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Rahul Gandhi: क्या बन सकेंगे पीएम मोदी के खिलाफ 2024 में चेहरा, समझें तथ्यों के आईने में

राहुल गांधी को संसदीय और चुनावी राजनीति में बने रहना होगा ताकि वे अपने बेलछी पल की तलाश कर सकें और अपनी 'अयोग्यता रूपी सजा' का राजनीतिक लाभ उठा सकें.

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Nihar Saxena
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वायनाड में रविवार को कांग्रेस के सत्याग्रह में खाली पड़ी कुर्सियां( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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'मोदी सरनेम' (Modi Surname Case) आपराधिक मानहानि मामले में सूरत की अदालत द्वारा दोषी पाए जाने और इसी आधार पर लोकसभा से स्वतः अयोग्यता का पात्र होने वाले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को बदलते राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस (Congress) पार्टी के कुछ 'समझदार नेता' 2024 लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2024) में एकीकृत विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi)  के खिलाफ बुलंद आवाज बतौर प्रस्तुत कर रहे हैं. कुछ कांग्रेसी राहुल गांधी को अयोग्य ठहराए जाने की तुलना इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले से करने से भी पीछे नहीं हैं. सच तो यह है कि हालिया घटनाक्रम को राहुल गांधी बनाम पीएम मोदी या इंदिरा गांधी सरीखा मौका करार देने वाले कांग्रेसी नेता तथ्यों से मुंह फेर रहे हैं. राहुल गांधी की अयोग्यता से बदले राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस जिस 'संजीवनी' की तलाश कर रही है, वह उसे मिलेगी या नहीं इसे रविवार को कांग्रेस के अखिल भारतीय सत्याग्रह के तहत वायनाड (Wayanad) के कार्यक्रम से समझा जा सकता है. रविवार को वायनाड में कांग्रेस के सत्याग्रह में केरल प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेता नामौजूद रहे, तो बमुश्किल 50 कांग्रेसी कलपेट्टा में एकत्र थे. वायनाड कांग्रेस के इस सत्याग्रह में कुर्सियां खाली पड़ी थी. इसकी एक बड़ी वजह राज्य कांग्रेस में विद्यमान अंतर्कलह और सिरफुटव्वल का बताया जा रहा है. जाहिर है जब कांग्रेस अपनी ही पार्टी या कहें कि राहुल गांधी अपने ही संसदीय क्षेत्र में एकता का प्रदर्शन नहीं कर सके, तो 2024 लोकसभा में एकीकृत विपक्ष को क्या नेतृत्व देंगे?

इंदिरा गांधी से तुलना पर बेलछी नरसंहार को याद करें राहुल गांधी
गौरतलब है कि कुछ कांग्रेसियों ने राहुल गांधी की सजा के खिलाफ चल रहे कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन का हवाला देते हुए सुझाव दिया कि पार्टी 1977 जैसी स्थिति में है. 1975 के आपातकाल का सबब राष्ट्रीय चुनाव में इंदिरा गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी की भारी हार के तौर पर सामने आया था. सीबीआई ने उन्हें हिरासत में भी लिया और पूर्व प्रधानमंत्री को जांच आयोग के सामने पेश हो कड़ी पूछताछ का सामना करना पड़ा. हालांकि इंदिरा गांधी ने खुद को एक राजनीति पीड़ित और बाद में एक संघर्षशील लड़ाकू के रूप में पेश करने में आशातीत सफलता हासिल की थी. उन्हीं दिनों बिहार के बेलछी गांव में नरसंहार हुआ. इंदिरा गांधी ने उस राजनीतिक अवसर को भांपा और वहां जाने का फैसला किया. पहले ट्रेन से, फिर जीप से, फिर ट्रैक्टर पर लगातार बारिश के बीच कीचड़ में. इस कीचड़ की वजह से इंदिरा गांधी को हाथी की सवारी तक करनी पड़ी, लेकिन वह पीड़ित परिवारों से मिलने में कामयाब रहीं. नतीजतन तीन साल बाद 1980 में वह सत्ता में वापस आ गईं. यह अलग बात है कि आज का संदर्भ नितांत अलग है. इंदिरा गांधी सत्ता में वापस आ सकती थीं, क्योंकि जनता पार्टी संख्या में कमजोर खिचड़ी सरकार थी. कांग्रेस प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को गिरा सकती थी और उनके डिप्टी चरण सिंह को खड़ा कर सकती थी और फिर उन्हें भी नीचे ला सकती थी, जिससे नए चुनाव हो सकते थे. यहां कतई नहीं भूलना चाहिए कि राहुल गांधी किसी भी लिहाज से दादी इंदिरा गांधी नहीं हैं. उन्हें संसदीय और चुनावी राजनीति में बने रहना होगा ताकि वे अपने बेलछी पल की तलाश कर सकें और अपनी 'अयोग्यता रूपी सजा' का राजनीतिक लाभ उठा सकें. दूसरे उनके सामने 2024 में फिर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे. 

