कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. कुछ दिनों पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव समिति से इस्तीफा दे दिया था. अब गांधी-नेहरू परिवार के लंबे समय तक वफादार रहे पूर्व केद्रीय मंत्री आनंद शर्मा से हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव समिति से इस्तीफा देकर सबको चौंका दिया है. उन्होंने इस्तीफा देते समय कहा कि, “मैं कांग्रेस की विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध हूं जो मेरे खून में दौड़ती है; इसमें कोई संदेह नही है. हालांकि, निरंतर बहिष्कार और अपमान को देखते हुए, एक स्वाभिमानी व्यक्ति के रूप में, मेरे पास कोई विकल्प नहीं बचा था.” इन्हीं शब्दों के साथ, वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने इस साल के अंत में होने वाले हिमाचल प्रदेश राज्य चुनावों की योजना का नेतृत्व करने के लिए गठित शीर्ष संचालन समिति से इस्तीफा दे दिया.
आनंद शर्मा का इस्तीफा जी-23 के एक अन्य सदस्य गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के कुछ दिनों बाद आया है. गांधी परिवार के दोनों करीबियों और वफादारों के इस्तीफे के बाद यह कहा जा रहा है कि देश की सबसे पुरानी पार्टी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. यह सब तब हो रहा है जब कांग्रेस जी-23 के नेताओं की मांग को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है.
लंबे समय से कांग्रेस के भीतर असंतुष्टों का एक समूह सक्रिय है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह समूह राहुल गांधी और उनकी टीम से दूरी बनाए रखता है. दरअसल, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी के निर्देशों को तो मानता है लेकिन राहुल गांधी को वह अपना नेता मानने को तैयार नहीं है. गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के बाद जम्मू और कश्मीर की विधानसभा चुनाव संचालन समिति से इस्तीफा देने वालों की संख्या बढ़ गयी.
कांग्रेस के दोनों वफादारों के इस्तीफे से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में कोई हलचल नहीं है. वे आजाद और शर्मा दोनों के इस्तीफे को नजरअंदाज कर रहे हैं. उनका कहना है कि आजाद और शर्मा का कोई जनाधार नहीं है. इसलिए चुनाव में उनके रहने न रहने के कोई प्रभाव नहीं पडे़गा. लेकिन यह घटनाक्रम गांधी परिवार में विश्वास की कमी को उजागर करता है और यह भी संकेत देता है कि पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं है.
चेयरमेन बनाते समय नहीं ली गई थी सलाह
दिलचस्प बात यह है कि आनंद शर्मा का इस्तीफा कांग्रेस द्वारा अपना अगला अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया शुरू करने के बीच आया है. शर्मा कहते हैं कि, “रिकॉर्ड की जांच करें. क्या मुझे कभी किसी बैठक के लिए आमंत्रित किया गया था? क्या अध्यक्ष बनने से पहले मुझसे सलाह भी ली गई थी? उन्होंने गुलाम नबी आजाद से भी सलाह नहीं ली. यह जी-23 के हम में से कई सदस्यों के लिए बार-बार अपमान है."
G-23 ने पिछले साल सोनिया गांधी को एक पत्र लिखा था, जिसमें संगठनात्मक चुनावों की मांग की गई थी और इस तथ्य की आलोचना की गई थी कि चुनावी रणनीति अभी भी पार्टी में मुट्ठी भर लोगों द्वारा तैयार की गई थी, जिसके कारण राज्य के चुनावों में कांग्रेस की बार-बार हार हुई थी. जबकि सोनिया गांधी जी-23 के कुछ सदस्यों से मिलीं और उनसे वादा किया कि जल्द ही एक संगठनात्मक परिवर्तन होगा, जी-23 के असंतुष्ट अभी भी संगठन में बदलाव की प्रतीक्षा कर रहे हैं. जी-23 के नेताओं का कहना है कि, 'जिम्मेदारी को छोड़कर राहुल गांधी सभी शक्तियों का आनंद ले रहे हैं', कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं की शिकायतें बढ़ रही हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि एक नई मंडली उभर रही है.
राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनने को अनिच्छुक
सोनिया गांधी अभी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष है. काफी दिनों से उनका स्वास्थ्य खराब है. पहले की तरह वह पार्टी का काम कर नहीं सकती है. वहीं समस्या यह है कि राहुल गांधी फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं हैं. इसलिए पार्टी को कांग्रेस का नेतृत्व करने के लिए एक गैर-गांधी को चुनने के कड़े फैसले का सामना करना पड़ रहा है.
G-23 के नेताओं का नहीं है जनाधार
कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के गुट G-23 के आलोचकों का कहना है कि यह जनाधारविहीन नेताओं का गुट है. आनंद शर्मा जमीनी नेता नहीं हैं और इसलिए हिमाचल चुनावों में ज्यादा नुकसान नहीं कर सकते हैं. लेकिन सबसे अहम यह है कि वह गांधी परिवार खासकर सोनिया गांधी के सबसे कट्टर वफादारों में से एक रहे हैं. राजीव गांधी की हत्या के बाद जब सीताराम केसरी पार्टी अध्यक्ष बने और संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली और कई लोगों ने सोनिया गांधी की आलोचना की और उन्हें छोड़ दिया, तब शर्मा और आजाद उन कुछ लोगों में से थे, जो उनके साथ खड़े रहे और उन्हें सक्रिय राजनीति में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. गुलाम नबी आजाद भी, इंदिरा गांधी के समय से सत्ता में आने वाले सबसे पुराने कांग्रेस नेताओं में से एक रहे हैं.
कांग्रेस से अलग होने वाले नेताओं का भी हुआ नुकसान
आनंद शर्मा के इस्तीफे का असर कांग्रेस के शीर्ष अधिकारियों पर नहीं पड़ा है. पंजाब में जब कैप्टन अमरिंदर सिंह अपनी पार्टी बनाने के लिए अलग हो गए, तो वे चुनाव हार गए, लेकिन उन्होंने राज्य में कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया और यह धारणा बनाई कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पार्टी को एक नहीं रख सकते. शर्मा के मामले में भी यही चिंता है और राज्य स्तर पर उन्हें मनाने की कोशिश की जा रही है. हालांकि, शर्मा, आजाद या जी-23 के किसी सदस्य का कोई और बयान केवल गांधी परिवार को कमजोर करेगा.
गांधी परिवार के वफादारों की बगावत चिंता का विषय
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सूत्रों का कहना है कि शर्मा जल्द ही शिमला में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की योजना बना रहे हैं, जिसमें जी-23 के अन्य सदस्य पार्टी की विफलताओं के बारे में खुलकर सामने लाने की योजना बना रहे हैं. ऐसे वफादारों के बगावत करने से कांग्रेस की विचारधारा कमजोर पड़ रही है. इससे इस बात को भी बल मिलता है कि कई वरिष्ठ लोग राहुल गांधी के साथ काम करने में सहज नहीं होंगे. शर्मा और कपिल सिब्बल जैसे कुछ नेताओं ने कहा है कि अगर राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के इच्छुक नहीं हैं, तो पार्टी को अन्य विकल्पों पर गौर करना चाहिए.
HIGHLIGHTS
- आनंद शर्मा जल्द ही शिमला में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की योजना बना रहे हैं
- वफादारों के बगावत करने से कांग्रेस की विचारधारा कमजोर पड़ी
- राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के इच्छुक नहीं हैं