Importance Of Leader Of Opposition: कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (विपक्ष के नेता) बनने के लिए तैयार हैं? कांग्रेस ने 100 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की है. पार्टी की उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में बड़ी बढ़त है. राहुल ने खुद यूपी की रायबरेली और केरल की वायनाड सीट से धमाकेदार जीत दर्ज की है. अब उनको एक बार फिर सरकारी बंगला मिल सकेगा. खबरों के मुताबिक कांग्रेस राहुल गांधी से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद संभालने का आग्रह कर रही है. गौरतलब है कि पिछले साल राहुल को मानहानि केस में सजा होने के बाद उनकी सांसद सदस्यता चली गई थी और फिर उनको सरकारी बंगला खाली करना पड़ा था. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सदस्यता बहाल कर दी थी.
नेता प्रतिपक्ष बनें राहुल, जोर शोर से उठी मांग
कांग्रेस में राहुल गांधी के नेता विपक्ष बनने को लेकर जोर शोर से मांग उठ रही है. पार्टी के नवनिर्वाचित सांसद मणिकम टैगोर ने एक्स पर एक पोस्ट में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लोकसभा में कांग्रेस का नेतृत्व करने का आग्रह किया. तमिलनाडु के विरुधुनगर से जीतने वाले टैगोर ने कहा, 'मैंने अपने नेता राहुल गांधी के नाम पर वोट मांगे. मुझे लगता है कि उन्हें लोकसभा में कांग्रेस का नेता होना चाहिए. मुझे उम्मीद है कि निर्वाचित कांग्रेस सांसद भी यही सोचते होंगे. देखते हैं कि कांग्रेस संसदीय दल क्या फैसला करता है. हम एक लोकतांत्रिक पार्टी हैं.'
Rahul ji led the campaign frontally. He was the face. He is duty bound to take on the mantle of Lok Sabha parliamentary party leadership. @RahulGandhi cannot take all decisions about himself. Some decisions the party leaders / MPs have to take. Surely will be a unanimous choice.
— Vivek Tankha (@VTankha) June 6, 2024
मणिकम टैगोर के पोस्ट पर विवेक तन्खा ने रिप्लाई किया. तन्खा ने कहा, 'राहुल जी ने अभियान का नेतृत्व किया. वह चेहरा थे. लोकसभा संसदीय दल के नेतृत्व की जिम्मेदारी लेना उनका कर्तव्य है. @राहुल गांधी अपने बारे में सभी निर्णय नहीं ले सकते. कुछ निर्णय पार्टी नेताओं/सांसदों को लेने होते हैं. निश्चित रूप से सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाएगा'. वहीं, कार्ति चिदंबरम ने कहा, '...मुझे लगता है कि यह पद कांग्रेस को मिलेगा. मेरी निजी राय में, राहुल गांधी को खुद कांग्रेस की ओर से विपक्ष के नेता की भूमिका निभानी चाहिए.'
यहां तक कि शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने भी राहुल गांधी के नेतृत्व की सराहना करते हुए कहा कि अगर वे नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं तो कोई आपत्ति नहीं होगी. राउत ने कहा, 'अगर राहुल नेतृत्व स्वीकार करने के लिए तैयार हैं, तो हमें आपत्ति क्यों होगी? उन्होंने कई बार खुद को राष्ट्रीय नेता के रूप में साबित किया है. वह लोकप्रिय नेताओं में से एक हैं. हम सभी उन्हें चाहते हैं और उनसे प्यार करते हैं. गठबंधन में कोई आपत्ति और मतभेद नहीं है.
2024 के चुनावों में अच्छे प्रदर्शन के लिए क्रेडिट राहुल गांधी को दिया जा रहा है. राहुल गांधी ने पहले 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. बता दें कि 53 वर्षीय राहुल गांधी ने अपनी पार्टी के सत्ता में रहने के दौरान भी कोई संवैधानिक पद नहीं संभाला है.