पीएम मोदी बनाम राहुल गांधी
भारतीय जनता पार्टी के नेता व्यंग्यात्मक ढंग से कहते आए हैं राहुल गांधी चुनाव जीतने में उनकी सबसे बड़ी 'पूंजी' हैं. हालांकि यह पूरी तरह से सच नहीं है क्योंकि मुख्य रूप से पीएम मोदी की लोकप्रियता, हिंदुत्व-राष्ट्रवाद, जनकल्याणकारी योजनाएं और खंडित विपक्ष के कारण भाजपा जीतती है.  हालांकि यह भी सच है कि भगवा पार्टी मोदी बनाम राहुल मुकाबले के लिए बहुत उत्सुक है. यह वही मोदी बनाम राहुल डर है जिसने 2024 के लिए एक गैर-कांग्रेसी, भाजपा-विरोधी ब्लॉक को एक साथ लाने के प्रयासों को गति दी है. खासकर जब पीएम नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल को हासिल करने के प्रयासों में जुट चुके हैं. तीसरे मोर्चे की बातचीत के क्रम में टीएमसी नेता ममता बनर्जी जैसे नेताओं ने राहुल गांधी को पीएम मोदी की सबसे बड़ी टीआरपी बताया है. यही वजह है कि ममता बनर्जी अक्सर राहुल की मां सोनिया गांधी से बातचीत करना पसंद करती हैं. कई अन्य विपक्षी नेताओं की तरह भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच का सामना कर रही बीआरएस नेता और पीएम पद के उम्मीदवार के चंद्रशेखर राव की बेटी कविता ने भी सोनिया तक पहुंचने की कोशिश की है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सोनिया गांधी के साथ बेहतर समीकरण है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी अक्सर ढंके-छिपे तरीके से राहुल का मज़ाक उड़ाते रहे हैं. हालांकि हालिया घटनाक्रम के बाद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा, 'कांग्रेस के साथ हमारे मतभेद हैं, लेकिन राहुल गांधी को इस तरह मानहानि के मामले में फंसाना सही नहीं है. गैर बीजेपी नेताओं और पार्टियों पर मुकदमा चलाकर उन्हें खत्म करने की साजिश रची जा रही है.' जो लोग इसे राहुल गांधी के लिए केजरीवाल का समर्थन देख रहे हैं, वह इस तथ्य को नजरअंदाज कर रहे हैं कि दिल्ली के आप के दो शीर्ष नेता केंद्रीय एजेंसियों द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों में तिहाड़ जेल में हैं. जाहिर है एकीकृत विपक्ष को नेतृत्व देना या यह जिम्मेदारी मिलना राहुल गांधी के लिए आसान नहीं है. ऐसी स्थिति में पीएम मोदी बनाम राहुल परिदृश्य जागती आंखों से सपने देखने सरीखा ही होगा. शुक्रवार को कांग्रेस समेत 14 विपक्षी दलों की सीबीआई-ईडी के दुरुपयोग के खिला सुप्रीम कोर्ट में याचिका को भी विपक्षी एकता नहीं कह सकते. और ना ही जनप्रतिनिधत्व कानून की जिस धारा के तहत राहुल गांधी अयोग्य करार दिए गए, उसके खिलाफ याचिका को. यह सब निहित स्वार्थ हैं, जिसने विपक्षी दलों को एकसाथ लाने को मजबूर किया. यह बदलते हालात में राहुल गांधी का मजबूत विपक्षी नेतृत्व तो किसी सूरत में नहीं है.

