पिछले कुछ दिनों से ऐसे संकेत मिल रहे थे कि एनसीपी के चीफ शरद पवार अपने भतीजे अजित पवार की बजाय अपनी बेटी सुप्रिया सुले को अपनी विरासत सौंपने जा रहे हैं. पवार का ये फैसला अजित पवार की राजनीति को पीछे धकेल सकता था लिहाजा उन्होंने बीजेपी की साथ हाथ मिलाकर ये साबित कर दिया कि महाराष्ट्र की राजनीति में उन्हें खारिज करना मुमकिन नहीं है. अब तक शरद पवार की छत्रछाया में राजनीति करने करने वाले अजित पवार महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स का एक मजबूत नाम हैं. वो अब तक पांच बार महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम बन चुके हैं. शायद ही कोई राजनेता इतनी बार किसी सूबे का डिप्टी सीएम बना हो. लेकिन सवाल ये है कि क्या अजित पवार अपने चाचा का दामन छोड़कर कभी महाराष्ट्र के सीएम भी बन पाएंगे जो महाराष्ट्र के किसी भी नेता का ख्वाब होगा.
महाराष्ट्र की राजनीति में अजित पवार की क्या अहमियत
शरद पवार के बड़े भाई अनंतराव पवार के बेटे अजित पवार अपने चाचा का अनुसरण करते हुए राजनीति में आए. 1991 में उन्होंने शरद पवार के गढ़ बारामती से लोकसभा चुनाव जीता लेकिन जब शरद पवार तब की नरसिम्हा राव सरकार में रक्षा मंत्री बने तो उन्होंने इस्तीफा देकर अपने चाचा के लिए वो सीट खाली कर दी. उसी साल उन्होंने विधानसभा चुनाव भी जीता और महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार में मंत्री बन गए. फिर धीरे-धीरे अजित पवार महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके की राजनीति का बड़ा नाम बनते गए.
साल 2010 में कांग्रेस -एनसीपी गठबंधन सरकार में अजित पवार पहली बार डिप्टी सीएम बने और फिर 2012 में सिंचाई घोटाले में नाम आने के बाद उन्हें ये पद छोड़ना पड़ा. लेकिन कुछ महीने बाद वो फिर से डिप्टी सीएम बन गए. साल 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया. एक नाटकीय घटनाक्रम में अजित पवार बीजेपी के खेमे में जाकर डिप्टी सीएम बन गए लेकिन ज्यादा दिन तक वो इस पद पर नहीं रह सके. कांग्रेस-शिवसेना और एनसीपी गठबंधन की सरकार में एक बार फिर वो डिप्टी सीएम बने, लेकिन जब शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने बगावत की तो वो सरकार गिर गई. एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन गए और अजित पवार विधानसभाा में नेता प्रतिपक्ष बन गए.
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..तो इसलिए थामा एनडीए का हाथ
अब अपने चाचा से बगावत करके उन्होंने एक बार फिर से बीजेपी के साथ मिलकर डिप्टी सीएम की कुर्सी हासिल कर ली है. डिप्टी सीएम की कुर्सी अजित पवार के लिए नई नहीं है जाहिर उनका निशाना तो सीएम की कुर्सी ही होगी. कहा जाता है कि राजनीति संभावनाओं का खेल है. राजनीतिक में ना किसी का कोई स्थायी दोस्त होता है और ना कोई दुश्मन. जिसका समय जब आ जाए वह अपना काम कर लेता है. ऐसा ही अजित पवार ने किया. जिस तरह से बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को शिवसेना से तोड़कर उन्हें सीएम की कुर्सी पर बिठाया है उसे देखकर अजित पवार के मन में ये बात जरूर होगी कि आगे चलकर कर सूबे की सियासत में हालात उनके मुफीद रहे तो उनकी किस्मत भी एकनाथ शिंदे की तरह खुल सकती है. एनसीपी में हाल के महीनों में हुए डेवलेपमेंमट से अजित पवार को ये अंदाजा तो ही गया था कि चाचा की पार्टी यानी एनसीपी में तो बाजी उनकी चचेरी बहन सुप्रिया सुले के हाथ में जा चुकी है लिहाजा उन्होंने एनडीए में शामिल होने का जुआ खेल दिया.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट