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Ram Mandir: अयोध्या के राम मंदिर में सागौन की लकड़ी का इस्तेमाल, क्या है इसमें खास?

अयोध्या में आकार ले रहे भव्य राम मंदिर में ही नहीं, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सेंट्रल विस्टा परियोजना और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की इमारत में भी इसी लकड़ी का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है.

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Nihar Saxena
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Ayodhya Teakwood

महाराष्ट्र के जंगलों से खासतौर पर मंगाई गई हैं सागौन की लकड़ी.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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महाराष्ट्र (Maharashtra) में चंद्रपुर और गढ़चिरौली के घने जंगलों में बल्लारशाह वन डिपो स्थित है. जंगल अपनी उच्च गुणवत्ता वाली सागौन की लकड़ी के लिए प्रसिद्ध है. यहां की सौगान की लकड़ी की न केवल भारत में, बल्कि अन्य देशों में भी जबर्दस्त मांग है. अयोध्या (Ayodhya) में राम मंदिर (Ram Mandir) निर्माण के लिए भी 1,885 घन फीट सागौन की लकड़ी की पहली खेप एक समारोह में पूजा-अर्चना के बाद भेजी जा चुकी है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi) की सेंट्रल विस्टा परियोजना (Central Vista Project) और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की इमारत के निर्माण में भी इसी लकड़ी का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है. लेकिन ऐसा क्यों है? आइए जानते हैं...

सैकड़ों वर्षों तक दीमक नहीं लगती
इसे मध्य प्रांत टीकवुड के रूप में जाना जाता है. अपनी बेहतर गुणवत्ता के लिए यहां की सागौन की लकड़ी हर जगह प्रसिद्ध है. इसमें तेल की मात्रा बहुत अधिक होती है, इसलिए सैकड़ों वर्षों तक दीमक के हमले की कोई संभावना नहीं रहती. महाराष्ट्र के वन विकास निगम, बल्लारशाह के सहायक प्रबंधक गणेश मोतकर बताते हैं, 'कम से कम 500 से 600 वर्षों तक इस लकड़ी पर दीमक का कोई हमला नहीं हो सकता है. इस सागौन की लकड़ी का टैक्सचर बहुत चिकना और उपयुक्त है. भूरा रंग होने के कारण यह आंखों को भी बहुत आकर्षित करती है. यह देखने में भी बेहद आकर्षक है. चंद्रपुर और गढ़चिरौली में पाई जाने वाली इस एक लकड़ी में इन गुणों की विशेषताएं हैं. बीते वित्तीय साल में बल्लारशाह डिपो से सागौन की लकड़ी की आपूर्ति का टर्नओवर 165 करोड़ रुपए रहा था. इसकी संभावनाएं अब और बेहतर होती जा रही हैं. अब तक दिल्ली की सेंट्रल विस्टा परियोजना व भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की इमारत, सतारा सैनिक स्कूल और डीवाई पाटिल स्पोर्ट्स स्टेडियम सहित कई प्रमुख परियोजनाओं में यहां की सागौन की लकड़ी का उपयोग किया गया है.'

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अयोध्या के निर्माणाधीन राम मंदिर को महाराष्ट्र का एक खास तोहफा
चंद्रपुर सागौन की पहली खेप अयोध्या भेजने के लिए आयोजित समारोह में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, महाराष्ट्र के सांस्कृतिक मामलों के मंत्री सुधीर मुनगंटीवार और उत्तर प्रदेश के तीन मंत्री मौजूद थे. इसके बाद मई महीने तक कई बैचों में सागौन की लकड़ी की खेप भेजी जाएगी. महाराष्ट्र के वन और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री सुधीर मुनगंटीवार कहते हैं, 'यह गर्व की बात है कि महाराष्ट्र राम मंदिर निर्माण के लिए यह विशेष उपहार भेजा जा रहा है. यह भगवान राम को दादी के उपहार की तरह है, जिनके पिता यानी राजा दशरथ की मां विदर्भ से थीं. हम बहुत गर्व और खुशी महसूस कर रहे हैं.' बल्लारशाह डिपो में टीकवुड के लॉग को कई स्थानों पर देखा जा सकता है. वन विभाग की संपत्ति के तौर पर चंद्रपुर और गढ़चिरौली के जंगलों से सबसे अच्छी लकड़ी यहां लाई जाती है. लकड़ी को वर्गीकृत कर आरा मिल में भेजा जाता है. डिपो के अधिकारियों के अनुसार अपनी गुणवत्ता के कारण यह हमेशा उच्च मांग में रहती है.

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बड़ी परियोजनाओं के लिए लकड़ी के चयन के मानक
मोटकर के मुताबिक बड़ी परियोजनाओं के लिए यहां की सागौन की लकड़ी को चुनते वक्त कई बातों को ध्यान में रखा जाता है. आकार अलग होने के अलावा अन्य विशेषताएं भी हैं. कई चरणों में  विभिन्न गुणवत्ता मानदंडों पर इसे जांचा-परखा जाता है. मसलन लकड़ी का सपाट होना, ट्रैक और रंग. सागौन की लकड़ी सफेद रंग की नहीं होनी चाहिए. इन सभी चीजों को पांच से छह लोगों की टीम चेक करती है. फिर चयनित अंतिम खेप र उनके हस्ताक्षर लिए जाते हैं. घरेलू बाजार और निर्यात के लिए यहां की सागौन की लकड़ी की मांग बहुत अधिक है. यहां से कई परियोजनाओं के लिए लकड़ी की आपूर्ति की गई है. भविष्य के लिहाज से भी इसके व्यवसाय के बढ़ने के ढेरों अवसर हैं.

HIGHLIGHTS

  • 500 से 600 वर्षों तक मध्य प्रांत की सागौन लकड़ी पर दीमक नहीं लगती
  • बीते वित्तीय साल सागौन की लकड़ी की आपूर्ति का टर्नओवर 165 करोड़
  • लकड़ी का भूरा रंग होने से यह आंखों को भी बहुत आकर्षित करती है 
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