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Gujarat Assembly Election 2022: बीजेपी चाहती है सातवीं चुनावी जीत, कैसे... इस तरह

बीजेपी ने गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में सातवीं जीत दर्ज करने पर निगाहें टिका रखी हैं. इसके लिए केसरिया पार्टी ने हिंदुत्व विचारधारा पर फोकस करने के साथ राज्य में विकास से जुड़ी परियोजनाओं की झड़ी लगा दी.

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Nihar Saxena
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गुजरात में बीजेपी विगत 27 सालों से है सत्ता में.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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बीते 27 सालों से गुजरात की सत्ता में बनी हुई भारतीय जनता पार्टी (BJP) विधानसभा चुनाव 2022 (Gujarat Assembly Election 2022) में सातवीं जीत दर्ज करना चाहती है. इसके लिए केसरिया पार्टी ने 2002 की तुलना में कहीं मुखरता से हिंदुत्व (Hindutva) को अपना केंद्रीय आधार बनाया हुआ है. इसके साथ ही विकास पर भी जोर है. गौरतलब है कि बीते नौ महीनों में 2 लाख करोड़ रुपए की परियोजनाएं राज्य में लांच की गई हैं. इसके साथ ही सत्ता विरोधी रुझान को मात देने के लिए न सिर्फ लगभग पूरा का पूरा मंत्रिमंडल बदल दिया गया, बल्कि 38 मौजूदा विधायकों को आसन्न चुनाव में टिकट भी नहीं दिया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में सत्ता में दोबारा वापसी करने के अगले ही दिन 11 मार्च को अहमदाबाद में बड़ा रोड-शो कर एक तरह से चुनाव प्रचार का आगाज कर दिया था. सिंचाई, स्वास्थ्य देखभाल और शैक्षिक परियोजनाओं को विगत कुछ महीनों में लांच करने के अलावा राष्ट्रीय स्तर के दो बड़े आयोजन क्रमशः नेशनल गेम्स और डिफेंस एक्सपो 2022 भी गुजरात में ही कराए.  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कच्छ में 26 जनवरी 2001 को आए भूकंप में मारे गए 13 हजार लोगों की याद में स्मृति वन मेमोरियल का भी उद्घाटन किया. इसके अलावा गुजरात के वड़ोदरा में एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग प्लांट भी सौगात में दिया है. यहां एयरबस और टाटा समूह के संयुक्त तत्वावधान में विमानों का निर्माण किया जाएगा. 

2002 में बीजेपी ने किया था सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
गुजरात में भारतीय जनता पार्टी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही दर्ज किया गया था. भाजपा ने 2002 के विधानसभा चुनाव में 127 सीटें जीती थीं. यह आंकड़ा 1985 में कांग्रेस द्वारा जीती गई 149 सीटों के क्रम में दूसरे नंबर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था. कांग्रेस ने यह आशातीत चुनावी सफलता माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में हासिल की थी. इस बार गुजरात में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद अपनी पहली रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 4 नवंबर को वलसाड़ के कपराड़ा में कहा, 'इस बार मेरी इच्छा अपने ही पिछले सारे चुनावी रिकॉर्ड ध्वस्त करने की है. सीएम भूपेंद्र का रिकॉर्ड मेरे रिकॉर्ड से भी बड़ा होना चाहिए और मैं इसे हासिल करने के लिए काम करना चाहता हूं.' इस रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी का चुनावी नारा 'आ गुजरात में बनाव्यु छे' यानी हमने इस गुजरात को बनाया भी घोषित किया था. 

