Gujarat Assembly Elections 2022: इस बार कोई लहर नहीं, किस करवट बैठेगा चुनावी ऊंट

इस साल के चुनाव ऐतिहासिक होने जा रहे हैं. फिर भी देखते हैं कि गुजरात में कब किस लहर ने विधानसभा चुनावों को प्रभावित किया है.

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Nihar Saxena
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इस बार गुजरात विधानसभा चुनाव में कोई लहर नहीं.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के लिहाज से खासे अहम साबित होने जा रहे हैं. एक तो दोनों दिग्गज नेताओं का इस राज्य से खासा जुड़ाव है, दूसरे लोकसभा चुनाव 2024 के मद्देनजर इन्हें राजनीतिक पंडित लिटमस टेस्ट भी करार दे रहे हैं. राजनीति में कहा जाता है कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़ा जाता है, लेकिन इतना तय है कि 2024 में तीसरी बार केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) नीत सरकार बनाने के लिए गुजरात विधानसभा चुनाव में तिहाई के अंकों में सीट जीतना बीजेपी के लिए जरूरी है. इस बात को पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी समझ रहा है. संभवतः इसीलिए न सिर्फ मुख्यमंत्री बदला गया, बल्कि मंत्रिमंडल में फेरबदल कर समय रहते सियासी समीकरणों को भी साधने की जुगत शुरू की गई. चुनाव तारीखों की घोषणा से पहले आए ओपीनियन पोल हालांकि बीजेपी की जीत की तरफ इशारा कर रहे हैं, लेकिन इस बार के चुनाव बगैर किसी लहर के लड़ा जा रहा है. पूर्व के चुनावों में गुजरात विधानसभा चुनावों (Gujarat Assembly Elections 2022) को किसी न किसी लहर ने प्रभावित किया है. इस लिहाज से देखें तो इस साल के चुनाव ऐतिहासिक होने जा रहे हैं. फिर भी देखते हैं कि गुजरात में कब किस लहर ने विधानसभा चुनावों को प्रभावित किया है.

1985 सहानुभूति की लहर
1980 में कांग्रेस ने 182 में से 141 सीटें जीत कर गुजरात में सरकार बनाई थी. हालांकि इस कार्यकाल में पार्टी के लिए उपलब्धियों का पिटारा कुछ खास नहीं था. उलटे 1981 के आरक्षण विरोधी आंदोलन ने 1984 के आते-आते स्थिति और बिगाड़ दी थी. ऐसे में 30 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या ने सभी समीकरण बदल कर रख दिए. सिर्फ गुजरात के लिए ही नहीं केंद्र की राजनीति के भी, क्योंकि पूरे देश में सहानुभूति की लहर कांग्रेस के पक्ष में चल रही थी. ऐसे में माधवसिंह सोलंकी का KHAM फॉर्मूला यानी क्षत्रीय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम समुदायों को साथ लाने का फायदा भी पार्टी को मिला. चुनाव में कांग्रेस ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर 149 सीटों पर प्रचंड जीत हासिल की. 

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1990 राम जन्मभूमि लहर
गुजरात राज्य के 1960 में अस्तित्व में आने के बाद कांग्रेस को पहली बार तगड़ा झटका लगा. लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से रथ यात्रा शुरू की, जिससे अयोध्या आंदोलन को भारी समर्थन मिला. नतीजतन राम जन्मभूमि की वजह से हिंदुत्व की लहर पर सवार हो बीजेपी ने जनता दल के साथ गठबंधन सरकार बनाई. जद और बीजेपी का सीट शेयरिंग फॉर्मूला कांग्रेस विरोधी वोट खींचने में कामयाब रहा. ऐसे में दोनों ही पार्टियां चिमनभाई पटेल के नेतृत्व में आसानी से सरकार बनाने में सफल रही. 

1995 हिंदुत्व की लहर
बीजेपी ने गुजरात में पहली बार अपने बूते सरकार बनाई थी. केशुभाई पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया. जद संग बीच में ही गठबंधन टूट जाने से बीजेपी ने अकेले दम चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया. राम जन्मभूमि लहर ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हिंदुत्व की लहर को बड़े ज्वार भाटे का रूप दे दिया था. नतीजतन बीजेपी शानदार तरीके से सरकार बनाने में सफल रही. इसके अलावा बीजेपी ने चुनाव अभियान में डर, भूख और भ्रष्टाचार मुक्त गुजरात का वादा जोर-शोर से किया. यह मुद्दे सांप्रदायिक दंगों और कर्फ्यू से आजिज गुजरात की जनता को भा गए और उन्होंने बीजेपी को हाथों हाथ लिया. 

