अक्टूबर में चीन-भारत की विवादित सीमा के पास प्रस्तावित भारत-अमेरिका के 'युद्ध अभ्यास' पर गुरुवार को चीन ने कड़ी आपत्ति जाहिर की. चीन का कहना है कि यह युद्ध अभ्यास द्विपक्षीय सीमा समझौते में हस्तक्षेप है और नई दिल्ली और बीजिंग के बीच हुए समझौते का उल्लंघन है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के पास किसी तरह का युद्धाभ्यास (Military Drill) नहीं किया जाएगा. चीन (China) की यह आपत्ति ऐसे समय आई है, जब भारत-अमेरिकी युद्ध अभ्यास की आधिकारिक पुष्टि अभी बाकी है. हालांकि भारत (India) और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में ऐसी खबरें आ रही हैं कि अक्टूबर में दोनों देशों की सेना उत्तराखंड के औली में संयुक्त युद्धाभ्यास करेगी. औली भारत-चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगभग 100 किमी दूर है. भारत-अमेरिका (Indo-US) के बीच संयुक्त युद्ध अभ्यास का यह 18वां संस्करण होगा, जो 10 हजार फीट की ऊंचाई पर किया जाएगा.
एस जयशंकर ने बीते दिनों ही चीन को किया था कठघरे में खड़ा
चीन के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता वरिष्ठ कर्नल तान केफेई ने मासिक प्रेस कांफ्रेंस में गुरुवार को इस युद्ध अभ्यास के बारे में किए गए प्रश्न के जवाब में कहा, 'भारत-चीन सीमा मसले पर हम तीसरे पक्ष की किसी भी तरह की दखलंदाजी के सख्त खिलाफ हैं और इसका कड़ा विरोध करते हैं.' चीन के रक्षा मंत्रालय की युद्ध अभ्यास पर तीखी प्रतिक्रिया विदेश मंत्री एस जयशंकर के उस आरोप के कुछ दिनों बाद आई है, जिसमें उन्होंने सीमा पर तनाव और संबंधों में गिरावट के लिए सीधे तौर पर चीन को जिम्मेदार ठहराया था. जाहिर है भारत-अमेरिकी युद्धाभ्यास पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा विवाद से उपजे तनाव के बीच होने जा रहा है. इस स्थान पर दोनों ही देशों में हजारों की तादाद में सैनिकों समेत भारी सैन्य हथियारों की तैनाती कर रखी है. सीमा विवाद को हल करने की तमाम कूटनीतिक और सैन्य बैठकें फिलवक्त किसी निष्कर्ष तक पहुंचने में नाकाम रही हैं.
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याद दिलाया समझौते के तहत एलएसी के दोनों तरफ सैन्य अभ्यास की अनुमति नहीं
चीन रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ प्रवक्ता कर्नल तान केफेई की मासिक प्रेस कांफ्रेंस के अंग्रेजी में उपलब्ध कराए गए अनुवाद के मुताबिक, 'चीन ने हमेशा से इस बात पर जोर दिया है कि युद्धभ्यास और सैन्य प्रशिक्षण परस्पर दो देशों के बीच होना चाहिए. इसके जरिये किसी भी तीसरे पक्ष को निशाना बनाने की कोशिश करने के बजाय क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व बनाए रखने में मदद का उद्देश्य होना चाहिए.' उन्होंने कहा कि भारत-चीन सीमा विवाद दो देशों के बीच का मसला है. तान ने आगे कहा, 'दोनों ही देश हर स्तर पर प्रभावी बातचीत के जरिये सीमा विवाद को हल करने की दिशा में काम कर रहे हैं. इसके साथ ही दोनों ही देशों में परस्पर सहमति है कि सीमा विवाद को द्विपक्षीय वार्ता के जरिये सुलझाया जाएगा.' इसके साथ ही तान केफेई ने 1993 और 1996 में भारत-चीन के बीच हुए दो समझौतों का उल्लेख भी किया. उन्होंने कहा, '1993 और 1996 में हुए द्विपक्षीय समझौते के तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा के दोनों ही तरफ किसी भी देश को सैन्य अभ्यास की अनुमति नहीं है.'
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1993 और 1996 में हुए थे दो समझौते
तान केफेई वास्तव में 1993 में हुए चीन-भारत सीमा की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शांति और यथास्थिति बनाए रखने के समझौते और 1996 में चीन-भारत सीमा की एलएसी पर सैन्य क्षेत्र में विश्वास बहाली के उपायों के प्रयासों को लेकर हुए समझौतों का जिक्र कर रहे थे. यह अलग बात है कि भारत पर दोनों समझौतों के उल्लंघन का आरोप लगाते वक्त तान केफेई भारतीय पक्ष के दावे को भुला बैठे. भारत लगातार 2020 के हिंसक संघर्ष के लिए बीजिंग को जिम्मेदार ठहराता आ रहा है. भारत का आरोप है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सीमा समझौतों का उल्लंघन कर पीएलए सैनिकों के जरिये चीन की एलएसी के रूप-स्वरूप को बदलने की कोशिश की परिणिती ही हिंसक संघर्ष के रूप में सामने आई थी. तान ने भारत के इस आरोप पर कुछ कहने के बजाय कहा, 'उम्मीद की जाती है कि भारत दोनों देशों के नेताओं की परस्पर सहमति के बाद हुए समझौतों का पालन करेगा. साथ ही द्विपक्षीय वार्ता से सीमा विवाद को हल करने के अपने वादे के अनुरूप काम करेगा. भारत सीमाई इलाके में शांति और यथास्थिति बनाए रखने के लिए व्यावहारिक पहुंच अपनाएगा.'
HIGHLIGHTS
- अक्टूबर में उत्तराखंड के औली में होना है भारत-अमेरिकी 'युद्ध अभ्यास'
- चीन ने भारत को समझौतों की याद दिला इस युद्धाभ्यास पर जताई आपत्ति
- बीजिंग ने 2020 में समझौतों का उल्लंघन कर एलएसी पर की थी हरकत