चुनाव भले ही कोई भी हो मतदाताओं (Voters) को लुभाने के लिए नेता कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते हैं. हालांकि वोटर्स का ध्यान आकर्षित करने के तरीके कभी-कभी उलटे परिणाम भी देते हैं. आजकल के दिनों में जब टेलीमार्केटिंग कॉल और संदेशों की बाढ़ ही लोगों को गुस्सा दिलाने के लिए पर्याप्त हो, तब कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Elections 2023) के चुनावी समर में किस्मत आजमा रहे उम्मीदवारों की कॉल और संदेशों की बाढ़ मतदाताओं पर भारी पड़ रही है. पिछले विधानसभा चुनाव (Karnataka Elections 2023) के विपरीत इस बार मतदाताओं के व्हाट्सएप और फेसबुक यूजर्स के फोन नंबरों की जबर्दस्त मांग है. राजनीतिक दल और उम्मीदवार (Candidates) इनके जरिये व्यक्तिगत रूप से मतदाताओं से जुड़ने का प्रयास कर रहे हैं. ऐसे में उम्मीदवारों की कॉल्स और मैसेजों की बाढ़ से मतदाताओं में खिन्नता के साथ-साथ गुस्सा भी बढ़ रहा है. स्थानीय सुपरमार्केट से लेकर खाद्य और उपभोक्ता सामान वितरण से जुड़े लोग मुंहमांगी कीमत पर नागरिकों का डाटा राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को बेच रहे हैं. यही नहीं, इन नंबरों को पोस्टल इंडेक्स नंबर (Pin Code) के अनुसार भी व्यवस्थित किया जा रहा है.
पिन कोड के आधार पर जुटाया जा रहा मतदाताओं का डाटा
कछ दिन पहले बेंगलुरु निवासी जिश्नू ने ट्वीट कर कहा, 'गैस कनेक्शन डाटा राजनेताओं को बेचा या सुलभ कराया जा रहा है. भले ही अब मैं उस इलाके या विधानसभा क्षेत्र में नहीं रहता हूं, लेकिन मुझे स्थानीय विधायक के कार्यालय से समर्थन और वोट देने के फोन आ रहे हैं... क्योंकि एलपीजी कनेक्शन अभी भी मेरे नाम पर है!' एक राष्ट्रीय पार्टी के सोशल मीडिया एक्जीक्यूटिव ने बताया, 'बेंगलुरु में 100 से अधिक पिन कोड हैं, जिन्हें नागरिकों ने किसी सेवा को हासिल करते समय जाहिर किया होगा. अब इन पिन कोड के जरिये उम्मीदवारों को केवल अपने निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं या निवासियों से संबंधित डाटा खरीदने में मदद मिलती है. प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में चार या पांच पिन कोड ही होते हैं.'
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लाभदायक व्यवसाय
नामांकन प्रक्रिया में तेजी आने के साथ इस तरह के डाटा की मांग बढ़ रही है. ऐसी स्थिति में ऐसे डाटा की आपूर्ति करने वाले पर्याप्त पैसा कमा रहे हैं. बेंगलुरु के एक मौजूदा विधायक ने कहा, 'उम्मीदवार प्रत्येक नंबर के लिए 5 रुपये से 10 रुपये का भुगतान कर रहे हैं. 'नंबर लगभग हर उम्मीदवार द्वारा स्थापित सोशल मीडिया सेल को सौंपे जाते हैं. राजनीतिक दलों के अलावा कई उम्मीदवार भी अपने कॉल सेंटर या आईटी सेल चला रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने बाकायदा एक्जीक्यूटिव्स को नियुक्त कर रखा है. सामग्री के आधार पर प्रत्येक संदेश की कीमत प्रति व्यक्ति 2 रुपये से 5 रुपये पड़ती है.' जाहिर है नए जमाने की इस तकनीक से उम्मीदवार को बेहतर परिणाम हासिल करने की संभावना बढ़ जाती है. यह अलग बात है कि ढेरों नागरिक अपने निजी डाटा की इस तरह खुलेआम हो रही खरीद-फरोख्ता से खिन्न हैं और उनका गुस्सा बढ़ रहा है.
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ढेरों कॉल-मैसेज आना परेशान करने वाला अनुभव
ज्यूडिशियल लेआउट निवासी मधुसूदन एएस ने कहा, 'मुझे आश्चर्य हुआ जब मुझे एक फोन आया. फोन करने वाला हमारे विधायक के चुनाव कार्यालय से जुड़ा होने का दावा कर रहा था. उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं किसे समर्थन दूंगा और किसे वोट दूंगा. मैं सोच रहा था कि उन्हें मेरा नंबर कैसे मिला और इतनी बेशर्मी से मुझसे मेरी राजनीतिक पार्टी या उम्मीदवार की पसंद के बारे में सवाल किया जा रहा!' जयनगर से मानसी पी ने कहा, 'इलाके के विधायक कार्यालय से होने का दावा करने वाले लोगों ने मुझे एक सर्वेक्षण में शामिल होने के लिए कॉल किया. मैं नहीं जानता कि उनके सर्वेक्षणों में क्यों शामिल होऊं और उन्हें मेरा नंबर कैसे मिला. इतनी सारी मीटिंग्स और इंटरैक्शन के बीच में ऐसी कई कॉल्स और मैसेज आना वास्तव बहुत परेशान करने वाला अनुभव है.'
HIGHLIGHTS
- फेसबुक और व्हॉट्सएप यूजर्स के फोन नंबरों की कर्नाटक चुनाव में भारी मांग
- राजनीतिक दल और उम्मीदवार प्रति नंबर के आधार पर पैसे चुका ले रहे डाटा
- फिर मतदाताओं को कॉल या मैसेज कर उनसे मांगा जा रहा समर्थन और वोट