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Explainer: चीन ने ताइवान को चारों ओर से ‘घेरा’, आखिर क्यों भड़का हुआ है ड्रैगन, भारत पर इसका क्या पड़ेगा असर?

चीन ने ताइवान के चारों ओर युद्धाभ्यास शुरू किया है, जो गुरुवार और शुक्रवार तक चलेगा. चीन ने युद्धाभ्यास को 'जॉइंट स्वॉर्ड-2024A' नाम दिया है. आखिर चीन ताइवन पर क्यों भड़का हुआ, अगर दोनों देशों में तनाव बढ़ता है, तो भारत पर क्या असर पड़ेगा.

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Ajay Bhartia
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China drills around Taiwan

ताइवान के चारों ओर चीन का युद्धाभ्यास( Photo Credit : (Social Media))

China drills around Taiwan: चीन ने ताइवान को चारों ओर से ‘घेर’ लिया है. चीनी सेना ने ताइवान के चारों ओर युद्धाभ्यास शुरू किया है, जो गुरुवार और शुक्रवार तक चलेगा. चीन ने युद्धाभ्यास को 'जॉइंट स्वॉर्ड-2024A' नाम दिया है, जिसमें चीनी की नौसेना, वायु सेना, और थल सेना शामिल हैं. यह पहली बार है जब चीन ताइवान के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर युद्धाभ्यास कर रहा है. इससे पहले तक वह सिर्फ ताइवान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया आया है. वहीं ताइवान ने भी अपनी सेनाओं को भी अलर्ट पर रखा है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर चीन ताइवन पर क्यों भड़का हुआ. अगर उन दोनों देशों में तनाव बढ़ता है, तो भारत पर क्या असर पड़ेगा.

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ताइवान पर क्यों भड़का चीन?

चीन ऐसे समय में ताइवान के चारों ओर युद्धाभ्यास कर रहा है. जब तीन दिन पहले ही ताइवान में चीन विरोधी नेता लाई चिंग-ते (William Lai Ching-te) ने राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली है. चीन इसी वजह से ताइवान पर भड़का हुआ है. असल में चीन लाई चिंग-ते की जीत से नाराज है. उनकी शपथ के बाद चीनी सेना के प्रवक्ता कर्नल ली शी ने कहा था कि ताइवानियों को इसकी सजा मिलेगी. उन्होंने कहा था कि चीन की थल सेना, नौसेना और वायु सेना इस संयुक्त अभ्यास से ताइवान की आजादी को बढ़ावा देने वाले अलगाववादियों को जवाब देंगे.

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कौन हैं विलियम लाई चिंग-ते?

विलियम लाई चिंग-ते ताइवान के नए राष्ट्रपति हैं. उन्होंने डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के कैंडिडेट के रूप में चुना लड़ा और बंपर जीत हासिल की थी. उन्होंने विपक्षी कुओमितांग पार्टी के उम्मीदवार होउ यू-इह को हराया. लाई चिंग ते को चीन विरोधी माना जाता है. उनकी पार्टी डीपीपी ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन करती है, जबकि कुओमितांग पार्टी को चीन समर्थक माना जाता है. बता दें कि राष्ट्रपति बनने से पहले लाई चिंग-ते ताइवान के उपराष्ट्रपति पद पर थे.

चीन ने लाई-ते को कहा था अलगाववादी

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लाई चिंग-ते को लेकर चीन की त्यौरियां चढ़ रहती हैं. वह उनको अलगाववादी बताता है. चीन नहीं चाहता था कि लाई चिंग-ते ताइवान के राष्ट्रपति बनें, इसलिए उसने चुनाव के दौरान ताइवानियों को चेतावनी दी थी कि अगर वे सैन्य संघर्ष से बचना चाहते हैं तो सही विकल्प चुनें. हालांकि ताइवान की जनता पर चीन की धमकियों का कोई असर नहीं हुआ और चुनाव में लाई चिंग-ते को जीत हासिल हुई.

कहां-कहां युद्धाभ्यास कर रहीं चीनी सेनाएं?

चीनी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, चीनी सेना के ईस्टर्न थिएटर कमांड ने यह युद्धाभ्यास स्थानीय समयानुसार सुबह 7:45 बजे (भारतीय समय के मुताबिक सुबह 5:15 बजे) शुरू किया. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर पोस्ट एक मैप में यह दर्शाया गया है कि चीनी सेना कहां-कहां ताइवान और उसके आसपास के द्वीपों को घेरकर युद्धाभ्यास कर रही है.

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चीन के इस युद्धाभ्यास के क्या मायने?

चीन के इस युद्धाभ्यास के मुख्यतौर से तीन मायने हो सकते हैं पहला तो यही कि वो लाई चिंग-ते को संदेश देना चाहता है कि ताइवान को लेकर उसके रूख में कोई बदलाव नहीं आएगा. दूसरा - हमेशा की तरह वह ताइवान पर दवाब बनाने की कोशिश कर रहा हो. तीसरा ये हो सकता है कि चीन सेना ये देखना चाहती है कि ताइवान इसका जवाब किस तरह देता है.

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ताइवान ने किया चीनी युद्धाभ्यास का विरोध

ताइवान ने चीनी युद्धाभ्यास को लेकर अपना विरोध जताया है. उसने चीन से युद्धाभ्यास को रोकने कहा है. ताइवान ने कहा है कि यह ‘अफसोसजनक’ है कि लाई चिंग-ते के नए नेता के रूप में शपथ लेने के कुछ दिनों बाद ही चीन ने स्वशासित द्वीप के आसपास सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया है. चीन का ऐसा करना उत्तेजक व्यवहार है, जो ताइवान के लोकतंत्र और स्वतंत्रता के साथ-साथ शांति और स्थिरता को भी खतरे में डालता है. ताइवान ने चीन से पूरे इलाके में शांति बनाए रखने की अपील की है.

चीन-ताइवान के बीच विवाद क्यों?

चीन और ताइवान के बीच विवाद सालों से चला आ रहा है. चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है, जबकि ताइवान उसके इस दावे को खारिज करता है. वह खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है. यही वजह है कि चीन उस पर कब्जा करना चाहता है. चीन का मकसद ताइवान को उनकी राजनीतिक मांग के आगे झुकने और चीन के कब्जे को मानने के लिए मजबूर करना है. अगर चीन ऐसा करने में कामयाब हो जाता है तो वह पश्चिमी प्रशांत महासागर इलाके में अपना दबदबा दिखाने के लिए आजाद हो जाएगा. इससे गुआम और हवाई जैसे अमेरिकी मिलिट्री बेस के लिए खतरा पैदा हो जाएगा.

ताइवान पर नियंत्रण से क्षेत्र में चीन की ताकत में इजाफा होगा. इससे जापान और साउथ कोरिया जैसे प्रमुख अमेरिकी सहयोगियों के लिए खतरा पैदा हो सकता है. इसलिए अमेरिका तनाव के मौकों पर ताइवान के साथ खड़ा हुआ दिखता है. चीन और ताइवान के विवाद के बीच अक्सर 'वन चाइना पॉलिसी' की बात आती है. असल में यह चीन के उस पक्ष का कूटनीतिक समर्थन है कि दुनिया में सिर्फ एक चीन है और ताइवान चीन का ही एक हिस्सा है, जो एक दिन उसमें मिल जाएगा. हालांकि, ताइवान खुद को एक स्वतंत्र देश मानता है.

भारत पर क्या पड़ेगा असर

2001 से अब तक भारत और ताइवान के बीच व्यापार में 7 गुना वृद्धि हो चुकी है. ताइवान की कंपनी पॉवरचिप सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन ने भारत का पहला सेमीकंडक्टर फैब्रिकेशन प्लांट बनाने के लिए टाटा समूह के साथ साझेदारी की है. हाल ही में भारतीय कामगारों को ताइवान भेजने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. भारत के उद्योग और वहां रहने वाले भारतीय लोग ताइवान जलडमरूमध्य में तेजी से निवेश कर रहे हैं. ताइवान के खिलाफ चीन की कोई भी आक्रामकता भारत के लिए विनाशकारी रूप से महंगी साबित होगी. भारत की अर्थव्यवस्था को अमेरिकी अर्थव्यवस्था से ज्यादा झटका लगेगा. इलेक्ट्रॉनिक्स से लेकर फार्मास्यूटिकल्स तक कई सेक्टर्स पर भारी असर पड़ेगा. चूंकि अमेरिका ताइवान के सपोर्ट में खड़ा रहता है. ऐसे में तनाव की सूरत में संघर्ष ताइवान से आगे बढ़कर कई दिशाओं में फैल सकता है. यह पहले से ही तनावपूर्ण भारत-चीन सीमा विवाद को और भी अधिक तनावपूर्ण बना सकता है.

Source : News Nation Bureau

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