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इस बार रणनीति में आमूल-चूल बदलाव
इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए घोषित नारा 2012 के चुनावों से काफी इतर है. उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने 'हूं मोदी नो मानस छू' (मैं मोदी का आदमी हूं) थीम के साथ चुनावी अभियान चलाया था. 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी के चुनावी अभियान का ध्येय वाक्य बना था 'हूं छू विकास, हूं छू गुजरात'  यानी मैं विकास हूं, मैं गुजरात हूं. इसकी काट के लिए कांग्रेस 'विकास गंदो थायो छे' यानी विकास भटक गया चुनावी नारा लेकर आई थी ताकि बीजेपी के विकास के दावे की हवा निकाली जा सके. ऐसे में 2012 के चुनावी अभियान की तुलना में बीजेपी इस बार समावेशी अभियान लेकर चल रही है, जहां आम लोग पिछले दो दशकों में गुजरात में हुए विकास पर गर्व कर सकें. भाजपा 1995 से गुजरात में सत्ता में है. इस बार भी जहां गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी का प्रचार अभियान पीएम मोदी पर केंद्रित है, वहीं पार्टी ने उम्मीदवारों के चयन में रणनीतिक चयन को प्राथमिकता दी है. बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल जैसे तमाम बड़े नेताओं को टिकट नहीं दिया. इसके उलट नए चेहरों मसलन पाटीदार आंदोलन के प्रणेता हार्दिक पटेल, क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी रिवाबा जडेजा और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर और अन्य को वरीयता दी गई है. 

कसौटी पर खरे उतरे दलबदलुओं को ही टिकट
इस बार बीजेपी ने एक और दांव चला है. उसने कांग्रेस से बीजेपी में आए उन्हीं नेताओं को उम्मीदवार बनाया है, जो कसौटी पर खरे उतरने वाले हैं. 2017 के बाद कांग्रेस के 16 मौजूदा विधायक बीजेपी में शामिल हुए और इनमें से सिर्फ 11 को ही टिकट दिया गया है. इसके अलावा कांग्रेस छोड़ कर आए छह अन्य नेताओं को भी केसरिया पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है. 2017 में विधानसभा चुनाव में सभी दलबदलुओं को उम्मीदवार बना दिया गया था. इस बार बीजेपी ने दलबदलुओं के प्रभाव को उप चुनाव की कसौटी पर कसा है. उदाहरण के लिए जसदान सीट को लें, जहां 2009 को छोड़ कर बीजेपी चुनाव नहीं जीत सकी. 2009 में कांग्रेस में रहे कुंवरजी बावलिया राजकोट लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे. 2017 में बावलिया कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और 10 हजार के लगभग मतों से चुनाव जीते. फिर बावलिया बीजेपी में शामिल हो गए और 2018 के उप चुनाव में खड़े हुए और 20 हजार से अधिक वोटों के अंतर से जीत दर्ज करने में सफल रहे. इस बार बीजेपी सौराष्ट्र और जनजातीय इलाकों की कुछ कठिन सीटों पर जीत की आस लगाए है, जो कांग्रेस के परंपरागत गढ़ माने जाते हैं. इसके लिए पार्टी ने कई बार जीत दर्ज करा चुके नेताओं पर दांव लगाया है.

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सौराष्ट्र और कच्छ पर है अधिक जोर
इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी का जोर सौराष्ट्र और कच्छ पर है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी यहां की 54 सीटों में से 23 पर ही जीत दर्ज कर सकी थी. कांग्रेस ने 30 सीटों पर कब्जा किया था. उसे पाटीदार आंदोलन का लाभ मिला था, जो नौकरियों में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे. अब यह मसला सुलझ चुका है और आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों को 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला हो चुका है. ऐसे में बीजेपी को विश्वास है कि उसके परंपरागत पटेल मतदाता वापस उसके खेमे में लौट आएंगे. इस तरह केसरिया पार्टी सौराष्ट्र और कच्छ में जीत का परचम फहराने के फेर में है. इसके लिए बीजेपी ने पाटीदारों को तादाद में टिकट दिए हैं. पाटीदारों में कद्दावर नेता नरेश पटेल के करीबी माने जाने वाले रमेश तिलारा को राजकोट दक्षिण से उतारा है. नरेश पटेल खोडलधाम ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं. इसी तरह ऊंझा से बाबूजमाना पटेल को उम्मीदवार बनाया है, जो उमिया माताजी संस्थान के अध्यक्ष हैं. खोडलधाम ट्रस्ट की लेउवा पाटीदार में गहरी पैठ है, तो उमिया माताजी संस्थान कदवा पाटीदारों में मजबूत पकड़ रखता है. 