एक दशक से खाली है LoP पद
2014 में कांग्रेस की 44 सीटें थीं जबकि 2019 में 52 सीटें थीं. चूंकि नेता प्रतिपक्ष के लिए कुल सीटों की संख्या का 10 फीसदी नंबर यानी 55 सीटे होने का नियम है. 1952 में पहले आम चुनाव के बाद लोकसभा का गठन हुआ और तब 10 फीसदी सीटें मिलने के बाद नेता प्रतिपक्ष का दर्जा दिए जाने का नियम बनाया गया था. दोनों ही चुनावों में कांग्रेस के पास यह संख्या नहीं थी, इसलिए लोकसभा स्पीकर ने उसे नेता विपक्ष का दर्जा नहीं दिया था, लेकिन इस बार कांग्रेस पर 100 सीटें हैं, ऐसे में पार्टी को ये पद मिलना तय माना जा रहा है.
कितनी पावरफुल नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी?
संसदीय प्रणाली में पक्ष और विपक्ष को एक दूसरे का पूरक कहा गया है. लोकतंत्र में सत्ता पक्ष का जितना महत्व है उतना ही विपक्ष का है. विपक्ष सरकार की नीतियों को लेकर संतुलन बनाए रखने की भूमिका को निभाता है. सत्ता पक्ष की नीतियों की तर्क संगत तरीके से आलोचना और कई महत्वपूर्ण पदों नियुक्ति प्रक्रिया में नेता प्रतिपक्ष की मौजूदगी महत्वपूर्ण है. ऐसे में यह पद बहुत महत्वपूर्ण और ताकतवर हो जाता है. सरल शब्दों में कहें तो नेता प्रतिपक्ष आधिकारिकतौर पर विपक्ष का नेतृत्व करता है. वह विपक्ष का चेहरा होता है. यह बहुत गरिमा वाला पद है, जिसके तहत बहुत जिम्मेदारी के साथ काम करना होता है.
- संसद के सदनों में नेता प्रतिपक्ष का पद वैधानिक होगा है. नेता प्रतिपक्ष को मान्यता देने का अधिकार राज्य सभा के सभापति और लोकसभा के अध्यक्ष को होता है.
- अगर कोई बहुसंख्यक दल सरकार के समर्थन में हो तो उसे प्रतिपक्ष नहीं माना जा सकता है. उसका नेता प्रतिपक्ष का लीडर नहीं होगा.
- नेता प्रतिपक्ष पद पर आसीन सांसद पब्लिक अकाउंट्स, पब्लिक अंडरटेकिंग्स, इस्टीमेट्स, ज्वॉइन्ट पार्लियामेंट्री कमेटियों सहित अन्य समितियों का सदस्य भी होता है.
- वह सेंट्रल विजिलेंस कमीशन, इलेक्शन कमीशन, सेंट्रल इनफॉर्मेशन कमीशन, सीबीआई, एनएचआरसी और लोकपाल जैसे वैधानिक निकायों के प्रमुखों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार विभिन्न चयन समितियों का सदस्य होने का भी हकदार है. इन नियुक्तियों में उसकी राय काफी अहम मानी जाएगी.
- नेता विपक्ष को मंत्री स्तर का दर्जा दिया जाता है. उससे ये उम्मीद की जाती है कि वे ऐसे लोगों के अधिकारों की रक्षा करेगा, जो सरकार के विरोध में हैं.
- पार्लियामेंट्री सिस्टम में अगर सरकार कोई ऐसा प्रपोजल लेकर आ रही है, जो संविधानिक प्रावधानों के अनुसार नहीं है या जनता के हित में नहीं है, तो उस पर वो अपना विचार प्रतिपक्ष होने के नाते सरकार के सामने रखता है. उस पर सदन में विचार होता है. ये बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है.
विपक्ष का नेता कहां रहेगा?
प्रत्येक विपक्ष का नेता (एलओपी) एक महीने के भीतर आवंटित सरकारी बंगले का उपयोग कर सकता है. इस बंगले का किराया और उसके रखरखाव का खर्च उसे नहीं देना होता है. यह बंगाल सभी जरूरी सविधाओं लैस और अच्छी तरह से सुसज्जित होता है. ऐसे में अगर राहुल गांधी यह पद स्वीकारते हैं, तो वे इस तरह के सरकारी बंगला पाने के हकदार हो जाएंगे. हालांकि अगर वो विपक्ष के नेता नहीं बनते हैं, तो भी उनको सांसद होने के नाते सरकारी बंगला मिलेगा.
Source : News Nation Bureau