आजादी के बाद रियासतों के विलय की चुनौती, स्वतंत्र भारत ने 565 रियासतों को कैसे राजी किया?

भारत की सरकार ने रियासतों के प्रतिनिधियों से बातचीत कर उन्हें भारत संघ में शामिल होने के लिए कहा. काफी रियासतें तो तैयार हो गईं. लेकिन कुछ रियासत अपने को स्वतंत्र रखने का निर्णय किया.

भारत की सरकार ने रियासतों के प्रतिनिधियों से बातचीत कर उन्हें भारत संघ में शामिल होने के लिए कहा. काफी रियासतें तो तैयार हो गईं. लेकिन कुछ रियासत अपने को स्वतंत्र रखने का निर्णय किया.

author-image
Pradeep Singh
New Update
bharat

भारत( Photo Credit : News Nation)

पंद्रह अगस्त 1947 को जब भारत स्वतंत्र हुआ तो दो भागों में इसका विभाजन हो चुका था. भारत से अलग हुआ भाग एक दिन पहले ही यानि 14 अगस्त, 1947 को  विश्व नक्शे पर पाकिस्तान के रूप में नए देश के रूप में अस्तित्व में आ गया था. अंग्रेजों ने भारत के स्वतंत्र कर दिया था. लेकिन उसके साथ ही भारत की देशी रियासतों को भी स्वतंत्र घोषित कर दिया था. राष्ट्र-राज्य में रूप में भारत आज जिस रूप में उस समय नहीं था. तब भारत 565 रियासतों में बंटा था. भारत के तत्कालीन नेतृत्व पर रियासतों का भारत संघ में विलय करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था.
 
ब्रिटिश भारत छोटे प्रांतों और रियासतों में विभाजित था. प्रांत सीधे ब्रिटिश सरकार के नियंत्रण में था, जबकि कई बड़े और छोटे राज्यों पर राजाओं का शासन था, और उन्हें रियासतों के रूप में जाना जाता था, जिन्होंने अपने आंतरिक मामलों पर किसी न किसी रूप में नियंत्रण बनाए रखा,  जब तक कि उन्होंने ब्रिटिश वर्चस्व को स्वीकार कर लिया. स्वतंत्रता के समय लगभग 565 रियासतें थीं.

Advertisment

ब्रिटिश सरकार ने कहा था कि राज्य भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने के लिए स्वतंत्र हैं. यह निर्णय इन रियासतों की जनता और रियासतों के शासकों पर छोड़ दिया गया था. हालांकि, यह एक समस्या थी जब भौगोलिक और राजनीतिक रूप से एक संयुक्त भारत के निर्माण की कोशिश की जा रही थी. भारत की सरकार ने रियासतों के प्रतिनिधियों से बातचीत कर उन्हें भारत संघ में शामिल होने के लिए कहा. काफी रियासतें तो तैयार हो गईं. लेकिन कुछ रियासत अपने को स्वतंत्र रखने का निर्णय किया. त्रावणकोर, भोपाल और हैदराबाद के शासकों ने घोषणा की थी कि राज्य ने स्वतंत्रता पर निर्णय लिया था.

इनमें से अधिकांश रियासतों में, सरकारें गैर-लोकतांत्रिक तरीके से चलाई जाती थीं और शासक अपनी आबादी को अपने लोकतांत्रिक अधिकार देने को तैयार नहीं थे.  देश के बंटवारे के बाद जनता का पलायन, सांप्रदायिकता और उनके पुनर्वास की समस्या सामने थी. लाहौर, अमृतसर और कोलकाता सहित कई शहर 'सांप्रदायिक' स्तर पर विभाजित हो गए. मुसलमान उस क्षेत्र में जाने से बच रहे थे जहां बहुसंख्यक हिंदू या सिख रहते थे. और हिंदू-सिख वहां जाने से बच रहे थे जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा थी. इसके साथ लोगों को अपना घर औऱ संपत्ति छोड़कर पलायन करना पड़ा. विभाजन के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व के सामने संपत्तियों, देनदारियों और परिसंपत्तियों का एक विभाजन एक प्रमुख मुद्दा था.

सरकार ने क्या तरीका अपनाया ?

अंतरिम सरकार ने विभिन्न छोटी रियासतों में भारत के संभावित विभाजन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया. मुसलमानों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस  का विरोध किया और उनकी राय थी कि रियासतों को अपनी पसंद के किसी भी देश को अपनाने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए. जवाहरलाल नेहरू को भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था. उन्होंने 15 अगस्त, 1947 से 26 जनवरी, 1950 तक इस पद पर कार्य किया.

सरदार पटेल, जो इस समय के दौरान भारत के उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे, ने रियासतों के शासकों के साथ बातचीत करने और उनमें से कई को भारतीय संघ में लाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई. आज के ओडिशा में 26 छोटे राज्य थे. गुजरात में 14 बड़े राज्य और 119 छोटे राज्य और कई प्रशासनिक इकाईयों के साथ यह सूची काफी लंबी है, जिसे सरकार के साथ लाने में वह सफल रहे. 

