कांग्रेस नेतृत्व इस समय गुटबाजी और बयानबाजी से तंग है. कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सत्तारूढ़ भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए पार्टी के गांधी परिवार के बाहर के व्यक्ति को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं. इसमें प्रमुख रूप से वे लोग शामिल हैं जो वर्षों तक कांग्रेस हाईकमान या कहें गांधी-नेहरू परिवार की अनुकंपा पर सत्ता में फूलते-फलते रहे हैं. कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद गुलाम नबी आजाद एक कदम आगे बढ़ते हुए गांधी परिवार से बाहर के व्यक्ति को भी कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए योग्य नहीं मान रहे हैं. क्योंकि उनका मानना है कि ऐसा व्यक्ति भी गांधी-नेहरू परिवार का चाटुकार ही होगा.
गुलाम नबी आजाद कहते हैं कि, "कोई भी कांग्रेस नेता जो अध्यक्ष बनेगा वह चपरासी की तरह होगा, वह गांधी परिवार की फाइलों को लेकर चलेगा." दरअसल, कांग्रेस से अलग होने पर यह केवल गुलाम नबी आजाद का ही विचार नहीं है, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष के लिए होने वाले चुनाव के बारे में जनता की यह आम धारणा है. क्योंकि गांधी-नेहरू परिवार के बिना कांग्रेस के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है. लंबे समय तक प्रत्येक कांग्रेसी का भी यही ख्याल रहा है. पूर्व में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री पद अस्वीकार करने के बाद मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार को रिमोट कंट्रोल की सरकार कहा जाता था. ऐसे में वर्तमान नेतृत्व चाहता है कि पार्टी के अधिक से अधिक नेता पार्टी अध्यक्ष चुनाव में उम्मीदवार के रूप में उतरें.
कौन-कौन हो सकते हैं कांग्रेस प्रत्याशी
राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता है. अभी तक यह माना जा रहा था कि सोनिया गांधी के निर्देश पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पार्टी की कमान संभालने जा रहे हैं. लेकिन अब अक्टूबर में होने वाले चुनाव में शशि थरूर, मल्लिकार्जुन खड़गे. दिग्विजय सिंह भी उम्मीदवार हो सकते हैं. मलयालम दैनिक मातृभूमि के लिए एक लेख में, थरूर ने "स्वतंत्र और निष्पक्ष" चुनाव का आह्वान किया. थरूर ने कहा, "फिर भी, एक नए अध्यक्ष का चुनाव करना कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक शुरुआत है."
गांधी परिवार पर निशाना साधते हुए, थरूर ने लिखा: “राहुल गांधी के चुनाव लड़ने से इनकार करने और गांधी परिवार के किसी भी सदस्य को उनकी जगह लेने के उनके बयान से कई कांग्रेस समर्थक निराश हो गए हैं. यह वास्तव में गांधी परिवार को तय करना है कि वे इस मुद्दे पर सामूहिक रूप से कहां खड़े हैं, लेकिन लोकतंत्र में किसी भी पार्टी को यह मानने की स्थिति में नहीं होना चाहिए कि केवल एक परिवार ही इसका नेतृत्व कर सकता है. ”
यह पूछे जाने पर कि क्या वह कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ेंगे, थरूर ने सस्पेंस बनाए रखना पसंद किया. "मेरे पास करने के लिए कोई टिप्पणी नहीं है. मैंने अपने लेख में जो लिखा है, उसे मैं स्वीकार करता हूं कि चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए अच्छी बात होगी."
गांधी परिवार से बाहर के अध्यक्ष से कांग्रेस को नुकसान
2004 में जब सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में चुना, तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि उन्हें उनका पूरा समर्थन है. लेकिन 2013 की एक घटना ने यह साबित कर दिया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सोनिया गांधी के इशारे पर काम करते है. दरअसल, जब मनमोहन सिंह 2013 में विदेश में थे, तब राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से एक अध्यादेश को फाड़कर फेंक दिया था. इस घटना से प्रधानमंत्री की सार्वजनिक रूप से बहुत अपमान हुआ था. औऱ राहुल गांधी पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई भी नहीं हुई थी. ऐसा माना जाता है कि अगले साल आम चुनावों में पार्टी की हार में उक्त घटना ने योगदान दिया. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह उस समय से यूपीए में मनमोहन सिंह को अपने बॉस के रूप में स्वीकार करने वाले मंत्रियों की संख्या बढ़ गई.
