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Chandrayaan-3: क्या है चांद के दक्षिणी ध्रुव का रहस्य, जिसके पीछे पड़ी है दुनिया

Moon Mission: भारत का चंद्रयान-3 कल चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा, इससे पहले रविवार को रूस का लूना-25 चांद के दक्षिण ध्रुव पर लैंडिंग से पहले ही क्रैश हो गया. भारत या रूस ही नहीं बल्कि दुनिया की हर अंतरिक्ष एजेंसी चांद के दक्षिणी ध्रुव पर..

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Suhel Khan
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Moon Mission

Moon surface ( Photo Credit : Social Media)

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Moon Mission: चांद को देखना अपने आप में एक खास अनुभव है. भले ही धरती से देखने पर चांद एक जैसा दिखाई देता हो लेकिन हकीकत शायद इससे अलग है. क्योंकि अगर ऐसा होता तो दुनिया की सभी अंतरिक्ष एजेंसियां चांद के किसी भी हिस्से पर अपने मिशन भेज देती और सफलता पा लेतीं लेकिन चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव पर ही दुनिया भर की सभी एजेंसियां अपने मिशन भेजने की कोशिश कर रही हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव में ऐसा क्या खास है जो हर किसी को यहां पहुंचने के लिए मजबूर या यूं कहें आकर्षित करता है. भारत का चंद्रयान-3 भी 23 अगस्त को चंद्रमा की दक्षिण ध्रुव पर लैंडिंग की कोशिश करेगा.

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इसलिए खास है चांद का दक्षिणी ध्रुव

भले ही चंद्रमा पृथ्वी से एक जैसा दिखाई देता है लेकिन इसके दक्षिणी ध्रव पर पानी की मौजूदगी की संभावना है. पानी की संभावना ही दक्षिण ध्रुव को खास बनाती है. क्योंकि 1960 के दशक की शुरुआत में जब पहली बार अपोलो को चांद की सतह पर उताया गया उससे पहले वैज्ञानिक यही मानते थे कि चंद्रमा पर पानी की मौजूद है. लेकिन 1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत में अपोलो क्रू द्वारा विश्लेषण के मिले नमूने सूखे प्रतीत हुए. जिसने इस भ्रम को तोड़ दिया कि पूरे चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी है. इसके बाद चांद का दक्षिणी ध्रुव पानी की मौजूदगी की संभावनाओं से भर गया.

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चंद्रयान-1 ने लगाया चांद पर पानी का पता

दरअसल, साल 2008 में, ब्राउन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने नई तकनीक के साथ चांद के उन नमूनों का दोबारा निरीक्षण किया. जिसमें ज्वालामुखीय कांच के छोटे मोतियों के अंदर हाइड्रोजन मौजूद मिला. इसके बाद 2009 में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्रयान-1 ने चंद्रमा की सतह पर पानी का पता लगाया. इसी वर्ष नासा ने दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रमा की सतह के नीचे पानी की बर्फ की खोज की. हालांकि नासा के पहले मिशन, 1998 के लूनर प्रॉस्पेक्टर में इस बात के प्रमाण मिले थे कि पानी में बर्फ की सबसे अधिक सांद्रता दक्षिणी ध्रुव के छायादार गड्ढों में थी.

क्यों महत्वपूर्ण है चंद्रमा पर पानी

ऐसा माना जा रहा है कि अगर चंद्रमा पर पानी की बर्फ पर्याप्त मात्रा में मौजूद है तो यह चंद्रमा पर पीने के पानी का एक स्रोत हो सकता है. इससे उपकरणों को ठंडा करने में भी मदद मिल सकती है. इसके साथ ही इसे ईंधन के लिए हाइड्रोजन और सांस लेने के लिए ऑक्सीजन बनाई जा सकती है. इसके साथ ही इससे अन्य मिशनों में मदद मिल सकेगी. बता दें कि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव, पिछले मिशनों द्वारा लक्षित भूमध्यरेखीय क्षेत्र से बहुत दूर है. जिसमें क्रू अपोलो लैंडिंग भी शामिल है चंद्रमा का ये क्षेत्र गड्ढों और गहरी खाइयों से भरा पड़ा है.

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कोई नहीं कर सकता चंद्रमा पर स्वामित्व का दावा

बता दें कि चंद्रमा पर किसका स्वामित्व है इसका दावा कोई नहीं कर सकता. दरअसल, साल 1967 की संयुक्त राष्ट्र बाह्य अंतरिक्ष संधि (United Nations Outer Space Treaty) किसी भी देश को चंद्रमा पर स्वामित्व का दावा करने से रोकती है. हालांकि, ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो वाणिज्यिक परिचालन को रोक दे. चंद्रमा की खोज और उसके संसाधनों के उपयोग के लिए सिद्धांतों का एक सेट स्थापित करने के अमेरिकी नेतृत्व वाले प्रयास, आर्टेमिस समझौते पर 27 हस्ताक्षरकर्ता हैं. लेकिन चीन और रूस ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.

HIGHLIGHTS

  • जानिए क्यों खास है चांद का दक्षिणी ध्रुव
  • दक्षिण ध्रुव पर पहुंचना चाहता है हर देश
  • चंद्रयान-3 भी दक्षिणी ध्रुव पर करेगा लैंड

Source : News Nation Bureau

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