एक ओर जहां पूरी दुनिया का फोकस हाल ही में भारत की राजधानी नई दिल्ली में हुई जी20 की मीटिंग में था, वहीं दूसरी ओर चीन ने एक बड़ी राजनीतिक चाल चल दी है. दिल्ली में हुई मीटिंग में, जहां मेजबान भारत ने 55 देशों के ग्रुप अफ्रीकन यूनियन की जी-20 में हुई एंट्री को चीन के लिए झटका माना था, वहीं अब चीन ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है. चीन ने तालिबान के कब्जे वाले अफगानिस्तान में अपने राजदूत को नियुक्त कर दिया है और ऐसा फैसला किया है कि वह दुनिया का पहला देश बन गया है. राजदूत की नियुक्ति का मतलब है कि चीन अफगानिस्तान के साथ आधिकारिक रूप से डिप्लोमेटिक ताल्लुकात स्थापित करने जा रहा है.
साल 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा होने के बाद से ही तालिबान की सरकार ने इंटरनेशनल मान्यता की लगातार मांग की है. पाकिस्तान जैसे उसके सबसे क़रीबी देश भी उसे मान्यता देने से हिचक रहा है, लेकिन चीन ने झाओ शेंग को अपना फुलटाइम राजदूत नियुक्त कर दिया है.
यूं तो, अफगानिस्तान में बाकी देशों के राजनिक भी तैनात हैं, लेकिन उन तैनातियों ने तालिबान के सत्ता में आने से पहले हुई थीं. यानी सीधे शब्दों में अब चीन तालिबान की सरकार के साथ सीधे ताल्लुकात बनाने वाला पहला देश बन गया है. हम इसपर भी प्रकाश डालेंगे कि अफगानिस्तान में चीन की इस चाल का भारत पर क्या असर पड़ सकता है, लेकिन उससे पहले आपको यह बताते हैं कि आखिरकार चीन को अफगानिस्तान में ऐसा क्या नजर आ रहा है जो वह पूरी दुनिया की आलोचना को दरकिनार कर एक कट्टरपंथी शासन वाली बर्बर और मध्य युगीन सोच वाली तालिबान सरकार के साथ दोस्ती बढ़ा रहा है.
अमेरिका को टक्कर देना चाहता है चीन
दरअसल, चीन इस वक्त दुनिया में खुद को अमेरिका के बरक्स में एक महाशक्ति की तरह स्थापित करना चाहता है और अफगानिस्तान में पैर जमाने की कोशिश कर रहा है, जो चीन की उसी रणनीति का एक हिस्सा है जिसमें वह दुनिया को यह संदेश देना चाहता है कि जिस देश से अमेरिका ने अपना दबदबा बना लिया, वहां चीन भी अपना दबदबा बना सकता है. इसके अलावा, चीन के ऐसे कई व्यापारिक मकसद हैं जो अफगानिस्तान के जरिए पूरे हो सकते हैं. चीन की निगाहें अफगानिस्तान में मौजूद लीथियम के भंडार पर हैं, जिसे व्हाइट गोल्ड कहा जाता है. अफगानिस्तान में चीन कच्चे तेल की खोज तो करागा ही, साथ ही उसकी नजर अफगानिस्तान के खनिज पदार्थों के खजाने पर भी हैं.
तालिबान के मुताबिक, चीन के साथ समझौता करने से उनके मुल्क में लाखों की संख्या में रोजगार पैदा हो जाएगा. वहीं दूसरी ओर, चीन अपने महत्वाकांक्षी चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी CPEC को अफगानिस्तान के जरिए मध्य एशियाई देशों तक ले जाना चाहता है. इसके अलावा, चीन के सूबे जिनजियांग में मौजूद मुस्लिम बागी अफगानिस्तान में शरण पाने पहुंच जाते हैं. ऐसे में अगर चीन की तालिबान सरकार के साथ दोस्ती हो जाती है तो चीन को अपना इस अशांत सूबे में वुइगर बागियों को काबू करने में मदद मिलेगी.
इंटरनेशनल बिरादरी में अफगानिस्तान चाह रहा अपनी छवि सुधारने की कवायद
वहीं दूसरी ओर, तालिबान को उम्मीद है कि चीन के साथ दोस्ती होने के बाद इंटरनेशनल बिरादरी में उसकी अछूत जैसी स्थिति में भी बदलाव आएगा. चीन कई बार तालिबान को इंटरनेशनल बिरादरी में शामिल करने की वकालत कर चुका है, लेकिन तालिबान के सरकार चलाने के बर्बर रवैये और मानवाधिकारों के खिलाफ उसके बुरे रिकॉर्ड के चलते दुनिया के ताकतवर देश उसके साथ कोई ताल्लुक रखना नहीं चाहते. लिहाजा, दो साल से भी ज्यादा वक्त से सत्ता में रहने के बावजूद, तालिबान की सरकार को किसी मुल्क ने मान्यता नहीं दी है. लेकिन चीन को तो बस अपना फायदा नजर आता है और इसके लिए उसे तालिबान जैसे कट्टपंथी सरकार से हाथ मिलाने से परहेज नहीं है.
नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर परियोजना पर पड़ेगा असर
चीन और तालिबान की दोस्ती भारत के लिए भी परेशानी खड़ी कर सकती है. भारत, अफगानिस्तान के पड़ोसी मुल्क ईरान में मौजूद चाबहार बंदरगाह से मध्य-एशियाई देशों के साथ कनेक्टिविटी बनाने की कोशिश कर रहा है. इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ कॉरिडोर जैसे भारत की महत्वाकांक्षी परियोजना भी अफगानिस्तान में चीन की मौजूदगी के प्रभावित हो सकती है. तालिबान के सत्ता में आने से पहले भारत ने इस मुल्क में लाखों डॉलर की परियोजनाएं शुरू की थीं जो अधूरी हैं. तालिबान सरकार चाहती है कि भारत उन प्रोजेक्ट्स को पूरा करे, लेकिन अब चीन की मौजूदगी अफगानिस्तान भारत के अधूरे प्रोजेक्ट्स पर भी असर डाल सकती है.
चीन और अफगानिस्तान की ये दोस्ती एक और मुल्क को बड़ा झटका मानी जा सकती है और वह है पाकिस्तान. दरअसल, तालिबान को तो पाकिस्तान का ही बगलबच्चा माना जाता रहा है लेकिन वीते कुछ महीनों में दोनों मुल्कों के बीच ताल्लुकात खराब तो हुए हैं साथ ही बॉर्डर पर दोनों देशों को फौजों के बीच झड़प भी हुई है. इससे पहले चीन, अफगानिस्तान में पाकिस्तान के जरिए ही एंट्री करता रहा था, लेकिन अब चीन ने तालिबान के साथ अपना सीधा संपर्क साध लिया है, जो पाकिस्तान के लिए बुरी खबर है. अब एक सवाल यह भी है कि क्या चीन को अफगानिस्तान में कामयाबी मिलेगी? अफगानिस्तान एक ऐसा मुल्क है जिसे महाशक्तियों का कब्रगाह माना जाता है. 19वीं सदी में ब्रिटिश साम्राज्य, 20वीं सदी के अंत में सोवियत संघ ने और 21वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका जैसी महाशक्तियां अफगानिस्तान से मात खाकर लौटी हैं. तो क्या अब चीन की बारी है?
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau