यूक्रेन में रूस की फौज अपने कब्जे वाले इलाकों में मजबूती से जमी है और यूक्रेन की फौज उनपर लगातार जवाबी हमला कर रही ही. पिछले कई महीनों से यूक्रेन युद्ध में जमीनी हालात ऐसी ही बनी हुई है यानी कोई बदलाव नहीं हुआ है. लेकिन यूद्ध के मैदान के बाहर रूस के प्रेजीडेंट पुतिन ने एक ऐसा फैसला ले लिया है जिससे पूरी दुनिया में हलचल मच गई है और करोड़ों लोगों के सामने दो जून की रोटी का संकट खड़ा हो गया है. दरअसल रूस ने अब यूक्रेन के साथ अपनी अनाज डील को रद्द कर दिया है. इस डील को पिछले साल जुलाई में टर्की और संयुक्त राष्ट्र संघ ने करवाया था. इस डील के तहत रूस ने काला सागर में अपनी नाकेबंदी के बीच यूक्रेन के बंदरगाहों से अनाज के निर्यात का परमीशन दी थी. लेकिन अब रूस वे इस परमीशन को रद्द कर दिया है और ऐलान किया है कि 20 जुलाई के बाद काला सागर में यूक्रेन के बंदगरगाहों की ओर जाने वाले या उधर से आने वाले किसी भी मालवाहक जहाज को दुश्मन का जहाज मानकर डुबो दिया जाएगा.
रूस का कहना है कि उसे इस डील से जो फायदे मिलने चाहिए थे वो नहीं दिए गए हैं. दरअससल इस गेम में रूस का पलड़ा इसलिए भारी है क्योंकि यूक्रेन का 90 फीसदी कृषि निर्यात उसके काला सागर स्थित बंदरगाहों से ही होता है जहां रूसी नेवी ने पिछले डेढ़ साल से नाकेबंदी कर रखी है. जमीनी रास्ते से अनाज निर्यात करना यूक्रेन के लिए एक लंबी और खर्चीली प्रक्रिया है. रूस के इस दांव से पूरी दुनिया में अनाज का बड़ा संकट खड़ा हो सकता है. दरअसल यूक्रेन अनाज का बड़ा उत्पादक है और वहां पैदा होने वाले अनाज से दुनिया के करोड़ों लोगों का पेट भरता है. यूरोपीय यूनियन की रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेशनल अनाज मार्केट में 10 फीसदी गेंहूं, 15 फीसदी मक्का और 13 फीसदी ज्वार यूक्रेन से ही आता है. यूरोप के अलावा यूक्रेन का अनाज अफ्रीकी देशों, मिडिल ईस्ट और चीन को भी निर्यात किया जाता है. संयुक्त राष्ट्र संघ के भुखमरी मिटाने के अभियान में भी यूक्रेन के अनाज का उपयोग किया जाता है.
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दुनिया भर में करीब 40 करोड़ लोग यूक्रेन से आने वाला अनाज खाते थे, लेकिन अब खड़ा हो जाएगा संकट
यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले दुनिया भर में करीब 40 करोड़ लोग यूक्रेन से आने वाला अनाज खाते थे. इस जंग के शुरू होने के पहले से ही दुनिया में अकाल और कोरोना महामारी के चलते भुखमरी के हालात बनते जा रहे हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 से 2022 के बीच 12 करोड़ से ज्यादा लोग भुखमरी के हालात में पहुंच गए हैं. दुनिया की एक तिहाई सबसे अधिक उर्वरक भूमि यूक्रेन में ही है. जिसके चलते यूक्रेन एक कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था है. जंग के चलते पिछले साल यूक्रेन में 25 मिलियन टन अनाज बंदरगाहों पे ही फंस गया था. जुलाई 2022 में टर्की और संयुक्त राष्ट्र संघ ने मिल कर रूस के साथ यूक्रेन की अनाज डील कराई थी जिसके बाद से लेकर अब तक यूक्रेन ने 32 मिलियन टन अनाज का निर्यात किया.उसका 80 फीसदी अनाज संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने भुखमरी उन्मूलन कार्यक्रम के लिए खरीदा जो इथियोपिया, यमन अफगानिस्तान और टर्की जैसे देशों में चलाया जा रहा है.
रूस के फैसले का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगी
अब रूस के इस नए फैसले से पूरी दुनिया में गेहूं की उपलब्धता का संकट खड़ा होने वाला है. रूस के इस ऐलान के बाद यूरोपीय यूनियन में गेंहू की कीमत में 8.2 फीसदी कीवृद्धि हो गई है.जबकि मक्के की कीमत 5.2 फीसदी तक बढ़ गई है. रूस ने इससे पहले भी इस डील को रद्द करने की धमकी दी थी लेकिन बाद नेगोसिएशंस के जरिए वो मान गया. लेकिन बार ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. अनाज डील को रद्द करने के ऐलान के साथ ही रूस ने यूक्रेन के सबसे बड़ा बंदरगाह ओडेसा पर जोरदार मिसाइल हमले करके उसे भारी नुकसान पहुंचा दिया है. जाहिर है रूस अब इस अनाज डील को किसी भी सूरत में आगे बढ़ाने के मूड में नहीं है. अब सवाल उठता है कि रूस के इस फैसले का भारत पर क्या असर पड़ेगा. दरअसल पिछले साल ही यूक्रेन युद्ध के चलते ही गेहूं के संकट को भांपते हुए इसके निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी. उस वक्त G7 समेत की देशों ने भारत की आलोचना की थी. हालांकि बाद में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रोग्राम के तहत अफगानिस्तान जैसे जरूरतमंद देश में गेहूं भिजवाया था.
रूस के हालिया फैसले से पहले ही भारत ने हालात को भांपते हुए अब चावल से निर्यात पर भी पाबंदी लगा दी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में इस साल गेहूं के उत्पादन में 10 फीसदी की कमी आई है. हालांकि FCI के गोदामों में जरूरत से ज्यादा गेहूं का भंडार है लेकिन अल नीनो के प्रभाव के चलते अगर खरीफ की फसल पर असर पड़ता है तो इसका एक्स्ट्रा बर्डन गेंहू पर पड़ेगा और या तो भारत में गेहूं की कीमत बढ़ जाएगी या स्टॉक कम हो जाएगा.. ऐसे हालात से निपटने के लिए भारत को गेहूं का आयात भी करना पड़ सकता है और यूक्रेन की रूसी नाकेबंदी के चलते इंटरनेशनल मार्केट में गेहूं की कीमतें पहले से ही आसमान पर होंगी. बहरहाल, यूक्रेन के अलावा रूस भी गेहूं का एक बड़ा उत्पादक देश है और भारत के साथ उसके दोस्ताना ताल्लुक के चलते भारत को इस मुसीबत से निपटने में ज्यादा परेशानी नहीं होनी चाहिए.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट