हाल ही में भारत की राजधानी दिल्ली में हुई जी 20 की मीटिंग में जो सबसे बड़ा फैसला हुआ वो है अफ्रीकी यूनियन को जी 20 में शामिल करना. 55 अफ्रीकी देशों के इस संगठन का दुनिया की सबसे बड़ी और ताकतवर इकोनॉमिक फोरम जी20 में शामिल होना इस बार के मेजबान भारत की बड़ी कामयाबी और चीन के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि भारत की इस कामयाबी ने अफ्रीका महाद्वीप में चीन को बड़ी मात दी है. और चीन की हालत ऐसी थी कि वो चाह कर भी भारत के इस मास्टर स्ट्रोक को नाकाम नहीं कर सका. अफ्रीकी यूनियन का जी20 में शामिल होना इतनी बड़ी घटना कैसे है इसे समझने के लिए हमें पहले ग्लाबल साउथ की पॉलिटिक्स को समझना होगा. पिछले कुछ वक्त से आपने इंटरनेशनल डिप्लोमेसी की खबरों में ये शब्द कई बार सुना होगा ..तो आखिर क्या है ग्लोेबल साउथ?
दरअसल ग्लोबल साउथ दुनिया के उन देशों से मिलकर बना है जो विकास की दौड़ में पिछड़े हुए हैं. इन देशों में एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के वो देश शामिल है जो विकासशील है और इनमें से कई देशों में राजीनैतिक तौर पर अस्थिरता रहती है. इस नक्शे के जरिए हमें ग्लोबल साउथ की भौगोलिक स्थिति को समझ सकते हैं. ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे विकसित देश ग्लोबल साउथ का हिस्सा नहीं हैं. अपनी ताकतवर इकोनॉमी और मजबूत होती मिलिट्री पावर के जरिए चीन विकास की दौड़ में पिछड़ चुके इस ग्लोबल साउथ का लीडर बनना चाहता है और इसके लिए वो अरबों डॉलर्स खर्च कर रहा है.
अफ्रीका महाद्वीप और चीन के लिए क्या है महत्व
दरअसल, एशिया-प्राशांत इलाके में जो मुल्क हैं उनमें से ज्यादातर के साथ चीन का सीमा विवाद चल रहा है लिहाजा ये देश चीन को लेकर काफी सतर्क हैं. वहीं लैटिन अमेरीकी देशों की अमेरिका के साथ भौगोलिक करीबी के चलते चीन वहां कोई बड़ा दांव नहीं खेल सकता लिहाजा उसके पास अपने गेम को खेलने के लिए अफ्रीका महाद्वीप ही बचता है जो प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर तो है लेकिन वहां गरीब और राजनैतिक अस्थिरता अपने चरम पर है. चीन की रणनीति ऐसे गरीब मुल्कों को अपने कर्ज के जाल में फंसा कर वहां अपना प्रभुत्व स्थापित करने की रही है. पाकिस्तान और श्राीलंका जैसे देश इसकी नजीर हैं. चीन अफ्रीका के देश जिबूती में भी अपनी ऐसाी चाल चलके एक नौसैनिक अड्डा बना चुका है जो भारत के भी खतरा माना जाता है. अफ्रीका को लेकर चीन कितना ज्यादा सीरियस है इसे इन आंकड़ों से समझा जा सकता है.
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अफ्रीका और चीन के बीच हर साल 200 बिलियन डॉलर से ज्यादा रकम का व्यापार होता है. चीन की 10,000 से ज्यादा कंपनिया अफ्रीका में काम कर रही हैं. अफ्रीकी देशों में चीन के 53 दूतावास हैं जो अमेरिका से भी ज्यादा है. साल 2008 से 2018 के बीच चीन के टॉप ऑफिशियल्स ने 43 अफ्रीकी देशों में कुल 79 यात्राएं की थीं. अफ्रीका के 52 देश चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव प्रोग्राम यानी BRI पर दस्तखत कर चुके हैं. इथियोपिया, कॉन्गो गणराज्य, सूडान, जाम्बिया, कीनिया, कैमरून, माली और कॉट डे आइवरी जेसे देश चीन के कर्ज में डूबे हुए हैं.
चीन की चाल से कुछ अफ्रीकी देश पहले ही सतर्क
अफ्रीका यूनियन का मुख्यालय इथयोपिया की राजधानी अदीस आबाबा में है जिसे चीन ने ही करोड़ों डॉलर्स खर्च करके साल 2012 में बनाया था. इन आंकड़ों से आपको इतना तो समझ में आ गया होगा कि अफ्रीका महाद्वीप में चीन कितना बड़ा खिलाड़ी है और वो अपने इस खेल में किसी दूसरे देश को शामिल नहीं होने देना चाहता लेकिन भारत ने जी20 की मीटिंग चीन का खेल बिगाड़ड दिया है. अफ्रीका यूनियन की जी20 के साथ जोड़ने का मतलब है इन 50 से ज्यादा अफ्रीदी देशों के दुनिया की सबसे ताकतवर इकोनॉमी वाली देशों के साथ सीधे जोड़ना. भारत की मेजबानी में हुए इस फैसले से अफ्रीकी देशों में भारत के लिए सहानुभूति पैदा होना लाजिमी है और इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में सहानुभूति भी एक बड़ा फैक्टर मानी जाती है. माना जा रहा है कि अब भारत अफ्रीका में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके इन मुल्कों को चीन की कर्ज देकर कब्जा करने वाली साजिश से सतर्क कर सकेगा. वैसे कुछ अफ्रीकी देश पहले से ही चीन की चाल से आगाह हो चुके हैं और साल 2020 में तंजानिया जैसे देश ने चीन के साथ 10 बिलिय़न डॉलर के कर्ज की डील रद्द कर दी थी.
भारत के कई अफ्रीकी देशों के साथ पारंपरिक संबंध रहे हैं. इस महाद्वीप मे भारत ट्रेड, टेक्नोलॉजी और इंन्फ्रास्ट्रक्चर के डेवलेपमेंट में चीन का विकल्प साबित हो सकता है. साथ भारत के पास अब ग्लोबल साउथ के लीडर के तौर पर खुद के स्थापित करने का बड़ा मौका है. अफ्रीका महाद्वीप, अमेरिका, चीन, यूरोप और रूस जैसे बड़ी शक्तियों के बीच राजनीति का अखाड़ बन चुका है. कई देश वैगनर ग्रुप जैसी भाड़े की फौज के जरिए उस महाद्वीप के मुल्को पर अपना प्रभाव बना रहहे हैं ऐसे में भारत ने अफ्रीकी यूनियन को जी20 में शामिल करके ऐसी बाजी जीत ली है जिसकी छाप आनोे वाला कई सलों तक इंटरनेशनल पॉलिटिक्स में नजर आएगी.
सुमित कुमार दुबे की रिपोर्ट
Source : News Nation Bureau