राज्यों और सरकार के बीच समझौता

अधिकांश राज्यों के शासकों ने 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' नामक एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए थे, जिसका अर्थ था कि उनका राज्य भारत संघ का हिस्सा बनने के लिए सहमत हो गया था. जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर और मणिपुर की रियासतों का विलय बाकी की तुलना में अधिक कठिन साबित हुआ. जूनागढ़ के मुद्दे को जनता द्वारा वोट देने के बाद हल किया गया था, वे भारत संघ में शामिल होना चाहते थे.

हैदराबाद के मामले में, जो रियासतों में सबसे बड़ी थी, इसके शासक ने नवंबर 1947 में भारत के साथ एक वर्ष के लिए एक ठहराव समझौता किया, जबकि भारत सरकार के साथ बातचीत चल रही थी. इस बीच, तेलंगाना क्षेत्र के किसान, जो निजाम के दमनकारी शासन के शिकार थे, उनके खिलाफ उठ खड़े हुए. कई विरोधों और झगड़ों के बाद, निज़ाम ने आत्मसमर्पण कर दिया जिसके कारण हैदराबाद का भारत में विलय हो गया.

मणिपुर के महाराजा बोधचंद्र सिंह ने भारत सरकार के साथ विलय के दस्तावेज पर इस आश्वासन के साथ हस्ताक्षर किए कि मणिपुर की आंतरिक स्वायत्तता को बनाए रखा जाएगा. बाद में जनता की राय के दबाव में महाराजा ने जून 1948 में मणिपुर में चुनाव कराया और राज्य एक संवैधानिक राजतंत्र बन गया. इस प्रकार मणिपुर एक सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव कराने वाला भारत का पहला हिस्सा था.

रियासतों के विलय के बाद राज्यों का पुनर्गठन

रियासतों द्वारा 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' पर हस्ताक्षर करने के बाद, अब भारतीय राज्यों की आंतरिक सीमाओं को खींचने की चुनौती थी. इसमें न केवल प्रशासनिक प्रभाग शामिल थे बल्कि भाषाई और सांस्कृतिक विभाजन भी शामिल थे. हमारे नेताओं ने महसूस किया कि भाषा के आधार पर राज्यों को बनाने से विघटन हो सकता है और देश के सामने आने वाली अन्य सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों से ध्यान हटाने की संभावना है. इसलिए, केंद्रीय नेतृत्व ने मामलों को स्थगित करने का फैसला किया.
 
भाषा के आधार पर आंध्र प्रदेश बना पहला राज्य

हालांकि, पुराने मद्रास प्रांत के तेलुगु भाषी क्षेत्रों में विरोध शुरू हुआ, जिसमें वर्तमान तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्से, केरल और कर्नाटक शामिल थे. एक अलग आंध्र की मांग करने वाला विशालंध्र आंदोलन चाहता था कि तेलुगु भाषी क्षेत्रों को मद्रास प्रांत से अलग कर दिया जाए. आखिरकार, प्रधानमंत्री ने दिसंबर 1952 में एक अलग आंध्र राज्य के गठन की घोषणा की.

यह भी पढ़ें: China अमेरिका समेत शेष विश्व को ढकेल रहा बड़े संकट की ओर,जानें कैसे और क्यों

केंद्र सरकार ने बाद में 1953 में राज्यों की सीमाओं को फिर से बनाने के सवाल पर गौर करने के लिए एक राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि राज्य की सीमाएं अलग-अलग भाषाओं की सीमाओं को प्रतिबिंबित करें. इस रिपोर्ट के आधार पर, 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया था. इससे 14 राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों का निर्माण हुआ. भाषाई पुनर्संगठन ने भी राज्य की सीमाओं के आरेखण को कुछ एक समान आधार दिया और देश के विघटन की ओर नहीं ले गया, जैसा कि पहले कई लोगों को आशंका थी. बल्कि इसने विविधता को स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया.

राज्यों को एकजुट करने की क्या जरूरत थी?

विभाजन के बाद, सरकार की तात्कालिक चुनौती एक ऐसे राष्ट्र को आकार देने की थी जो अपनी विविधता के बावजूद एकजुट रहे. भारतीय अलग-अलग भाषाएं बोलते हैं और उनकी अलग-अलग संस्कृतियां और धर्म हैं. सरकार के सामने उनकी पृष्ठभूमि, भाषा या संस्कृति को बदले बिना उन्हें एकजुट करना था. लोकतंत्र की स्थापना भी एक चुनौती थी. एक और चुनौती समग्र रूप से समाज के विकास और कल्याण को सुनिश्चित करना था. केंद्र सरकार को अब आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन के लिए प्रभावी नीतियां बनानी थीं.

HIGHLIGHTS

  • अधिकांश रियासतों ने 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' नामक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए
  • 1953 में राज्यों की सीमाओं को निर्धारित करने के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन
  • स्वतंत्रता के समय देश लगभग 565 रियासतें में बंटी थीं
Partition of India 75th-independence-day Independent India provinces and princely states British government 565 Princely States British India
Advertisment