वीपों का एक समूह है. यह हिंद महासागर में स्थित है, जो 250000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. यह सात एटोल का समूह है. बता दें कि एटोल कॉरल आयलैंड को कहते हैं. चारों ओर से समुद्र से घिरे होने के चलते यहां काफी जैव विविधता पाई जाती है.

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चागोस द्वीपसमूह को लेकर क्या था विवाद?

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1968 में मॉरीशस को ब्रिटेन से स्वतंत्र मिली. मॉरीशस को आजादी देने के लिए ब्रिटेन ने शर्त रखी थी कि अगर वो चागोस द्वीपसमूह (Chagos Archipelago Dispute) की मांग करेगा तो उसको वो स्वतंत्रता नहीं देंगे. तत्कालीन मॉरीशस के प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन की ये शर्त मान ली, क्योंकि उनको लगता था कि अभी स्वतंत्र होना जरूरी है. यहीं से दोनों देशों के बीच चागोस द्वीपसमूह को लेकर तनाव शुरू हुआ. चागोस द्वीपसमूह से ब्रिटेश की ओर से विस्थापित किए गए लोगों ने अपना विरोध जारी रखा. 

ICJ ने दिया था ये आदेश

लोगों का आरोप था कि ब्रिटेन ने अवैध रूप से चागोस द्वीपसमूह पर कब्जा कर रखा है. उसे पूरे इलाको को खाली कर देना चाहिए. इन्हीं दीपों में एक द्वीप है, डियागो गार्सिया जिसे ब्रिटेन ने अमेरिका को सैन्य अड्डे के लिए पट्टे पर दे दिया, जो भी अभी है. हालांकि ब्रिटेन ने इन द्वीप समूह के लिए मॉरीशस को 4 बिलियन पाउंड से अधिक का भुगतान भी किया था. 2019 में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में भी जाता है. ICJ ने फैसला सुनाते हुए यूके को चागोस द्वीप समूह को मॉरीशस को सौंपने के लिए कहा था. 

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रंग लाया भारत का रूख?

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर जुलाई महीने में मॉरीशस दौरे पर गए थे. तब उन्होंने चागोस द्वीपसमूह को लेकर बड़ा बयान दिया था. जयशंकर ने चागोस द्वीपसमूह को लेकर कहा था कि भारत चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस के दावे का समर्थन करता है और करता रहेगा. तब उनका ये बयान काफी चर्चा का विषय बन गया था. मॉरीशस ने इसके लिए भारत का आभार जताया था. 

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हालांकि, ये पहली बार नहीं था जब भारत ने मॉरीशस के चागोस द्वीपसमूह पर दावे का समर्थन किया था. इससे पहले भी भारत ने आईसीजे में अपनी दलील में कहा था कि चागोस द्वीपसमूह मॉरीशस के पास रहा है और रहेगा. इस मसले पर भारत के अलावा अन्य कई देश भी हैं, जिन्होंने चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस के दावे का समर्थन किया. इन देशों ने चागोस द्वीपसमूह पर ब्रिटेन को कब्जे को सही नहीं बताया. 

कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि इस विवाद के समाधान होने में भारत का रूख रंग लगाया, क्योंकि उसने ब्रिटेन-अमेरिका के साथ अपने संबंधों के बिगड़ने की परवाह किए बगैर मॉरीशस का साथ दिया. वहीं, इस मसले पर भारत समेत कई देशों के मॉरीशस के साथ खड़े होने से ब्रिटेन कहीं न कहीं बैकफुट पर जरूर था, जिसका नतीजा आज दिखाई दिया है.

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