Chagos Archipelago Mauritius: मॉरीशस के लिए आज का दिन बड़ी ही अहम है. ब्रिटेन ने आखिरकार चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस को सौंप दिया है. इस तरह दोनों देशों के बीच 50 से अधिक वर्षों पुराना विवाद खत्म हो गया. ये खबर उन लोगों के लिए भी राहत भरी है, जो दशकों पहले यहां से विस्थापित किए गए थे. अब वो अपने घर वापस लौट सकेंगे. हालांकि, डिएगो गार्सिया पर ब्रिटिश-यूएस सैन्य अड्डे का इस्तेमाल जारी रखेगा. आइए जानते हैं कि चागोस द्वीपसमूह को लेकर क्या विवाद था और इसके समाधान होने में भारत का रूख कैसे रंग लाया?
ये भी पढ़ें: Chulha Tax: क्या है चूल्हा टैक्स, पंजाब पंचायत चुनावों में क्या बन गया विवाद का विषय? जानें
एक रिपोर्ट के अनुसार, चागोस द्वीपसमूह (Chagos Archipelago News) को लेकर यूनाइटेड किंगडम (यूके) और मॉरीशस में एक ऐतिहासिक समझौता हुआ है, जिसके तहत चागोस द्वीपसमूह को मॉरीशस को सौंपा गया, जबकि यूके डिएगो गार्सिया पर ब्रिटिश-यूएस सैन्य अड्डे का उपयोग बरकरार रखेगा. मॉरीशस के प्रधानमंत्री और यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री ने आज यानी गुरुवार इस समझौते की पुष्टि की और कहा गया कि चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता को ऐतिहासिक समझौते के तहत मॉरीशस को सौंपी जा रही है. इसको लेकर 10 डाउनिंग स्ट्रीट द्वारा प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की गई है.
क्या है चागोस द्वीपसमूह? (What is Chagos Archipelago)
चागोस 60 से अधिक द्वीपों का एक समूह है. यह हिंद महासागर में स्थित है, जो 250000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. यह सात एटोल का समूह है. बता दें कि एटोल कॉरल आयलैंड को कहते हैं. चारों ओर से समुद्र से घिरे होने के चलते यहां काफी जैव विविधता पाई जाती है.
ये भी पढ़ें: आखिर Pakistan में क्या कर रहा है भारत का भगौड़ा Zakir Naik, दोनों देशों के बीच बढ़ेगा तनाव?
चागोस द्वीपसमूह को लेकर क्या था विवाद?
1968 में मॉरीशस को ब्रिटेन से स्वतंत्र मिली. मॉरीशस को आजादी देने के लिए ब्रिटेन ने शर्त रखी थी कि अगर वो चागोस द्वीपसमूह (Chagos Archipelago Dispute) की मांग करेगा तो उसको वो स्वतंत्रता नहीं देंगे. तत्कालीन मॉरीशस के प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन की ये शर्त मान ली, क्योंकि उनको लगता था कि अभी स्वतंत्र होना जरूरी है. यहीं से दोनों देशों के बीच चागोस द्वीपसमूह को लेकर तनाव शुरू हुआ. चागोस द्वीपसमूह से ब्रिटेश की ओर से विस्थापित किए गए लोगों ने अपना विरोध जारी रखा.
ICJ ने दिया था ये आदेश
लोगों का आरोप था कि ब्रिटेन ने अवैध रूप से चागोस द्वीपसमूह पर कब्जा कर रखा है. उसे पूरे इलाको को खाली कर देना चाहिए. इन्हीं दीपों में एक द्वीप है, डियागो गार्सिया जिसे ब्रिटेन ने अमेरिका को सैन्य अड्डे के लिए पट्टे पर दे दिया, जो भी अभी है. हालांकि ब्रिटेन ने इन द्वीप समूह के लिए मॉरीशस को 4 बिलियन पाउंड से अधिक का भुगतान भी किया था. 2019 में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में भी जाता है. ICJ ने फैसला सुनाते हुए यूके को चागोस द्वीप समूह को मॉरीशस को सौंपने के लिए कहा था.
ये भी पढ़ें: Israel में फिर आग बरसाने की तैयारी में ईरान, लीक हुआ नया प्लान! हिट लिस्ट में नेतन्याहू समेत ये टॉप 5 लीडर
रंग लाया भारत का रूख?
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर जुलाई महीने में मॉरीशस दौरे पर गए थे. तब उन्होंने चागोस द्वीपसमूह को लेकर बड़ा बयान दिया था. जयशंकर ने चागोस द्वीपसमूह को लेकर कहा था कि भारत चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस के दावे का समर्थन करता है और करता रहेगा. तब उनका ये बयान काफी चर्चा का विषय बन गया था. मॉरीशस ने इसके लिए भारत का आभार जताया था.
हालांकि, ये पहली बार नहीं था जब भारत ने मॉरीशस के चागोस द्वीपसमूह पर दावे का समर्थन किया था. इससे पहले भी भारत ने आईसीजे में अपनी दलील में कहा था कि चागोस द्वीपसमूह मॉरीशस के पास रहा है और रहेगा. इस मसले पर भारत के अलावा अन्य कई देश भी हैं, जिन्होंने चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस के दावे का समर्थन किया. इन देशों ने चागोस द्वीपसमूह पर ब्रिटेन को कब्जे को सही नहीं बताया.
कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि इस विवाद के समाधान होने में भारत का रूख रंग लगाया, क्योंकि उसने ब्रिटेन-अमेरिका के साथ अपने संबंधों के बिगड़ने की परवाह किए बगैर मॉरीशस का साथ दिया. वहीं, इस मसले पर भारत समेत कई देशों के मॉरीशस के साथ खड़े होने से ब्रिटेन कहीं न कहीं बैकफुट पर जरूर था, जिसका नतीजा आज दिखाई दिया है.
ये भी पढ़ें: Russia-Ukraine War: रूस का यूक्रेन के साथी देशों को तगड़ा झटका, कब्जाए 800 हवाई जहाज, कंपनियों के उड़े होश!