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अक्टूबर में होगा कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव, जानें 1947 से अब तक कौन-कौन रहे पार्टी अध्यक्ष  

कांग्रेस पर वंशवादी राजनीति करने का आरोप लगता रहा है. भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस में लोकतंत्र नहीं है. कोई कार्यकर्ता कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बन सकता है.

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Pradeep Singh
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Gandhi nehru family

गांधी-नेहरू परिवार( Photo Credit : News Nation)

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कांग्रेस में इस समय गुटबाजी और असंतोष के स्वर मुखर हैं. पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाने की मांग हो रही है. कांग्रेस हाईकमान ने इस मांग को स्वीकार कर लिया है. कांग्रेस की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था कांग्रेस कार्य समिति (CWC) ने 17 अक्टूबर को अपने अध्यक्ष पद के चुनाव को मंजूरी देने के लिए रविवार को बैठक की. चुनावों के परिणाम 19 अक्टूबर को घोषित किए जाने हैं. राहुल गांधी अभी भी पार्टी की बागडोर संभालने के लिए अनिच्छुक दिख रहे हैं. सोनिया गांधी की स्वास्थ्य ठीक नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस का अगला अध्यक्ष गांधी-नेहरू परिवार का नहीं होगा?

कांग्रेस पर वंशवादी राजनीति करने का आरोप लगता रहा है. भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस में लोकतंत्र नहीं है. कोई कार्यकर्ता कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बन सकता है. जबकि भाजपा में आम कार्यकर्ता भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकता है. वंशवादी औऱ परिवारवाद की राजनीति के आरोप से मुक्त होने के लिए कांग्रेस पार्टी किसी वरिष्ठ नेता को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रख सकती है. लेकिन कांग्रेस के G-23 के सदस्यों का कहना है कि गांधी परिवार किसी डमी नेता की तलाश में है. 

कांग्रेस ने अक्टूबर में अपने नए अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा की है. गौरतलब है कि कांग्रेस ने नवंबर 2000 में अध्यक्ष पद के लिए अपना अंतिम चुनाव किया था. 130 साल से अधिक पुरानी पार्टी के इतिहास में सोनिया गांधी सबसे लंबे समय तक पार्टी अध्यक्ष रहीं. उन्होंने 1998 के लोकसभा चुनावों के बाद सीताराम केसरी से पार्टी का नियंत्रण संभाला और तब से 2017-19 के बीच दो साल की अवधि को छोड़कर जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने.

ग्रैंड ओल्ड पार्टी ने 1885 से वोमेश चंद्र बनर्जी, दादाभाई नौरोजी, मदन मोहन मालवीय, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल इंदिरा गांधी, राजीव गांधी से लेकर राहुल गांधी तक कई पार्टी अध्यक्ष देखे हैं.

जैसा कि कांग्रेस अपना अगला नेता चुनने के लिए तैयार है, यहां उन नेताओं पर एक नज़र डालते हैं जिन्होंने भारत की आजादी के बाद से अब तक पार्टी अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है.

जे बी कृपलानी (1947)
जेबी कृपलानी, जिन्हें आचार्य कृपलानी के नाम से भी जाना जाता है, देश के स्वतंत्र होने के समय वह कांग्रेस के अध्यक्ष थे. वह देश की आजादी के लिए कई आंदोलनों में  शामिल थे. बाद में, उन्होंने किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाने के लिए कांग्रेस छोड़ दी. वे चार बार लोकसभा के लिए चुने गए.

पट्टाभि सीतारमैया (1948-49)
तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समर्थन से, सीतारमैया ने 1948 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुनाव में जीत हासिल की. ​​उन्होंने 1952-57 तक मध्य प्रदेश के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया. सीतारमैया उन नेताओं में से एक थे जिन्होंने आंध्र प्रदेश के अलग राज्य बनाने की मांग की थी.

पुरुषोत्तम दास टंडन (1950)
टंडन ने कृपलानी के खिलाफ 1950 का कांग्रेस अध्यक्ष पद जीता. हालांकि, बाद में उन्होंने नेहरू के साथ मतभेदों के कारण शीर्ष पद से इस्तीफा दे दिया.

जवाहरलाल नेहरू (1951-54)
नेहरू के नेतृत्व में, कांग्रेस ने एक के बाद एक राज्य विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव जीते. 1952 में भारत के पहले आम चुनाव में पार्टी ने 489 सीटों में से 364 सीटें जीतकर भारी बहुमत हासिल किया.

यू एन धेबर (1955-59)
1948-54 तक सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री की सेवा करने वाले ढेबर ने नेहरू के बाद कांग्रेस अध्यक्ष बने. उनका कार्यकाल चार साल का था.

इंदिरा गांधी (1959, 1966-67, 1978-84)
इंदिरा गांधी ने लगातार तीन बार कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला. 1960 में उनकी जगह नीलम संजीव रेड्डी ने ले ली. हालांकि, वह 1966 में के कामराज के समर्थन से मोरारजी देसाई को हराकर एक साल के लिए कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में लौटीं. उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान पार्टी दो गुटों में विभाजित हो गयी. जिससे इंदिरा के लिए कांग्रेस में निर्विवाद नेता के रूप में उभरने का मार्ग प्रशस्त हुआ. आपातकाल के बाद 1977 के राष्ट्रीय चुनाव हारने के बाद, उन्होंने पार्टी अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला और 1985 में अपनी मृत्यु तक इस पद पर रहीं.

नीलम संजीव रेड्डी (1960-63)
कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में इंदिरा का पहला कार्यकाल समाप्त होने के बाद, रेड्डी ने तीन कार्यकाल के लिए पार्टी की बागडोर संभाली. 1967 में उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और जनता पार्टी के नेता के रूप में राजनीति में लौट आए. वह 1977 में भारत के छठे राष्ट्रपति भी बने.

के कामराज (1964-67)
भारत की राजनीति में के कामराज को "किंगमेकर" के रूप में जाना जाता है, कामराज इंदिरा के कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उदय का कारण थे. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के साथ विभाजन के बाद, एक सिंडिकेट नेता कामराज ने कांग्रेस (ओ) का गठन किया.

एस निजलिंगप्पा (1968-69)
कांग्रेस में विभाजन से पहले, वह अविभाजित कांग्रेस पार्टी के अंतिम अध्यक्ष थे. बाद में वह सिंडिकेट नेताओं में शामिल हो गए. निजलिंगप्पा 1952 में चित्रदुर्ग सीट से लोकसभा के लिए चुने गए.

जगजीवन राम (1970-71)
जगजीवन राम इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के अध्यक्ष बने. हालांकि, उन्होंने जनता पार्टी में शामिल होने के लिए 1977 में कांग्रेस छोड़ दी. 1981 में उन्होंने अपनी पार्टी कांग्रेस (जे) बनाई. वह 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत के रक्षा मंत्री थे.

शंकर दयाल शर्मा (1972-74)
शंकरदयाल शर्मा 1972 में कलकत्ता (कोलकाता) में एआईसीसी सत्र के दौरान कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुने गए थे. उन्होंने 1992 से 1997 तक भारत के राष्ट्रपति के रूप में भी कार्य किया.

देवकांत बरुआ (1975-77)
देश में आपातकाल के दौरान बरुआ कांग्रेस अध्यक्ष बने रहे. वह पार्टी की बागडोर संभालने वाले असम के पहले और एकमात्र नेता थे. उन्हें उनकी "भारत इंदिरा है, इंदिरा भारत है" नारे के लिए याद किया जाता है.

राजीव गांधी (1985-91)
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी पार्टी अध्यक्ष बने और 1991 में उनकी हत्या तक इस पद पर बने रहे. उन्होंने 1984 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को ऐतिहासिक जनादेश दिलाया और भारत के छठे प्रधानमंत्री बने. हालांकि, कांग्रेस 1989 के राष्ट्रीय चुनाव हार गई. चुनाव प्रचार के दौरान लिट्टे के एक आत्मघाती हमलावर ने उनकी हत्या कर दी थी.

पी वी नरसिम्हा राव (1992-96)
1991 में राजनीति से संन्यास की घोषणा करने के बाद, राव ने अगले साल राजीव की हत्या के बाद वापसी की. वह गैर-हिंदी भाषी क्षेत्र के पहले प्रधानमंत्री भी थे. उनके कार्यकाल के दौरान, देश ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विनाश को देखा, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों में दंगे हुए.

सीताराम केसरी (1996-98)
1996 में केसरी राव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष बने. उनके अध्यक्षीय कार्यकाल के दौरान पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी. 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद उन्हें हटा दिया गया था.

सोनिया गांधी (1998-2017 और 2019-वर्तमान)
सोनिया गांधी ने 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला और सबसे लंबे समय बनी रहीं. उनके कार्यकाल के दौरान, कांग्रेस ने 2004 और 2009 में लोकसभा चुनाव जीता और 2014 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से सत्ता खो दी. राहुल गांधी 2017 में शीर्ष पद के लिए निर्विरोध चुने गए. हालांकि, बाद में 2019 लोकसभा चुनाव में हार की  "नैतिक" जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. बाद में, सोनिया गांधी ने पार्टी के अंतरिम अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला.

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राहुल गांधी (2017-2019)
11 दिसंबर, 2017 को राहुल गांधी को सर्वसम्मति से पार्टी अध्यक्ष चुना गया. उन्होंने 2018 के विधानसभा चुनावों में कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पार्टी को जीत दिलाई. हालांकि, 2019 के आम चुनावों में कांग्रेस को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा. उन्होंने "नैतिक" जिम्मेदारी लेते हुए शीर्ष पद छोड़ दिया. देश भर में पार्टी के कई नेताओं ने राहुल गांधी के साथ एकजुटता में 2019 की हार के बाद अपने पार्टी पदों से इस्तीफा दे दिया.

HIGHLIGHTS

  • कांग्रेस पर वंशवादी राजनीति करने का आरोप लगता रहा है
  • भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस में लोकतंत्र नहीं है
  • कोई कार्यकर्ता कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बन सकता है
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