बीजेपी के सामने हैं नए दावेदार
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बेरोजगारी, पाटीदार समुदाय के लिए आरक्षण, किसानों से जुड़े मुद्दे और नोटबंदी को प्रमुख मुद्दे बनाकर बीजेपी को घेरा था. इस बार के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और बेरोजगारी के मुद्दे उठाकर चुनाव अभियान चला रही है. आप ने सत्ता में आने पर मुफ्त बिजली, मुफ्त शिक्षा, बेरोजगार युवाओं और 18 साल से ऊपर की महिलाओं को भत्ता देने का वादा किया है. आप इन चुनावी 'गारंटियों' से बीजेपी के गढ़ में लोकप्रियता हासिल करने में सफल रही है. 2021 के स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी 8,470 सीटों में से 6,236 पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी. प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ने 1,804 सीटों पर जीत दर्ज की थी, तो आप ने 42 सीटों पर विजय पताका फहरा अपना खाता खोला था. हालांकि बीजेपी को विश्वास है कि आप उसके लिए चुनौती नहीं बनेगी. इसकी एक बड़ी वजह यही है कि निकाय चुनावों में सफलता बड़े चुनावों में सफलता की गारंटी नहीं होती है. गुजरात से आने वाले गृह मंत्री अमित शाह ने संभवतः इसीलिए बुधवार को कहा था कि राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो गुजरात में हमेशा द्विध्रुवी चुनाव हुआ है. तीसरी पार्टी चुनाव बाद राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गई है. उन्होंने कहा, 'मेरा मानना है कि इस बार भी मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच होगा. आप परिदृश्य में कहीं नहीं है.' बीजेपी के एक अन्य नेता के मुताबिक, 'आप वास्तव में कांग्रेस के वोट काटेगी, जिसकी वजह से अंततः बीजेपी की सीटें बढ़ेंगी. पिछली बार अन्य पिछड़ी जातियों के वोट का बड़ा हिस्सा कांग्रेस के खाते में गया था. इस बार इस वर्ग के वोट कांग्रेस और आप में बंटेंगे. राज्य में 42 फीसदी मतदाता अन्य पिछड़ी जातियों से आते हैं.'

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हिंदुत्व लहर गुजरात में हो रही मजबूत
दिल्ली की आप सरकार में मंत्री राजेंद्र पाल गौतम का एक वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हुआ. इसमें वह एक कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे थे, जहां हिंदू बौद्ध धर्म अपनाने का संकल्प ले रहे हैं. इसके अगले ही दिन गुजरात के कई शहरों में आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की जालीदार टोपी पहने फोटो वाले पोस्टर और बैनर छा गए. इसके साथ ही गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी की सोशल मीडिया पोस्ट भी आई, जिसमें उन्होंने लिखा था कि आम आदमी पार्टी की विचारधारा हिंदुओं के खिलाफ है. आने वाले दिनों में आप का सफाया हो जाएगा. अक्टूबर के पहले हफ्ते में देव भूमि द्वारका के बेयत द्वारका द्वीप में पांच दिनों में 50 अवैध ढांचे गिरा दिए गए थे. इनमें से अधिकतर मुसलमानों के धार्मिक स्थल थे, जो अवैध थे. इसी तरह की कार्रवाई पोरबंदर और गीर सोमनाथ में की गई. पीएम नरेंद्र मोदी ने जामनगर की रैली में अवैध अतिक्रमण के खिलाफ गुजरात सरकार की कार्रवाई की मुक्त कंठ से सराहना भी की. पीएम मोदी के जामनगर दौरे से पहले एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें पुलिसवाले मुस्लिम समुदाय के कुछ युवकों की सार्वजनिक पिटाई करते दिख रहे थे. इन युवकों पर नवरात्रि के दौरान एक कार्यक्रम में पथराव का आरोप था. इस बार जिस तरह आक्रामक हिंदुत्व का प्रचार हो रहा है, वैसा 2002 विधानसभा चुनाव में भी नहीं हुआ था. बिल्किस बानो के आरोपियो की रिहाई और नरोदा पाटिया कांड में सजायाफ्ता मनोज कुलकर्णी की बेटी पायल को बीजेपी ने इस बार नरोदा से चुनावी मैदान में उतारा है. मनोज को आजीवन कारावास की सजा हुई है और फिलहाल वह जमानत पर जेल से बाहर है. 

HIGHLIGHTS

  • विगत नौ महीनों में 2 लाख करोड़ की परियोजनाओं की सौगात
  • 2002 की तुलना में इस बार कहीं अधिक हिंदुत्व लहर पर विश्वास
  • जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर उम्मीदवारों का चयन
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