इस घटना ने इस धारणा को बढ़ा दिया कि 10 जनपथ में रहने वाली सोनिया गांधी भारत की "असली प्रधानमंत्री" हैं और मनमोहन सिंह उनकी सलाह पर काम करते थे. वास्तव में, सरकार को सलाह देने के लिए गठित राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को "वास्तविक सरकार" के रूप में देखा जाता था. पार्टी को डर है कि एक गैर-गांधी अध्यक्ष अंत में यही धारणा छोड़ देगा कि गांधी परिवार ही वास्तविक शक्ति है, चाहे पार्टी अध्यक्ष कोई भी हो.
गांधी परिवार के बाहर से अध्यक्ष होने पर कांग्रेस को लाभ
गांधी परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति पार्टी अध्यक्ष बनता है तो कांग्रेस के लिए पूरी तरह से गलत नहीं होगा. अगर पार्टी अपने पत्ते ठीक से खेलती है, तो वह भाजपा के वंशवाद के आरोप को धवस्त करने का अवसर हो सकता है. यह गांधी खेमे को G-23 को हमेशा के लिए खामोश करने का एक सुनहरा अवसर भी देता है. यह गुट कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद के जाने के साथ कम होता जा रहा है. गैर-गांधी को चुनने से समूह की "पूर्णकालिक अध्यक्ष" की सबसे बड़ी मांग पूरी हो जाएगी. और अगर G-23 में से कोई भी चुनाव लड़ने के लिए आगे नहीं आता है, तो ब्लॉक पूरी तरह से बातचीत के रूप में सामने आ जाएगा.
सीताराम केसरी का कार्यकाल
सीताराम केसरी कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले अंतिम गैर-गांधी थे. उन्होंने सितंबर 1996 में कार्यभार ग्रहण किया और मार्च 1998 तक पद पर रहे, जब तक कि गांधी के वफादारों ने उन्हें बाहर नहीं कर दिया. केसरी पार्टी में अपनी खुद की मंडली बना रहे थे. सोनिया गांधी को व्यावहारिक रूप से शीर्ष पद तक पहुंचने के लिए मजबूर होना पड़ा. फिर भी, वरिष्ठ नेता जितेंद्र प्रसाद ने उनके खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए क्योंकि उनके और पार्टी नेताओं के बीच विश्वास की कमी थी. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उनके बेटे जितिन प्रसाद ने वही ख्वाब देखा और आखिरकार जून 2021 में बीजेपी में चले गए.
कांग्रेस के सामने दुष्चक्र
यह एक दुष्चक्र है जिसमें पार्टी फंसी हुई है. अगर कोई गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनता है, तो यह परिवारवाद को आरोप को मजबूत करेगा, भाजपा और जी23 को गोला-बारूद देगा. यदि कोई गैर-गांधी पार्टी अध्यक्ष बनता है, तो गांधी परिवार की उपस्थिति मात्र से उनका अधिकार कम हो जाएगा.
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लेकिन गांधी परिवार के वफादारों ने अभी तक उम्मीद नहीं खोई है. यह दृढ़ विश्वास है कि इस बिंदु पर एक गैर-गांधी को बागडोर सौंपने से अराजकता पैदा होगी, उन्हें उम्मीद है कि राहुल गांधी झुकेंगे और चुनाव लड़ने के लिए सहमत होंगे. वायनाड के सांसद भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त रहेंगे, लेकिन सूत्रों का कहना है कि नामांकन दाखिल करने के लिए उन्हें शारीरिक रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है, जिसके लिए अंतिम दिन 29 सितंबर है, और उनकी लिखित सहमति पर्याप्त है. राहुल गांधी ने 2008 में सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करने से पहले भारत दौरा शुरू की थी. क्या भारत जोड़ो यात्रा उनकी राजनीतिक यात्रा में एक और बुकमार्क होगी?
HIGHLIGHTS
- सीताराम केसरी कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले अंतिम गैर-गांधी थे
- गांधी परिवार से बाहर का पार्टी अध्यक्ष बनने से कांग्रेस को मिल सकती है मजबूती
- सोनिया गांधी चाहती है कि कई लोग अध्यक्ष चुनाव में उतरे