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1998 खजूरिया-हजूरिया लहर
1995 में जीत के सात महीने बाद ही केशुभाई पटेल को सीएम बनाए जाने से नाराज शंकरसिंह वघेला ने 121 विधायकों में से 105 को अपने साथ कर राज्य सरकार को बीच मंझधार में छोड़ दिया. शंकरसिंह वघेला बागी विधायकों को लेकर मध्य प्रदेश के खजुराहो आ गए और इस तरह इस तरह इस गुट को खजूरिया का तमगा मिल गया. वाघेला ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन कांग्रेस आलाकमान से उनकी पटरी नहीं बैठ सकी. इस कारण 1998 में फिर से चुनाव की नौबत आ गई. अब बीजेपी ने खजूरिया-हजूरिया लहर के बल पर पूर्ण बहुमत से सरकार में वापसी की. केशुभाई पटेल को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया. 

2002 गोधरा लहर
बीजेपी नेता केशुभाई पटेल फिर सीएम तो बन गए थे, लेकिन उनका कार्यकाल हादसों का शिकार बन गया. सूखा, फिर कांडला चक्रवात के बाद 2001 में आए भूकंप ने पार्टी के भीतर उनके खिलाफ ही भूकंप लाने का काम किया. नतीजतन 2001 में नरेंद्र मोदी को सूबे की कमान सौंपी गई. मोदी के कार्यकाल में ही साबरमती की बोगी और उसके भीतर बैठे लोगों को जिंदा जला दिया गया. इसके बाद हुए सांप्रदायिक दंगों ने हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का काम किया. इसका बीजेपी को जबर्दस्त फायदा मिला और वह 127 सीट जीत कर सरकार बनाने में सफल रही. 

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2007 मौत का सौदागर लहर
2002 में हुए चुनाव में मौत का सौदागर लहर ने मोदी को निर्णायक बहुमत दिलवाया. अब मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास के मसले पर अपना फोकस किया, क्योंकि सांप्रदायिक तनाव धीरे-धीरे खत्म हो रहा था. इसके साथ ही मोदी ने गोधरा कांड के बाद हुए सांप्रदायिक दंगों को अतीत बनाते हुए विकास के पथ पर राज्य को बढ़ाने का अभियान छेड़ा. कांग्रेस उस वक्त एक मजबूत विपक्ष हुआ करती थी और ऐसा कोई मुद्दा नहीं था जो बीजेपी के पक्ष में पलड़ा झुका सकता, लेकिन सोनिया गांधी ने मौत का सौदागर बयान देकर मोदी को घातक चुनावी अस्त्र-शस्त्र दे दिए. सीएम मोदी ने इस बयान को कांग्रेस के खिलाफ जमकर इस्तेमाल किया और भारी बहुमत हासिल कर सरकार बनाई.

2012 मोदी लहर
दिसंबर 2012 के आते-आते तय हो गया था कि मोदी ही 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से अगले पीएम चेहरे होंगे. गुजराती मतदाता जानते थे कि वह सीएम नहीं अगला भावी पीएम चुनने जा रहे हैं. उस वक्त मोदी मास्क घर-घर में पैठ जमा चुका था. मोदी ने तकनीक केंद्रित चुनाव अभियान छेड़ चुनाव प्रचार की दशा-दिशा ही बदल दी. नतीजतन मोदी फिर एक बार मुख्यमंत्री बने और इसके साथ ही उनके प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचने का रास्ता भी तैयार हो गया. 

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2017 पाटीदार आंदोलन लहर
हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदारों ने ओबीसी आरक्षण पर आंदोलन छेड़ दिया, लेकिन अल्पेश ठकोर इस पर अड़ गए कि आरक्षण देने से उनके वर्ग के हिस्से पर असर नहीं पड़ना चाहिए. ऊना कांड के बाद जिगनेश मेवानी ने सरकार पर दलित सुरक्षा को लेकर जबर्दस्त दबाव बनाया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी को इसके बीच सफलता के संकेत दिखे तो उन्होंने 2016 की नोटबंदी और जीएसटी पर धारदार प्रचार अभियान चलाया. नतीजतन बीजेपी ने इस कठिन चुनौती को पार तो किया, लेकिन उसकी जीती सीटों की संख्या में भारी गिरावट आई.

HIGHLIGHTS

  • गुजरात विधानसभा चुनाव में इस बार कोई लहर नहीं
  • बीजेपी के लिए मोदी-शाह-योगी ही ताकतवर चेहरे
  • कांग्रेस के लिए आप पार्टी खड़ा करेगी सिरदर्द

Source : News Nation Bureau

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