यहां तो बस मोदी ही हैं, उनका जादू बरकरार है... एक वृद्ध मुस्लिम मतदाता की टिप्पणी पर्याप्त है कि गुजरात (Gujarat) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ऐतिहासिक जीत क्यों दर्ज कर सकी. गौर करें प्रचार अभियान के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने एक जनसभा में कहा भी था कि 'भूपेंद्र पटेल की जीत मोदी की जीत से बड़ी होनी चाहिए...' हो गई जीत बड़ी. इतनी बड़ी कि 1985 में कांग्रेस (Congress) को मिली रिकॉर्ड 149 सीटों की संख्या भी कहीं पीछे छूट गई. गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Election Result 2022) के नतीजों ने साफ कर दिया है कि क्यों भाजपा का दुर्जेय किला अभेद्य बना हुआ है. यहां के मतदाता अभी भी 'माटी के लाल' नरेंद्र मोदी से काफी प्रभावित हैं और 2017 के प्रयोगों से थकने के बाद प्रभावशाली पाटीदारों की भाजपा में वापसी हो गई है. कांग्रेस का 'मौन' अभियान राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के गायब होने से मतदाताओं की समझ से बाहर हो गया. कांग्रेस के तमाम पारंपरिक मतदाताओं तक ने मान किया कि लड़ाई शुरू होने से पहले ही पार्टी ने हथियार डाल दिए. इससे पहले की सत्ता विरोधी लहर से कोई नुकसान होता बीजेपी ने विजय रूपाणी को 'कड़वा' भूपेंद्र पटेल से बदल दिया. साथ ही विधानसभा चुनाव से एक साल पहले पूरे मंत्रिमंडल को बदल ढीले पेंच-ओ-खम कस दिए. इसके अलावा पीएम मोदी ने फिर 'गुजराती अस्मिता' का नारा दे कांग्रेस के खिलाफ उसकी ही शब्दावली 'औकात' और 'रावण' का फायदा उठाया. इसके अलावा तमाम 'रेवड़ियों' का वादा करने वाली राज्य में नई-नई उपस्थिति दर्ज कराने वाली आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए भगवा पार्टी को चुनौती देना अभी दूर की कौड़ी ही रहेगा.
मोदी का जादू है बरकरार
बीजपी के लिए लोकसभा चुनाव 2024 से पहले प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुके गुजरात विधानसभा चुनाव को हाईकमान ने इसी अनुरूप लिया भी. अहमदाबाद-सूरत में 31 रैलियों और दो प्रमुख रोड शो के साथ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बार अपने गृह राज्य गुजरात में एक मौका नहीं छोड़ा. गृह मंत्री अमित शाह चुनाव प्रचार अभियान के नट-बोल्ट कसने के लिए लगभग एक महीने तक गुजरात में डेरा डाले रहे. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि भाजपा की चुनाव मशीनरी पूरी तरह से जमीन पर काम करे. प्रचार के आखिरी चरण में अहमदाबाद में पीएम मोदी द्वारा किया गया 50 किलोमीटर का रोड शो बता रहा था कि भाजपा रिकॉर्ड जीत की ओर है. बीजेपी का दावा है कि यह रोड शो न सिर्फ सबसे लंबा था, बल्कि पीएम की एक झलक पाने के लिए चार घंटे में 10 लाख से अधिक लोगों ने इसमें भाग लिया. राज्य में भाजपा के सभी चुनावी पोस्टरों में सुरक्षा और विकास का वादा करते हुए अन्य नेताओं के बीच मोदी की सबसे बड़ी तस्वीर थी. अपनी रैलियों में मोदी ने सावधानीपूर्वक 'गुजराती अस्मिता' और भाजपा शासन के तहत 2002 से राज्य के शांतिपूर्ण रहने जैसे मुद्दों को उठाया. कांग्रेस को उनके खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल करने के लिए फटकार लगाई और राष्ट्रवाद के मुद्दे को हवा दी, जिसकी गूंज हमेशा इस सीमावर्ती राज्य में रहती है. यही नहीं, मोदी और शाह माइक्रो-मैनेजमेंट के स्तर तक भी गए. उन्होंने पार्टी नेताओं से रिकॉर्ड जनादेश के लिए मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए घर-घर जा मतदाताओं से संपर्क करने को कहा. फिर भी यह पीएम मोदी के अभियान का दमखम था, जिसने गुजरात में भाजपा के लिए रिकॉर्ड जीत हासिल की.
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राजनीतिक नुकसान होने से पहले ही किया डैमेज कंट्रोल
हालांकि सितंबर 2021 में भाजपा के लिए चीजें इतनी अच्छी नहीं थीं. पार्टी नेताओं की सोच को सत्ता विरोधी लहर बार-बार मथ रही थी. एक ही चेहरे देखते-देखते मतदाता ऊब चुके थे. इन जमीनी सच्चाइयों का आकलन करने के बाद 11 सितंबर को पीएम नरेंद्र मोदी ने चौंका दिया. उन्होंने मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उनके पूरे मंत्रिमंडल को नए मुख्यमंत्री और मंत्रियों के एक नए समूह से बदल दिया. एक ऐसा मास्टर स्ट्रोक जिसने राज्य में भाजपा के खिलाफ सार्वजनिक गुस्से को दूर करने में महती भूमिका निभाई और ऐतिहासिक जीत की नींव रखी. पार्टी इस रणनीति का पहले उत्तराखंड और कर्नाटक में भी सफलता से आजमा चुकी थी. इसी तर्ज पर गुजरात में भी बदलाव कर 'कड़वा' यानी भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया गया. इसने गुजरात के पटेल समुदाय को फिर अहसास कराया कि राजनीति में उनके समुदाय का क्या औहदा है. गौरतलब है कि आनंदीबेन पटेल के बाद इस समुदाय का फिर मुख्यमंत्री बना. इसके पहले 2020 से नए प्रदेश प्रमुख के रूप में सीआर पाटिल पार्टी कैडर और मतदाताओं में नई ऊर्जा का संचार करने में लगे ही हुए थे.
पाटीदारों की भाजपा में वापसी
गुजरात में 13 फीसदी पाटीदार मतदाता हैं, लेकिन कहीं ज्यादा राजनीतिक प्रभाव रखते हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में उनके झुकाव की वजह से ही कांग्रेस 77 सीटों पर जीती थी. पाटीदार समुदाय ने बीजेपी को राज्य में पहली बार 99 सीटों के फेर में फंसा दिया था. 1995 में भाजपा को पहली बार सत्ता में लाने वाले पाटीदार दशकों से कांग्रेस के मतदाता रहे थे. इस कड़ी में 2015 के आरक्षण आंदोलन ने फिर सब बदल दिया. आरक्षण से जुड़े एक विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए 14 पाटीदारों से समुदाय में भाजपा के खिलाफ गुस्सा भर गया. इस गुस्से को तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार भी किया. हार्दिक पटेल भाजपा के खिलाफ पाटीदार आंदोलन का चेहरा बन कर उभरे और यह सब 2019 तक चला. हालांकि 2022 आते-आते घटनाक्रम ने यू-टर्न ले लिया और पाटीदार भाजपा के साथ वापस जुड़ गए. हार्दिक पटेल की तरह जो भगवा पार्टी में शामिल हो गए थे. वे 2020 में कमजोर आर्थिक स्थिति वाले लोगों को 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण देने के बीजेपी सरकार के कदम से संतुष्ट दिखे. वजह भी साफ थी इससे पाटीदारों को लाभ होना था. सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में मोदी सरकार के 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस आरक्षण के फैसले को बरकरार रखा है. जाहिर है इस बार गुजरात में बीजेपी की रिकॉर्ड जीत में पाटीदारों की वापसी ने बड़ी भूमिका निभाई है.