राहुल गांधी का भारतीय राजनीति में उदय और उतार-चढ़ाव भरे पल
निंदा से लेकर प्रशंसा तक, शीर्ष क्रम से लेकर पतन तक राहुल गांधी ने अपने राजनीतिक सफर में यह सब देखा है. उन्होंने अपने पिता राजीव गांधी के गढ़ अमेठी को जीतकर 2004 के लोकसभा चुनावों के दौरान चुनावी राजनीति में प्रवेश किया. इसके बाद 'कांग्रेस आलाकमान' ने नवंबर 2007 में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में पूर्ण सत्र में राहुल गांधी को अपने भविष्य के चेहरे के रूप में पेश करने का फैसला किया. उन्हें कांग्रेस महासचिव बनाया गया था और वे प्रधानमंत्री बनने की तैयारी कर रहे थे. हालांकि 2009 चुनाव में अमेठी में कांग्रेस जीती और राहुल गांधी ने सीट बरकरार रखी. इस तरह कांग्रेस पार्टी को आखिरकार सुरंग के अंत में कुछ रोशनी दिखाई दे रही थी. यह अलग बात है कि 2012 का यूपी विधानसभा चुनाव निराशाजनक साबित हुआ और राहुल गांधी ने हार पर खुद की जिम्मेदारी मानी भी. अब तक के निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद राहुल गांधी को 2013 में पार्टी उपाध्यक्ष चुना गया था. अगले ही साल उन्होंने 2014 के आम चुनावों की तैयारी शुरू कर दी, जो वास्तव में उनके दुर्भाग्य की शुरुआत थी. राहुल गांधी ने 2014 की हार के बाद इस्तीफे की पेशकश की, लेकिन उन्हें ऐसा करने की अनुमति नहीं दी गई. कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी का कार्यकाल घाटे भरा रहा. राजनीतिक गलियारों में यह अफवाह फैली थी कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का राहुल गांधी में विश्वास नहीं है. यह अलग बात है कि उनकी बाद की रैलियां अधिक आत्मविश्वास और नए प्रयासों से भरी हुई थीं. इसे देख राजनीति में फिर से सक्रिय राहुल गांधी को 2017 में पार्टी अध्यक्ष बनाया गया, जो लगभग दो दशकों तक चले कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी के कार्यकाल के अंत को चिह्नित करता है. हालांकि राहुल गांधी को अपने सरनेम के आधार पर उभरने के लिए शक्तिशाली विपक्षी दल के कई हमलों का सामना करना पड़ा. अमेठी के बाहर प्रशासनिक अनुभव की कमी के लिए उनकी क्षमताओं पर सवाल उठाया गया. यहां तक कि आलोचकों ने उन्हें 'अनिच्छुक राजकुमार' तक करार दे दिया. असल में यही सामने भी आया. आम चुनाव 2019 में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. कांग्रेस पार्टी की करारी हार ने एक बात साबित कर दी कि राहुल गांधी न तो अपने करिश्मे से और न ही अपने प्रचार अभियान से मतदाताओं को लुभाने में नाकाम रहे. कई लोगों के लिए राहुल गांधी के राजनीतिक अभियान में दीर्घकालिक दृष्टि और अंतिम लक्ष्य का अभाव था, जो उनके पतन का कारण बना.

यही देखने को मिला भारत जोड़ो यात्रा में
राहुल गांधी ने बीते साल 7 सितंबर को कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत की. इस भारत जोड़ो यात्रा के तहत राहुल गांधी ने 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से होकर 150 दिनों में 3,570 किलोमीटर लंबा सफर पैदल तय किया. यात्रा के दौरान राहुल गांधी दिन में लोगों से मिलते और रात में अस्थायी आवास में सोते. इस यात्रा का उद्देश्य देश को 'विभाजनकारी राजनीति' के खिलाफ एकजुट करना था. मुख्य उद्देश्य 'भय, कट्टरता और पूर्वाग्रह की राजनीति' का विरोध करना था, तो 'बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ती असमानता और गिरती अर्थव्यवस्था' के खिलाफ लोगों को जनआंदोलित करने के लिए साथ लाना था. हालांकि हुआ क्या? जिन मुद्दों को लेकर राहुल गांधी ने अपनी समग्र भारत जोड़ो यात्रा की उनके हल या समाधान के लिए एक भी दीर्घकालिक खाका पेश नहीं कर सके. इसके उलट उनके एक जैसे भाषण अंबानी-अडानी और पीएम मोदी के खिलाफ ही रहे. आम जनता राजनेताओं से सिर्फ समस्या पर बात नहीं, बल्कि उसके समाधान की अपेक्षा भी रखती है. इस परिपाटी पर भी राहुल गांधी बुरी तरह से नाकाम रहे. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने बार-बार कहा कि वो देश में नफरत के खिलाफ मोहब्बत की दुकान खोलना चाहते हैं. इसके साथ ही यात्रा के दौरान जगह-जगह भाषण देते हुए और मीडिया से बात करते हुए राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और बेरोजगारी, महंगाई, भारत के सीमा क्षेत्र में चीन के दख़ल का मुद्दा उठाया. इसमें भी किसी भी एक मसले पर उन्होंने अपना या कांग्रेस पार्टी का ब्लू प्रिंट पेश नहीं किया. और तो और, इस यात्रा के जरिये राहुल गांधी विपक्ष को जोड़ने में नाकाम रहे. 30 जनवरी को यात्रा के समापन के अवसर पर सभी विपक्षी दल श्रीनगर नहीं पहुंचे. यानी विपक्षी एकता की बेल भी यात्रा की मुंडेर नहीं चढ़ी. हालांकि इसी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में एक नया पार्टी अध्यक्ष चुना और 2022 हिमाचल प्रदेश विधान सभा चुनाव में भी बहुमत हासिल किया. यह भी कड़वा सच है कि राहुल गांधी और कांग्रेस गुजरात में एक बहुत बड़ी गलती कर बैठे. उन्होंने गुजरात को थाली में रखकर बीजेपी को परोस दिया. राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य बड़े नेता गुजरात में प्रचार करने गए ही नहीं. यह भी सही है कि इस भारत जोड़ो यात्रा ने राहुल गांधी की छवि को थोड़ा गंभीर बनाने का प्रयास भी किया. इससे उत्साहित कांग्रेस दूसरी यात्रा जुलाई में शुरू करने वाली है जो गुजरात के सोमनाथ से शिलांग तक जाएगी. इस साल भी आधा दर्जन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं (उत्तर-पूर्व के तीन राज्यों में हो चुके हैं), तो अगले साल अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव है. ऐसे में इस यात्रा का समय भी बहुत अहम होगा. दूसरी यात्रा के दौरान या कुछ बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होंगे. पार्टी को ये भी तय करना होगा कि वो इन राज्यों में अपना अभियान कैसे चलाएगी.

