गुजरात में भाजपा की भारी जीत ने कांग्रेस (Congress) के लिए एक और अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है. 182 विधायकों वाले सदन में पार्टी के 17 सीटों पर सिमट जाने के साथ कांग्रेस को अब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष (LoP) के पद को खोने का खतरा मंडरा रहा है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने ऐतिहासिक 156 सीट जीतने के साथ 2002 के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की जीत को भी पीछे छोड़ दिया है. गुजरात बीजेपी के प्रमुख सीआर पाटिल (CR Patil) भी कुछ यही संकेत दे रहे हैं. उन्होंने इस मसले पर कहा कि कांग्रेस से विपक्षी पार्टी होने का उसका अधिकार छीन लिया जाएगा. गौरतलब है कि सदन में विपक्षी नेता का पद हासिल करने के लिए मुख्य विपक्षी पार्टी को कम से कम 10 फीसदी सीटों (Gujarat Assembly Elections 2022) पर जीत दर्ज करनी पड़ती है.
नेता प्रतिपक्ष कौन हो पर कोई संहिताबद्ध नियम नहीं
नाम न बताने की शर्त पर गुजरात विधानसभा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'गुजरात विधानसभा में एलओपी का दर्जा देने पर कोई संहिताबद्ध नियम नहीं है. हालांकि 1960 के बाद से विधानसभा अध्यक्ष द्वारा एक नियम का पालन किया जा रहा है. इसके अनुसार कोई भी दल जो कुल सीटों का न्यूनतम 10 प्रतिशत प्राप्त करता है, उसे विपक्षी दल के रूप में मान्यता दी जाती है.' इस 10 फीसदी के लिहाज से कांग्रेस को विपक्षी नेता पद हासिल करने 18 सीटों पर जीत की दरकार थी. कांग्रेस की स्थिति पर अधिकारी ने बताया कि यदि विपक्षी दल कुल सीटों का 10 प्रतिशत प्राप्त करने में विफल रहते हैं, तो यह विधानसभा अध्यक्ष पर छोड़ दिया जाता है कि वे सबसे बड़े विपक्षी दल को दर्जा दें या नहीं. प्रचलित मानदंडों के अनुसार कांग्रेस राज्य विधानसभा में औपचारिक रूप से एक विपक्षी दल के रूप में मान्यता प्राप्त करने से एक सीट कम है.
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पहले भी ऐसे मामले आए हैं सामने
अंकलव निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस विधायक और गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अमित चावड़ा ने कहा, 'सत्तारूढ़ पार्टी यदि चाहे तो कांग्रेस को विपक्षी पार्टी का दर्जा नहीं देने के लिए यह पैमाना या परंपरा लागू कर सकती है. यदि वे मानदंड लागू नहीं करना चाहते हैं, तो अतीत में ऐसे उदाहरण हैं जब निर्वाचित विधायकों की संख्या कम होने पर भी विपक्षी पार्टी को नेता प्रतिपक्ष पद दिया गया. नेता प्रतिपक्ष के लिए कोई निश्चित नियम नहीं हैं. यह सत्ताधारी दल पर निर्भर है.' इसके लिए अमित चावड़ा राजकोट नगर निगम का उदाहरण देते हैं, जहां कांग्रेस को विपक्षी दल का दर्जा हासिल करने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं होने के बावजूद उसे यह दर्जा दिया गया. इसके अलावा और भी कई उदाहरण हैं. मसलन 1985 के गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 149, जनता पार्टी ने 14 और भाजपा ने 11 सीटें जीतीं थीं. इसके बावजूद जनता पार्टी के नेता चिमनभाई पटेल को एलओपी बनाया गया था.
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लोकसभा में भी नेता प्रतिपक्ष पद खो चुकी है कांग्रेस
गौरतलब है कि लोकसभा में भी नेता प्रतिपक्ष का पद अपरिभाषित है. यहां भी इस पद के लिए उतार-चढ़ाव भरा इतिहास देखने को मिलता है. भारतीय गणतंत्र के शुरुआती दशकों में कई सालों तक इसके लिए कोई प्रावधान नहीं था. कालांतर में नेता प्रतिपक्ष के लिए कुछ नियम-कायदे बनाए गए. यहां तक कि गठबंधन सरकार का 1989 में चलन शुरू होने पर ऐसी लोकसभा के पहले अध्यक्ष जीवी मावलंकर का निर्देश था कि किसी पार्टी को मुख्य विपक्षी दल के रूप में मान्यता हासिल करने के लिए उसे 10 फीसदी सीटों पर जीतना होगा. इसके बाद नेता प्रतिपक्ष के लिए यही मानक बन गया है. हालांकि यह कभी भी कानून नहीं बनाया गया. 2014 के बाद जब कांग्रेस 10 प्रतिशत कम सीटों पर जीत के साथ सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में तो लौटी, तो भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने इस पद को नहीं दिया. हालांकि इसने सबसे बड़े विपक्षी दल के नामित नेता को उन पैनलों पर बैठने की अनुमति दी, जहां नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति जरूरी होती है.
HIGHLIGHTS
- नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए 10 फीसदी सीटों पर जीत जरूरी
- गुजरात में 17 सीटें जीतने वाली कांग्रेस के पास एक सीट कम
- नेता प्रतिपक्ष पद देने पर नई विधानसभा अध्यक्ष करेंगे फैसला