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कांग्रेस का 'मौन' अभियान
2017 विधानसभा के लिए आक्रामक चुनाव अभियान के विपरीत इस बार कांग्रेस पार्टी का अभियान कमजोर था. 2017 में राहुल गांधी ने गुजरात में एक महीने से अधिक का समय बिताया था और राज्य भर में एक-एक मंदिर की चौखट को चूमा था. इस बार कांग्रेस का फीका चुनाव प्रचार और दिग्गज नेताओं के गायब होने से जो 'मौन' पसरा वह मतदाताओं की समझ से परे था. यहां तक कि कांग्रेस के परंपरागत मतदाताओं ने भी मान लिया था कि लड़ाई शुरू होने से पहले ही कांग्रेस ने हथियार डाल दिए थे. ऐसे में उन्हें लगा कि वे कांग्रेस को वोट क्यों दें... गौरतलब है कि राहुल गांधी सिर्फ एक दिन दो रैलियों के लिए गुजरात आए. चुनाव प्रचार के चरम के दौरान राहुल गांधी पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में अपनी 'भारत जोड़ो यात्रा' करते रहे. साफ है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में मिली बढ़त को भुनाने के बजाय कांग्रेस इस बार 'रिवर्स मोड' में चली गई. रही सही कसर पीएम मोदी के खिलाफ कांग्रेस के नकारात्मक अभियान ने पूरी कर दी, जिसकी पार्टी को ऐतिहासिक हार के रूप में भारी कीमत चुकानी पड़ी. मधुसूदन मिस्त्री ने प्रधानमंत्री के खिलाफ 'औकात' शब्द का इस्तेमाल किया, तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे 'रावण' बोल बैठे. 'गुजराती अस्मिता' को सर्वोच्च प्राथमिकता देने वाले मतदाताओं को 'अपने' पीएम मोदी के लिए यह शब्द अच्छा नहीं लगे. पीएम मोदी ने भी कांग्रेस को निशाने पर लेने के लिए अपनी चुनावी रैलियों में इसे उठाने का एक भी मौका नहीं छोड़ा. स्थानीय कांग्रेस उम्मीदवारों ने व्यक्तिगत रूप से मोदी पर हमला करने से परहेज किया, लेकिन खड़गे और मिस्त्री जैसे राष्ट्रीय नेता अपनी शब्दावली से कांग्रेस का नुकसान कर चुके थे. दूसरे कांग्रेस के पास गुजरात भाजपा के विकल्प के रूप में कोई मजबूत चेहरा भी नहीं था. भाजपा ने आदिवासी बेल्ट में भी बड़ा स्कोर किया, जो परंपरागत रूप से कांग्रेस का गढ़ रहा है. सौराष्ट्र के ग्रामीण क्षेत्रों में भी बीजेपी ने अपनी पैठ बनाई, जहां कांग्रेस ने 2017 में बड़े पैमाने पर जीत हासिल की थी. जाहिर है गुजरात छोड़ पूरी कांग्रेस मशीनरी भारत जोड़ो यात्रा में लगी रही, जिसका परिणाम सामने आना भी था.
आप सिर्फ सुर्खियां ही बनकर रह गई
गुजरात के लिए नई पार्टी आम आदमी पार्टी ने जोर-शोर से अपना चुनाव प्रचार अभियान चलाया. स्पष्ट रूप से इसे एक ऐसे राज्य में पैठ बनाने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है, जो दशकों से भाजपा और कांग्रेस के बीच द्विध्रुवीय लड़ाई का साक्षी रहा है. आप ने मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरे तक की घोषणा कर दी और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कई रैलियों और रोड शो के साथ चुनाव अभियान का नेतृत्व किया. इसके बावजूद जमीनी हकीकत पर लोगों ने अभी भी आप को भाजपा या यहां तक कि कांग्रेस के विकल्प के रूप में नहीं देखा है. आप की मुफ्त की रेवड़ियों के वादे भी मतदाताओं पर असर छोड़ने में नाकामयाब रहे. मुसलमान अभी भी कांग्रेस का समर्थन करते दिख रहे हैं, लेकिन आप ने वोट-शेयर के मामले में गुजरात में एक विश्वसनीय शुरुआत की है. सूरत जैसे कुछ क्षेत्रों में बीजेपी को थोड़ा दबाव में भी लाई, जिससे गुजरात में बीजेपी को अपने अभियान को और तेज करना पड़ा. इस मेहनत ने बीजेपी को मीठा फल भी दिया और वह ऐतिहासिक जीत दर्ज कर सकी.
HIGHLIGHTS
- सत्ता विरोधी लहर का नुकसान होने से पहले बीजेपी आलाकमान ने किया डैमेज कंट्रोल
- कांग्रेस 2017 की बढ़त को भुनाने में चूकी. राहुल समेत दिग्गज नेता गुजरात से रहे गायब
- पाटीदार समुदाय की भगवा पार्टी में वापसी से बीजेपी ने कर दिया ऐतिहासिक जीत का दावा