निजी जीवन भी झंझावतों भरा
इसमें कतई कोई शक नहीं है कि राहुल गांधी ने निजी जीवन में बड़े दुख झेले. उन्होंने 14 की वय में दादी तो 21 की उम्र में पिता की नृशंस हत्या देखी. इंदिरा गांधी को जब उनके सुरक्षा गार्ड बेअंत सिंह-सतवंत सिंह ने गोलियों से छलनी किया, तो उस दिन राहुल गांधी स्कूल में थे. वहीं उन्हें फोन पर इंदिरा गांधी की हत्या का समाचार मिला. हालांकि 'जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है' कि तर्ज पर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिखों का कत्लेआम हुआ. उनकी संपत्ति लूट ली गई और यह सब जगदीश टाइटलर जैसे कांग्रेस के चंद नेताओं के सामने हुआ. कांग्रेस ने आज तक इस नरसंहार पर माफी नहीं मांगी. नतीजतन बीजेपी के सत्तारूढ़ होने और हुए अत्याचार के मामले फिर से ट्रैक पर लाने से सिख वोटबैंक भी बीजेपी से आ मिला. राजीव गांधी की आत्मघाती हमले के वक्त राहुल गांधी अमेरिका में थे और उन्होंने उस वक्त राजनीति में सक्रिय होने का कतई कोई संकेत नहीं दिया. हालिया घटनाक्रम में सूरत अदालत के दोषी करार देने और अयोग्य साबित होने के बाद राहुल गांधी ने इंस्टाग्राम पर जो पोस्ट शेयर की, उसमें इन निजी क्षतियों का जिक्र है. यह अलग बात है कि पृष्ठभूमि में आवाज उनकी बहन प्रियंका गांधी की है, जिन्हें 2024 में कांग्रेस का चेहरा पेश किए जाने की भी खुसफुसाहट चल रही है. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि 2024 में राहुल गांधी की अगुवाई मे कांग्रेस लोकसभा वैतरणी पार कर सकेगी. वह भी तब जब टीएमसी, बीआरएस, आप सरीखे मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रप गैर-कांग्रेस, गैर-बीजेपी विपक्षी गठबंधन को पिरोने का काम कर रहे हैं.

राजनीतिक बयानबाजी में कच्चे
गौरतलब है कि 2019 लोकसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी देश भर में घूम-घूम कर राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप मोदी सरकार पर लगा रहे थे. यहां तक कि उन्होंने 'चौकीदार चोर है' का नारा तक उछाल दिया. वह भी तब जब कांग्रेस की पहल पर ही सुप्रीम कोर्ट राफेल सौदे में अनियमितताओं पर जांच कर रहा था. राहुल गांधी के इस अपरिपक्व बयान को भुनाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्विटर हैंडल को चौकीदार में बदल दिया. यह अलग बात है कि राफेल मसले पर अंततः राहुल गांधी को सर्वोच्च न्यायालय में लिखित माफी मांगनी पड़ी. कानूनी जानकार कहते हैं कि सूरत की अदालत में 'मोदी सरनेम' मानहानि मामले में भी राहुल गांधी अगर माफी मांग लेते तो इतना वितंडा नहीं मचता. यह अलग बात है कि राहुल गांधी ने माफी नहीं मांगी और दोषी साबित हो अयोग्यता की परिणिति को प्राप्त हुए. वैसे यह कोई पहला मामला नहीं है, जिसमें राहुल गांधी घिरे, फंसे और पिर सजा के हकदार बने. राहुल गांधी छह बार पहले भी इसी तरह के आरोपों का सामना कर चुके हैं. इनमें से ज्यादातर आपराधिक मानहानि के मामले रहे.  राहुल पर लगे आपराधिक मानहानि मामलों की फेहरिस्त को देखें...

  • 'मोदी सरनेम' विवादास्पद बयान राहुल गांधी का सबसे हालिया आपराधिक मानहानि का मामला है, जिसमें उन्हें दोषी ठहराया गया. उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक के कोलार जिले में एक रैली के दौरान बयान दिया, 'कैसे सभी चोरों का उपनाम मोदी है?' इस टिप्पणी ने उस समय खासा विवाद खड़ा किया था और पूर्णेश मोदी समेत कई लोगों ने उन पर मानहानि और जातिगत पूर्वाग्रह का आरोप लगाया था.
  • उनके खिलाफ नेशनल हेराल्ड मामले में एक और बहुचर्चित मानहानि का मुकदमा दायर किया गया था. भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दर्ज कराए गए मामले में दिसंबर 2015 में उन्हें अपनी मां सोनिया गांधी के साथ 50,000 रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दी गई थी.
  • 6 जुलाई 2019 को राहुल गांधी को पटना की एक अदालत ने ऐसे ही मानहानि के एक अन्य मामले में जमानत दी. गांधी ने महाराष्ट्र में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा था, 'मेरा एक सवाल है. सभी चोरों के नाम में मोदी क्यों है चाहे वह नीरव मोदी हों, ललित मोदी हों या नरेंद्र मोदी हों? हम नहीं जानते कि ऐसे और कितने मोदी सामने आएंगे.'
  • 12 जुलाई 2019 को राहुल गांधी को अहमदाबाद की एक अदालत ने मानहानि के मामले में जमानत दी थी. यह मामला अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक द्वारा दर्ज किया गया था, जब उन्होंने आरोप लगाया था कि बैंक नोटबंदी के दौरान नोटों की अदला-बदली के एक घोटाले में शामिल था.
  • 4 जुलाई 2019 को राहुल को मुंबई की एक अदालत ने आरएसएस कार्यकर्ता द्वारा दायर मानहानि के मामले में जमानत दी थी. गौरी लंकेश की हत्या को 'बीजेपी-आरएसएस विचारधारा' से जोड़ने वाली उनकी टिप्पणी के लिए यह मामला दायर किया गया था. तब भी राहुल गांधी को 15 हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दी गई.
  • नवंबर 2016 में महाराष्ट्र की भिवंडी अदालत ने आरएसएस कार्यकर्ता द्वारा दायर एक अन्य मामले में राहुल गांधी को जमानत दी. इस मामले में राहुल गांधी ने कथित तौर पर कहा था कि आरएसएस ने महात्मा गांधी की हत्या की. यहां तक ​​कि सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें इस तरह की 'सामूहिक' टिप्पणी के लिए फटकार लगाते हुए फैसला सुनाया था कि उन्हें मुकदमे का सामना करना होगा और अदालत में अपनी बात साबित करनी होगी.
  • राहुल गांधी को सितंबर 2016 में 50,000 रुपये के निजी मुचलके पर एक और मानहानि मामले में गुवाहाटी अदालत ने जमानत दी थी. राहुल के झूठ बोलने के बाद संघ कार्यकर्ता की ओर से आपराधिक मानहानि की मामला दर्ज किया गया था. दिसंबर 2015 में उन्होंने कहा था कि आरएसएस ने उन्हें असम के बारपेटा सतरा में प्रवेश करने से रोका था.

HIGHLIGHTS

  • राहुल गांधी किसी भी लिहाज से दादी इंदिरा गांधी नहीं हैं
  • पीएम नरेंद्र मोदी के सामने मजबूत चेहरा भी नहीं बन सकते
  • हालिया घटनाक्रम उनके लिए राजनीतिक लाभ नहीं बन सकता
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